महान समाजशास्त्री लूसी मेयर ने परिवार को परिभाषित करते हुए बताया कि परिवार गृहस्थ्य समूह है.जिसमें माता –पिता और संतान साथ –साथ रहते है.इसके मूल रूप में दम्पति और उसकी संतान रहती है.मगर ये विडंबना ही है कि,आज के इस परिवेश में दम्पति तो साथ रह रहें ,लेकिन इस भागते समय और अपनी व्यस्तताओं में हम अपने माता –पिता को पीछे छोड़ रहें है.आज के इस आधुनिकीकरण के युग में अपने इतने स्वार्थी हो चलें है कि केवल हमें अपने बच्चे और पत्नीं को ही अपने परिवार के रूप में देखते है, अब परिवार अधिनायकवादी आदर्शों से प्रजातांत्रिक आदर्शों की ओर बढ़ रहें है,अब पिता परिवार में निरंकुश शासक के रूप में नही रहा है.परिवार से सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्णय केवल पिता के द्वारा नहीं लिए जातें.अब ऐसे निर्णयों में पत्नी और बच्चों को तवज्जों दी जा रही,ज्यादा नहीं अगर हम अपने आप को बीस साल पीछे ले जाएँ हो हालत बहुत अच्छे थे.तब संयुक्त परिवार का चलन था. साथ –साथ रहना, खाना –पीना पसंद करते थें, परिवार के मुखिया द्वारा लिया गया निर्णय सर्वमान्य होता था,संयुक्त परिवार के अनेकानेक लाभ थे.मसलन हमें हम अपनी संस्कार,रीति –रिवाज़,प्र
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