देश कोरोना महामारी की चपेट में है. हर तरफ स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है. यह समय सबको साथ मिलकर इस महामारी से मुकाबला करने का है किन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में यह संभव होता नहीं दिखाई दे रहा है. इसके पीछे कारण बहुत दिख जाएंगे फ़िलहाल इसका प्रमुख कारण क्षुद्र राजनीति ही दिखाई पड़ रही है. देश में बुद्धिजीवियों की एक बड़ी जमात है जो पुरस्कार वापसी, असहिष्णुता, लोकतंत्र खतरे में है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन हो रहा है कि मुनादी 2014 से पीट रहे हैं बस हर बार इनकी मुनादी चिकना घड़ा साबित हुई है. वैसे तो देश ने हर मोर्चे पर इनका दोहरा रवैया देखा है, लेकिन अब इनके क्रूर आचरण से भी देश भलीभांति वाकिफ हो गया है. यह कबीला समय, अवसर अथवा परिस्थिति के अनुसार अपना एजेंडा तय नहीं करते, बल्कि कोई भी समय हो, काल हो, परिस्थिति हो यह अपने एजेंडे पर पूरी तरह दृढ़ता के साथ खड़े रहते है. कोरोना की दूसरी लहर में शुरू से देखें तो राजनीतिक दलों से कहीं ज्यादा यह लोग सक्रिय नजर आ रहे हैं मानों समूचे विपक्ष ने अपना दायित्व इनके कंधो पर डाल दिया है. इन्होनें एक-एक कर नरेंद्र मोदी के खिलाफ नैरेटिव गढ़ने
इस ब्लॉग के माध्यम से लोगो तक अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त कर आपके सामने परोसना है ,विचारो में मतभेद होते हैं और होने भी चाहिएं .आप हमेशा एक तर्कपूर्ण बहस के लिए आमंत्रित है .. स्वागत है ..बंदन है .....अभिनंदन है .......