Skip to main content

परमाणु सुरक्षा पर आतंक का मंडराता खतरा

      

अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में परमाणु सुरक्षा जैसे गंभीर विषय को लेकर पचास के अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने विचार –विमर्श किया.इस शिखर सम्मलेन के मुख्य उद्देश्य परमाणु सुरक्षा पर मंडराते खतरे को रोकना था.सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने इस विषय पर चिंता जाहिर की कि परमाणु अस्त्र  निर्माण में इस्तेमाल होने वालें युरेनियम और प्लूटोनियम पदार्थ को सुरक्षित कैसे रखा जाए.जाहिर है कि बोको हरम,इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे आतंकी संगठन परमाणु हथियार और उसकी तकनीक हासिल करने की फिराक में लगे हैं,ऐसे में परमाणु अस्त्रो को सुरक्षित करना सभी परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों का प्रमुख दायित्व है.लेकिन मौजूदा परिस्थितियों कुछ राष्ट्र इस मसले पर गंभीर नही हैं.जिसमें आतंक परस्त पाकिस्तान और उत्तर कोरिया प्रमुख हैं,एक तरफ में चरमपंथी ताकतें मजबूत हो रहीं तो दूसरी उत्तर कोरिया बार –बार अपने परमाणु शक्ति का परीक्षण कर रहा है,ऐसा में स्थिति और गंभीर हो जाती है.बहरहाल,अगर हम परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलनों की पृष्टभूमि पर नजर डालें तो अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की पहल से पहला परमाणु सुरक्षा सम्मेलन 2010 में वाशिंगटन में आयोजित किया गया,दूसरा परमाणु सुरक्षा सम्मेलन 2012 में दक्षिण कोरिया में आयोजित किया गया था,तीसरे परमाणु सुरक्षा सम्मेलन का आयोजन प्राग में किया गया था.परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन के इस छह साल की यात्रा पर गौर करें तो बराक ओबामा के इस पहल ने सभी देशों का ध्यानाकर्षण परमाणु सुरक्षा की तरफ किया.तथा परमाणु हथियार को बानने में लगनें वाले सामग्रियों के तस्करी को रोकने के लिए आगाह किया.गौरतलब है कि इस चौथे शिखर सम्मेलन का आयोजन उस वक्त किया गया है.जब आतंकवाद समूचे दुनिया में अपने पाँव पसार रहा है,आतंकवाद का खतरा सभी देशों पर छाया हुआ है.लेकिन किसी भी देश के पास आतंकवाद से निपटने का कोई ठोस नीति नही है.फलस्वरूप कभी भारत में पठानकोट तो चंद दिनों पहले ब्रसेल्स में हुए आतंकवादी हमले इसके ताज़ा उदारहण हैं.आतंकवादी संगठन सरेआम अपने नापाक मनसूबों को अंजाम दे रहें है.दुनिया आतंकवाद की महामारी से गुजर रहा है.इसे रोकनें में अभी तक कोई देश सफल नही हुआ है.परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन में इस बात पर ज्यादा जोर दिया गया कि आतंकवादी संगठन परमाणु बम बनाने की सामग्री हासिल करनें का निरंतर प्रयास कर रहें है.उसे कैसे रोका जाए.जाहिर है कि अगर परमाणु बम बनाने की सामग्री किसी भी आतंकवादी संगठन के हाथों लग गई तो ये पुरे विश्व के लिए विध्वंसकारी होगा.इस बेहद गंभीर मुद्दे पर सभी देशों के प्रतिनिधियों ने चिंता जाहिर की कि परमाणु सुरक्षा को कैसे और पुख्ता किया जाए.ऐसी परिस्थिति में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की ये पहल प्रसंसनीय है.भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में पुनः सभी देशों का ध्यान आतंकवाद की तरफ आकृष्ट किया.प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्य रूप से तीन बातों पर विशेष जोर दिया.मोदी ने बेहद शख्त लहजे में कहा कि सारे देश को यह धारणा छोड़ देनी चाहिए कि यह मेरा आतंकी है, और यह तुम्हारा आतंकी है.मोदी ने हाल हि में हुए ब्रसेल्स हमले का हवाला देते हुए कहा कि ये हमले दिखातें है कि परमाणु सुरक्षा पर आतंकवाद के कारण मंडराने वाला खतरा कितना वास्तविक व तात्कालिक है.इसके साथ ही मोदी ने ये कहा कि सभी देशों को इस संदर्भ में अपनी अंतराष्ट्रीय कर्तव्यों का पालन करना चाहिये.दूसरी बात मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि हम गुफा में छिपे आदमी की तलाश नही कर रहें है बल्कि हमें उसे आतंकी की तलाश है,जो शहर में है तथा कम्प्यूटर और स्मार्टफोन से लैश है.आखिरी में मोदी ने पाकिस्तान पर निशाना साधने हुए कहा कि परमाणु तस्करों  और आतंकियों के साथ मिलकर काम करने वाले सरकारी तत्व परमाणु सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.अपने पुरे संबोधन में मोदी ने बगैर नाम लिए पाकिस्तान पर कई दफा हमला बोला ये बात जगजाहिर है कि पाकिस्तान सरकार आतंकवादियों की मदद करने से कोई गुरेज नही करती. और पाक से पनपे आतंकी भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बन रहें है.वर्तमान स्थिति में विश्व के सामने सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद से है,प्रधानमंत्री मोदी लगातार इस विध्वंसकारी ,कट्टरपंथी ताकतों से लड़ने के लिए एक साथ आने की अपील कर रहें है.परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में भारत की तरफ से दिए गये सुझावों पर सभी राष्ट्रों को गंभीरता से चिंतन करना चाहिए.यदि वक्त की नजाकत को देखतें हुए आतंकवाद के विरूद्ध सभी देश एकजुट नही हुए तो वो दिन दूर नही कि आतंकी संगठन परमाणु सामग्री को अपने चपेट में ले लेंगे और दुनिया को तबाह कर देंगे. बहरहाल,ये देखने वाली बात होगी कि भारत की इस अपील को दुसरे राष्ट्र कितने गंभीरता से लेतें है,अब वो समय आ गया है कि विश्व के सभी अमन पसंद देश आतंक के मसले पर भारत के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलें.परमाणु हथियारों को पूर्णतया तभी सुरक्षित माना जा सकता है जब दुनिया आतंकवाद से निपटने  की कोई ठोस नीति बनाएं.


Comments

Popular posts from this blog

भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात

      भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात -:   अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं.बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहतें है.लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दी.दरअसल एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है,चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये,पर मै भारत माता की जय नही बोलूँगा.ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है .इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आज़ादी के लिए अपने होंठों पर भारत माँ की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है,भारत माता की जय कहना अपने आप में गर्व की बात है.इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितो की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.इस पुरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भाग

लोककल्याण के लिए संकल्पित जननायक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना 70 वां जन्मदिन मना रहे हैं . समाज जीवन में उनकी यात्रा बेहद लंबी और समृद्ध है . इस यात्रा कि महत्वपूर्ण कड़ी यह है कि नरेंद्र मोदी ने लोगों के विश्वास को जीता है और लोकप्रियता के मानकों को भी तोड़ा है . एक गरीब पृष्ठभूमि से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने की उनकी यह यात्रा हमारे लोकतंत्र और संविधान की शक्ति को तो इंगित करता ही है , इसके साथ में यह भी बताता है कि अगर हम कठिन परिश्रम और अपने दायित्व के प्रति समर्पित हो जाएँ तो कोई भी लक्ष्य कठिन नहीं है . 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनते हैं , यहीं से वह संगठन से शासन की तरफ बढ़ते है और यह कहना अतिशयोक्ति   नहीं होगी कि आज वह एक अपराजेय योध्हा बन चुके हैं . चाहें उनके नेतृत्व में गुजरात विधानसभा चुनाव की बात हो अथवा 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव की बात हो सियासत में नरेंद्र मोदी के आगे विपक्षी दलों ने घुटने टेक दिए है . 2014 के आम चुनाव को कौन भूल सकता है . जब एक ही व्यक्ति के चेहरे पर जनता से लेकर मुद्दे तक टिक से गए थे . सबने नरेंद्र मोदी में ही आशा , विश्वास और उम्मीद की नई किरण देखी और इतिहास

लंबित मुकदमों का निस्तारण जरूरी

     देश के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर बेटे विगत रविवार को मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों के सम्मलेन को संबोधित करते हुए भावुक हो गये.दरअसल अदालतों पर बढ़ते काम के बोझ और जजों की घटती संख्या की बात करतें हुए उनका गला भर आया.चीफ जस्टिस ने अपने संबोधन में पुरे तथ्य के साथ देश की अदालतों व न्याय तंत्र की चरमराते हालात से सबको अवगत कराया.भारतीय न्याय व्यवस्था की रफ्तार कितनी धीमी है.ये बात किसी से छिपी नहीं है,आये दिन हम देखतें है कि मुकदमों के फैसले आने में साल ही नहीं अपितु दशक लग जाते हैं.ये हमारी न्याय व्यवस्था का स्याह सच है,जिससे मुंह नही मोड़ा जा सकता.देश के सभी अदालतों में बढ़ते मुकदमों और घटते जजों की संख्या से इस भयावह स्थिति का जन्म हुआ है.गौरतलब है कि 1987 में लॉ कमीशन ने प्रति 10 लाख की आबादी पर जजों की संख्या 50 करनें की अनुशंसा की थी लेकिन आज 29 साल बाद भी हमारे हुक्मरानों ने लॉ कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की जहमत नही उठाई.ये हक़ीकत है कि पिछले दो दशकों से अदालतों के बढ़ते कामों पर किसी ने गौर नही किया.जजों के कामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई.केसो