Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2018

अखिलेश का अशोभनीय कृत्य

     हमारे देश के राजनेताओं को सत्ता का रसूख इतना भाता है कि वह अपने सियासी आडंबर से जरा भी समझौता करना पसंद नहीं करते. यही कारण है कि सरकारी बंगला,सुरक्षा,गाड़ी का   लब्बोलुआब उन्हें अपने गिरफ़्त में ले लेता है. राजनीति में जो मर्यादा, शुचिता एवं सहजता की स्थिति थी, अब वह बीते दिनों की बात हो चुकी है. वर्तमान में देश के राजनेताओ को सुख-सुविधा एवं वीआईपी संस्कृति ने अपने गिरफ़्त में ले रखा है. यह सर्वविदित सत्य है की सत्ता से बाहर होने के बाद सरकारी सुविधाओं को त्यागना पड़ता है अथवा उसमें भारी कटौती भी देखने को मिलती है. सरकारी सुविधाओ के प्रोटोकॉल की एक प्रक्रिया है, जिसमें राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री सहित पूर्व प्रधानमंत्री तथा पूर्व राष्ट्रपति, मंत्री ,मुख्यमंत्री सांसद एवं विधायक गण आते हैं. इस समय उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों का सरकारी बंगला छोड़ना चर्चा के केंद्र बिंदु में है. सबसे बड़े सूबे में पूर्व मुख्यमंत्रियों को कोर्ट ने झटका देते हुए वर्षों से कब्ज़ा जमाए सरकारी बंगले को छोड़ने का आदेश दिया था. यह आदेश उत्तर प्रदेश के प्रमुख छत्रपों पर कहर की तरह था. देश ने देखा उत्

हिंसा की राजनीति पर लगाम जरूरी

भारत जैसे विविधताओं और महान लोकतांत्रिक देश में जब राजनीतिक हत्याओं के मामले सामने आते हैं तो निश्चित तौर पर, वह लोकतंत्र को मुंह चिढ़ा रहे होते हैं.राजनीतिक हत्या न केवल भारत के विचार –विनिमय   की संस्कृति को चोट पहुंचाते हैं बल्कि, यह सोचने पर मज़बूर करते हैं कि राजनीति में अब सियासी भाईचारे की जगह बची है अथवा नहीं ? रक्तरंजित राजनीति के लिए दो राज्य हमेशा चर्चा के केंद्र बिंदु में रहते हैं.पहला पश्चिम बंगाल और दूसरा केरल इन दोनों में वामपंथी शासन के दौरान राजनीतिक हिंसा को खूब फलने फूलने दिया गया और इसका इस्तेमाल अपनी सियासी ताकत की आजमाइश और तुष्टीकरण के लिए किया जाने लगा. उसी का परिणाम है कि आज रक्तरंजित राजनीति की घटनाएँ लगातार बढ़ रहीं तथा अपने स्वरूप को और भी क्रूरता   के साथ पेश करने से नहीं हिचक रहीं. बंगाल की सियासत में राजनीतिक हिंसा कोई नहीं बात नहीं है किन्तु जब वामपंथी शासन से बंगाल को मुक्ति मिली थी, तब ऐसा अनुमान लगाया गया था कि ममता बनर्जी के आने से यह कुप्रथा समाप्त होगी अथवा कमी आएगी लेकिन, इस अनुमान के साथ बड़ा छलावा हुआ ममता बनर्जी के शासनकाल में जिस तरह से हिंसा