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Showing posts from June, 2016

एनएसजी पर वैश्विक कूटनीति की जंग

       परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह देशों में भारत को शामिल होने की उम्मीदों को करारा झटका लगा है. एनएसजी की सियोल बैठक में भारत को शामिल करने को लेकर चल रही जद्दोजहद में भारत को निराशा हाथ लगी है. भारत की आशाएं को धक्का लगा है जिसमें मुख्य किरदार पड़ोसी देश चीन ने निभाया है. 48 देशों के समूह में भारत को एनएसजी का सदस्य बनाने को लेकर चली चर्चा में भारत के लिए सबसे बड़े विरोधी के रूप में चीन ने आवाज़ बुलंद की है.चीन के साथ –साथ ब्राजील,टर्की, आस्ट्रिया समेत दस देशों ने भारत के खिलाफ मतदान किया.चीन अपनी पूरी शक्ति लगाकर न केवल खुद भारत का विरोध किया बल्कि जिन देशों पर उसका वर्चस्व है उसका लाभ लेते हुए उनको भी भारत के खिलाफ लामबंध करने में सफलता अर्जित की. स्वीटजरलैंड जो पहले भारत के पक्ष में था अचानक वो भी भारत के विरोध में खड़ा दिखा .भारत को लेकर इन देशों का रवैया अब वैश्विक स्तर पर सबने देख लिया है.भारत, चीन से साथ रिश्तों को लेकर नरम रुख अख्तियार करता रहा है,चीन से साथ भारत की कूटनीति हमेसा से उदारवाद जैसे रही हैं.जिसमें छल-कपट के लिए कोई जगह नहीं होती हैं. लेकिन चीन इसके ठीक विपरीत व्यहवार

आरोपी विधायक की गिरफ्तारी आपातकाल कैसे ?

दिल्ली में एक ऐसा मुख्यमंत्री बैठा है जो केवल अपने नाटकीय कार्यों  के लिए चर्चा में रहता है,एक नाटक खत्म नही हुआ कि दूसरा नाटक तैयार हो जाता है. जबसे दिल्ली के मुख्यमंत्री का पदभार केजरीवाल संभाले है, हर रोज कुछ न कुछ बवाल केंद्र सरकार पर बेजा आरोप लगा कर खड़ा कर देते हैं. दिल्ली की जनता ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि हम जिस व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंप रहे हैं, वो व्यक्ति अपना समय दिल्ली के विकास में न देकर व्यर्थ के मुद्दों पर देगा. दरअसल, शनिवार को दिल्ली के विधायक दिनेश मोहनिया को पुलिस ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ही गिरफ्तार कर लिया. उनके ऊपर एक महिला से बदसलूकी का आरोप है,पुलिस द्वारा दो बार नोटिस देने के बावजूद मोहनिया इस नोटिस का कोई जवाब नही दिया. उसके बाद पुलिस ने मोहनिया पर उक्त कार्यवाही की. गिरफ्तारी की जैसे ही खबर आई केजरीवाल बौखला गये और एक के बाद एक ट्विट कर इस गिरफ्तारी की तुलना आपातकाल से कर दिया.  सवाल खड़ा होता है कि महिला से बदसलूकी के  मामले में गिरफ्तारी आपातकाल है ? सवाल की तह में जाने से पहले हमें थोड़ा उस कालखंड में जाना होगा जब केजरीवाल चुनाव प्रचार  मे

कांग्रेस में बदलाव से पहले बिखराव

       भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी और सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस आज सबसे बुरे  हालत में है,विगत लोकसभा चुनाव के बाद इस विरासत का पतन निरंतर देखने को मिल रहा है,पार्टी को एक के बाद एक चुनावों में मुंह की खानी पड़ रही है.हर चुनाव के बाद कांग्रेस हार के कारणों की समीक्षा करने के लिए कमेटी का गठन करती हैं लेकिन उसकी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल देती है.परंतु लगातार मिल रही पराजयों से सबक लेते हुए कांग्रेस ने बड़े उलटफेर का मन बना लिया हैं. जिसका जिक्र अभी कुछ दिनों पहले पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने किया था.अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि इसी माह के अंत में होने वाले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी की कमान राहुल गाँधी के हाथों सौपं दी जाएगी.राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनना अब तय माना जा रहा हैं. परंतु अध्यक्ष पद संभालने से ठीक पहले जो खबरें आ रहीं हैं वो कांग्रेस में राहुल गाँधी की स्वीकार्यता पर सवालियां निशान लगा रहीं हैं.वर्तमान दौर में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियाँ मुंह बाए खड़ी हैं  जिससे निपटना पार्टी के लिए आसान नही होगा.हाल ही  में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में

जीवन स्तर की चिंताजनक तस्वीर

      ब्रिटेन के हेनली एंड पार्टनर्स द्वारा दुनिया के तमाम एशियाई और योरोपीय आदि देशों के नागरिकों के  जीवन स्तर और सुविधाओं के आधार पर एक सर्वेक्षण किया गया है. सर्वेक्षण  में आये परिणाम के मुताबिक बेहतर जीवन स्तर के मामले में जर्मनी सबसे आगे है जबकि कांगो के लोगों का जीवन स्तर दुनिया के सभी देशों से बदतर है. इस सूची में भारत को टॉप सौ देशों में भी जगह नही दी गई है. भारत इस सूची में 102वें पायदान पर है,  दरअसल इस सर्वे के लिए हेनली एंड पार्टनर्स ने जो मानक तैयार किये थे, वो सभी देशों के लिए एक समान न होकर भिन्न–भिन्न थे. मुख्य रूप से जिस आधार पर रैंकिंग दी गई उसमें स्वास्थ्य नीति, शिक्षा, अर्थव्यवस्था तथा शांति और स्थिरता मुख्य थे. इन सभी मानकों पर जर्मनी अव्वल रहा और पहली रैंक पर कब्जा जमाया. इस सर्वेक्षण में शीर्ष 20 देशों में यूरोपीय देशों का दबदबा है. कुल मिलाकर समूचे सर्वेक्षण के आधार की बात करें तो दुनिया के तमाम देशों के नागरिकों को प्राप्त   बुनियादी सुविधाओं को केंद्र में रखते हुए यह सर्वे किया गया है. इस सर्वेक्षण को अगर भारत के परिदृश्य में समझें तो हमें इसे स्वीकारना में