भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपने जीवन काल के 54 साल पूरे कर
55 वें बसंत में प्रवेश कर रहे हैं. यह उनके जीवन काल का सबसे अहम पड़ाव है.
क्योंकि इसी वर्ष इनको पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव फिर आगामी आम
चुनाव भाजपा उनके नेतृत्व में लड़ने जा रही है. जाहिर तौर पर अमित शाह की यह इच्छा
होगी कि जब वह अपना 55वां साल पूरा कर रहे होगें तब भाजपा का स्वर्णिम काल चल रहा
हो जिसकी कल्पना उन्होंने की है. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि भाजपा वर्तमान
समय में अपने इतिहास के सबसे स्वर्णिम दौर से गुजर रही है. किन्तु आज भी अमित शाह संतोषप्रद
की स्थिति में नही हैं बल्कि अत्याधिक ऊर्जा के साथ संगठन को विस्तार देने में लगी
हुए हैं. सवाल उठता है कि आखिर अमित शाह के नजरिये से भाजपा का स्वर्णिम काल कौन
सा होगा ? इसको समझने के लिए हमें दक्षिण की तरफ़ झांकना होगा. जहाँ बीजेपी भाजपा
उत्तर भारत के बरक्स मजबूत दिखाई नहीं देती लेकिन पूर्वोत्तर के त्रिपुरा ,असम,
नगालैंड जैसे राज्यों में अपनी रणनीति के दम पर भाजपा को स्थापित करने वाले शाह का
अगला मिशन दक्षिण को फतह करना है. जिसके लिए वह दिनोंरात परिश्रम करने में लगे हुए
हैं. त्रिपुरा में 25 वर्षों से गड़े वाम किला को उखाड़ने के पश्चात् अमित शाह की
नजरें तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर है
जहाँ बीजेपी सत्ता से दूर तो है ही, इसके साथ –साथ विगत चुनावों में भाजपा को
जनसमर्थन भी उम्मीद के अनुरूप नहीं प्राप्त हो सका .लेकिन अमित शाह की रणनीति केवल
चिड़िया की आँख दिखती है,चिड़िया अथवा पेड़ नहीं. इसको समझने के लिए हमें त्रिपुरा
विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत को समझना होगा. 2013 के त्रिपुरा
विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, परिणाम यह
निकला की भाजपा को एक भी सीट हांसिल नहीं हुई यहाँ तक कि 49 उम्मीदवारों ने अपनी
जमानत राशी भी बचाने में सफ़ल नही हुए और इस चुनाव में भाजपा को मात्र 1.87 फ़ीसदी
वोट के साथ संतोष करना पड़ा. परन्तु त्रिपुरा के राजनीतिक परिदृश्य में इतना बड़ा
बदलाव होने जा रहा है इसका अंदाज़ा किसी को नहीं था. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव
में भाजपा ने एतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 43 फ़ीसदी वोटों के साथ 35 सीटों पर विजय
प्राप्त किया. यह जीत अप्रत्याशित थी और इस बात का प्रमाण भी कि अमित शाह के हौसले
कितने बुलंद है, उनका मैनेजमेंट, सोशल इंजीनियरिंग केवल उत्तर भारत ही नहीं वरन देश के हर राज्यों
की राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने तथा उसे बदलने का माद्दा रखता है. यही कारण
है कि दक्षिण के राज्यों में भी अमित शाह भाजपा को नए सोपान पर देखने के लिए
उत्सुक है. और शायद यही उनके स्वर्णिम भाजपा की कल्पना हो. गौर करें तो शाह का
रणनीति में हताशा और पूर्व चुनाव के परिणामों की सफ़लता या विफलता से अधिक इस बात
पर केन्द्रित रहता है कि आगामी चुनाव में पार्टी कैसे तय लक्ष्य को हांसिल करे. इसी
के मद्देनजर वह पार्टी की नीतियों तथा चुनावी योजनाओं का निर्माण कर स्वयं उसे अमल
करने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं. यही कारण है कि आज के सभी राजनीतिक दलों के
अध्यक्षों से अलग उनके आलोचक भी यह बात मानते है कि वह एक अथक परिश्रमी पार्टी
अध्यक्ष हैं. आज अमित शाह को भाजपा का सबसे सफलतम अध्यक्ष कहा जाता है तो, इसके पीछे केवल एक राजनीतिक विस्तार ही कारण
नहीं है वरन कई ऐसे और महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसकी चर्चा कम होती है मसलन अध्यक्ष
बनने के उपरांत अमित शाह ने सबसे पहले पार्टी को पूरी तरह से तकनीक से जोड़ते हुए
पार्टी कार्यालयों को आधुनिकीकरण करने की दिशा में कदम बढ़ाया. शाही खर्चे पर अंकुश
लगाने के लिए अमित शाह ने पदाधिकारियों से आग्रह किया की होटल की बजाय सरकारी
गेस्टहाउस में ठहरने को प्राथमिकता दें. यही नहीं चुनाव को छोड़ दें तो राष्ट्रीय
अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों के लिए चार्टेड बिमान पूरी तरह प्रतिबंधित है. यह न केवल
अन्य नेताओं के लिए दिया गया उपदेश है बल्कि अमित शाह खुद भी पार्टी के इस नियम
पालन करते हैं. इन सबसे अतिरिक्त अमित शाह ने भाजपा में जो एक कई परंपरा की शुरुआत
की जिसकी चर्चा कहीं नही होती, वह है
केन्द्रीय स्तर से लेकर राज्य तथा जिला इकाइयों तक पुस्तकालय एवं ग्रंथालय का
निर्माण. जब राजनीति में सक्रिय लोग पठन –पाठन से विमुख हो रहे हैं. ऐसे समय में
पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह अपने नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को इससे जोड़ रहे
हैं.इसे एक अनूठा प्रयास के तौर पर देखा जाना चाहिए.बहरहाल, अमित शाह साधारण विषय
पर असाधारण निर्णय लेने वाले व्यक्ति हैं. आने वाला यह साल उनके भविष्य के लिए
काफ़ी अहम है.उनके इस जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं !
भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात -: अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं.बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहतें है.लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दी.दरअसल एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है,चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये,पर मै भारत माता की जय नही बोलूँगा.ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है .इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आज़ादी के लिए अपने होंठों पर भारत माँ की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है,भारत माता की जय कहना अपने आप में गर्व की बात है.इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितो की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.इस पुरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भाग
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