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Showing posts from October, 2018

जनकल्याण के प्रयासों का सम्मान

       जब किसी देश के मुखिया को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ा जाता है तो, यह उस देश के लिए हर्ष का विषय होता है. गौरतलब है कि गत दिनों ‘सियोल शांति पुरस्कार 2018’ के लिए नरेंद्र मोदी को चुना गया है. यह सम्मान नरेंद्र मोदी को वैश्विक आर्थिक प्रगति, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और भारत के लोगों के मानवीय विकास को तेज़ करने की प्रतिबद्धता तथा सामाजिक एकीकरण के जरिये लोकतंत्र के विकास के लिए प्रदान किया जा रहा है. सियोल पीस प्राइज कल्चरल फाउंडेशन की तरफ़ से आए आधिकारिक बयान में यह भी कहा गया है कि सामाजिक विषमताओं की खाई को पाटने में ‘मोदीनोमिक्स’ के महत्व को संस्था स्वीकार करती है. संस्था का यह बयान इस बात की तरफ़ इशरा करता है कि नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में जो जन कल्याण की योजनाएं प्रारम्भ की हैं वह फाइलों में सिमटने की बजाय जमीन पर कारगर साबित हो रही है.जिसकी मुनादी विश्व के तमाम संगठनों को सुनाई दे रही है. जाहिर है कि सियोल शांति पुरस्कार प्रत्येक दो साल के अंतराल पर ऐसे व्यक्तियों को दिया जाता है, जो मानवता के कल्याण के लिए प्रयासरत हो तथा विश्व शांति के लिए अपना योगदान दिया

जन्मदिन विशेष – अमित शाह और भाजपा का स्वर्णिम काल

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपने जीवन काल के 54 साल पूरे कर 55 वें बसंत में प्रवेश कर रहे हैं. यह उनके जीवन काल का सबसे अहम पड़ाव है. क्योंकि इसी वर्ष इनको पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव फिर आगामी आम चुनाव भाजपा उनके नेतृत्व में लड़ने जा रही है. जाहिर तौर पर अमित शाह की यह इच्छा होगी कि जब वह अपना 55वां साल पूरा कर रहे होगें तब भाजपा का स्वर्णिम काल चल रहा हो जिसकी कल्पना उन्होंने की है. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि भाजपा वर्तमान समय में अपने इतिहास के सबसे स्वर्णिम दौर से गुजर रही है. किन्तु आज भी अमित शाह संतोषप्रद की स्थिति में नही हैं बल्कि अत्याधिक ऊर्जा के साथ संगठन को विस्तार देने में लगी हुए हैं. सवाल उठता है कि आखिर अमित शाह के नजरिये से भाजपा का स्वर्णिम काल कौन सा होगा ? इसको समझने के लिए हमें दक्षिण की तरफ़ झांकना होगा. जहाँ बीजेपी भाजपा उत्तर भारत के बरक्स मजबूत दिखाई नहीं देती लेकिन पूर्वोत्तर के त्रिपुरा ,असम, नगालैंड जैसे राज्यों में अपनी रणनीति के दम पर भाजपा को स्थापित करने वाले शाह का अगला मिशन दक्षिण को फतह करना है. जिसके लिए वह दिनोंरात

हादसों के कारण और लापरवाही के परिणाम !

जब समूचा देश दशहरा के अवसर पर रावण का पुतला दहन कर असत्य पर सत्य की विजय के जश्न में डूबा हुआ था, उसी वक्त अमृतसर से एक ऐसी दुखद खबर आई जिससे पूरा देश हतप्रद रह गया. किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि ऐसी अप्रिय घटना होने जा रही है जिससे यह जश्न क्षण भर में ही मातम में तब्दील हो जाएगा. पंजाब के अमृतसर के करीब जोड़ा रेलवे फाटक के पास रावण दहन का कार्यक्रम चल रहा था, वहाँ उपस्थित लोग दशहरे के इस जश्न को अपने मोबाईल में कैद कर रहे थे, तभी अचानक आग में लिपटा दशानन का पुतला गिर गया और लोग अपने बचाव में इधर–उधर भागने लगे और इस बचाव से भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई. उसी वक्त जोड़ा फ़ाटक से गुजरी लोकल ट्रेन की चपेट में आने से अभी तक 62 लोग असमय काल की गाल में समा गए, वहीँ 150 से अधिक लोग घायल हैं. मौत के यह आंकड़े बढ़ भी सकते हैं. इस दुखद घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. जैसे ही इस हादसे की बात सामने आई, केंद्र सरकार ने राहत और बचाव के लिए पूरा अमला लगा दिया. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और देश, विदेश के कई नेताओं ने इस घटना पर शोक प्रकट किया है. इन सबके बीच कई सवाल सबके मन में कौंध रहे हैं कि

भारतीयता के गौरव की अनुभूति कराता लोकमंथन

     भारत में विचार विनिमय की अपनी एक समृद्ध संस्कृति रही है. ऋषि ,मुनि तथा विचारक एक जगह एकत्रित होकर समाज की समस्याओं तथा उसके निवारण पर विमर्श करते थे. धीरे –धीरे यह परम्परा सामाजिक उत्थान न होकर राजनीतिक उत्थान का रास्ता चुन लिया अर्थात हर विमर्श राजनीतिक दृष्टि से आयोजित होने लगे. जिसका सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय समाज को हुआ है, भारतीय संस्कृति का हुआ है. आज के दौर में समाज देश के प्रबुद्ध वर्ग से यह उम्मीद करता है कि कोई ऐसा आयोजन हो जिसमें कई तरह के विचार आएं जिसमें समाज की चर्चा हो और राजनीति से परे हो. विगत दिनों रांची में आयोजित चार दिवसीय लोकमंथन का आयोजन हुआ. यह आयोजन भारतीय चिंतन की दृष्टि से अपनेआप में एक अनूठा विमर्श था. ‘भारत बोध’:जन –गण-मन विषय पर के आलोक में आयोजित इस वैचारिक महाकुंभ में देशभर से बड़ी संख्या में राष्ट्र सर्वोपरी की भावना रखने वाले विचारकों,लेखकों, लोककलाकारों का जुटान हुआ. गौरतलब है कि 2016 में भोपाल में लोकमंथन का पहला आयोजन हुआ था. जिसमें देश –विदेश से विचारकों एवं कर्मशीलों ने भाग लिया था. भोपाल के आयोजन की चर्चा राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय स्