बीते कुछ दिनों से सरकार की सक्रियता से संसद में जो हो रहा है,वो हम भारतीयों को शर्मिंदा करने के लिए बहुत है.बुधवार को आंध्र प्रदेश के बटवारे के लिए संसद में जो हुआ उससे हमारे लोकतंत्र जितना शर्मसार हुआ शायद इससे पहले न हुआ हो.तेलंगाना बिधेयक को पास कराने के लिए कांग्रेस ने जो रवैया अपनाया,उसके गहरे निहितार्थ है.एक बात तो स्पष्ट है सरकार ने ठान लिया था कि चाहे जो हो, जिस प्रकार हो.आंद्र प्रदेश का बटवारा करना है,अर्थात तेलंगाना विधेयक को पारित करवाना है और वैसा ही हुआ.इसप्रकार तो सरकार जो चाहे वो विधेयक पास करवा सकती है बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए.लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि सरकार इच्छाशक्ति तब ही दिखाती है जब उसे राजनीतिक लाभ होता दिख रहा हो.अगर जनहित के मुददे पर भी सरकार इसी तरह सक्रिय रहती तो ये हालात नही होती. तेलंगाना कोई आज का मुददा नही है,करीब साठ साल पुराना मुद्दा है.कांग्रेस ने भी अलग तेलंगाना के लिए करीब दस साल पहले ही वायदा कर चुकीं है,पर अब इतने दिनों के बाद,लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अपना राजनितिक फायदे के लिए कांग्रेस ने इस विधेयक को पारित करवाया.पहला सवाल ये उठता है कि
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