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हादसों के कारण और लापरवाही के परिणाम !




जब समूचा देश दशहरा के अवसर पर रावण का पुतला दहन कर असत्य पर सत्य की विजय के जश्न में डूबा हुआ था, उसी वक्त अमृतसर से एक ऐसी दुखद खबर आई जिससे पूरा देश हतप्रद रह गया. किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि ऐसी अप्रिय घटना होने जा रही है जिससे यह जश्न क्षण भर में ही मातम में तब्दील हो जाएगा. पंजाब के अमृतसर के करीब जोड़ा रेलवे फाटक के पास रावण दहन का कार्यक्रम चल रहा था, वहाँ उपस्थित लोग दशहरे के इस जश्न को अपने मोबाईल में कैद कर रहे थे, तभी अचानक आग में लिपटा दशानन का पुतला गिर गया और लोग अपने बचाव में इधर–उधर भागने लगे और इस बचाव से भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई. उसी वक्त जोड़ा फ़ाटक से गुजरी लोकल ट्रेन की चपेट में आने से अभी तक 62 लोग असमय काल की गाल में समा गए, वहीँ 150 से अधिक लोग घायल हैं. मौत के यह आंकड़े बढ़ भी सकते हैं. इस दुखद घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. जैसे ही इस हादसे की बात सामने आई, केंद्र सरकार ने राहत और बचाव के लिए पूरा अमला लगा दिया. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और देश, विदेश के कई नेताओं ने इस घटना पर शोक प्रकट किया है. इन सबके बीच कई सवाल सबके मन में कौंध रहे हैं कि इस क्रूर हादसे का जिम्मेदार कौन है? आखिर किसकी लापरवाही से 62 लोग असमय मृत्यु के शिकार हुए? जिस तरह से स्थानीय प्रशासन और आयोजन कमेटी ने घोर लापरवाही बरती है, उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके इस अविवेक ने इस बड़े हादसे को दावत दी है. एक सामान्य बुद्दि का मनुष्य भी ऐसे असुरक्षित स्थान पर कार्यक्रम आयोजन करने से पहले एक बार अवश्य सोचता कि जब रावण दहन होगा, उस वक्त अनुमान से ज्यादा लोग आ सकते हैं, ऐसी स्थिति में कोई भी हादसा हो सकता है. लेकिन आयोजन समिति ने इस बिंदु पर जरा भी गौर नहीं किया. रेलवे पटरी के समीप यह कार्यक्रम करना किसी हादसे को आमंत्रण देना ही था. जिसके लिए सबसे पहले दशहरा कमेटी और स्थानीय प्रशासन की अक्षम्य लापरवाही सामने आती है. इस हादसे के उपरांत दोनों ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है, सबसे पहले तो स्थानीय प्रशासन की तरफ़ से यह बयान आया कि प्रशासन की ओर से ऐसे कोई कार्यक्रम की अनुमति प्रदान नहीं की गई. किन्तु कमेटी ने घोबी घाट पर दशहरा उत्सव के आयोजन के लिए पुलिस से सुरक्षा प्रबंधन की मांग को रखते हुए एक पत्र भी लिखा था, इस पत्र के सामने आने के उपरांत, जो पुलिस हादसे के दिन इस तरह की अनुमति को खारिज़ कर रही थी, जिसे बाद में स्वीकार कर लिया. अब सवाल यह उठता है कि जब पुलिस के पास पर्याप्त सुरक्षा सुविधा मुहैया नहीं थी फिर अनुमति क्यों प्रदान की गई? भीड़ जब बढ़ने लगी फिर भीड़ प्रबंधन के नियमों का पालन क्यों नहीं किया गया? बहरहाल, इस वेदना की घड़ी में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा देर रात ही अमृतसर पहुँच गए, वहीँ अमेरिका के दौरे पर गए रेल मंत्री पीयूष गोयल भी अपनी यात्रा को अधूरा छोड़ स्वदेश आ गए हैं. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिन्दर सिंह ने जिस असंवेदनशीलता का परिचय दिया है वह दुर्भाग्यपूर्ण हैं. आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि मुख्यमंत्री इस विपत्ति के समय तत्काल पीड़ित लोगों को संवेदना देने नहीं पहुंच सके? मीडिया द्वारा सवाल पूछे जाने पर उनका जवाब था कि वह एयरपोर्ट पर थे और इजराइल जाना था. फिर अमरिंदर सिंह को यह भी बताना चाहिए की क्या एक मुख्यमंत्री का अपने राज्य के प्रति आपातकालीन स्थिति में कोई दायित्व नहीं होता? उन्होंने जिस तरह तर्कहीन जवाब दिया वह दर्शाता है कि पंजाब के मुख्यमंत्री लचर व्यवस्था का संचालन कर रहे हैं. बहरहाल, ये पहला मौका नहीं है, जब इस प्रकार का वीभत्स हादसा हुआ हो. देश में हर साल कोई न कोई बड़ा हादसा होता है. लेकिन, इसे रोकने की कोई ठोस नीति सरकार के पास नहीं है. एक बात तो स्पष्ट है कि सरकार तथा प्रशासन ने पिछली घटनाओं से कोई सबक लेना उचित नहीं समझा. अगर प्रशासन ने कुछ भी सबक लिया होता तो इस प्रकार की दर्दनाक घटना से बचा जा सकता था. गौरतलब है कि भारत उत्सवधर्मी देश है, कई अवसरों पर लोग बड़ी तादाद में इकठ्ठा होकर उत्सव को मनाते हैं. जिसके मद्देनजर प्रशासन तथा सरकार को सुरक्षा के व्यापक इंतजाम के साथ भीड़ नियंत्रण को लेकर ठोस योजना बनाने की जरूरत थी. लेकिन इस मसले पर प्रशासन पूरी तरह से विफल रहा है. एक के बाद एक हो रहे हादसे सैकड़ों परिवारों को ऐसे घाव दे जाते हैं, जो आजीवन उन्हें दर्द देते रहते हैं. इस हादसे में अबतक 62 लोगों की मृत्यु हुई है. जाहिर है कि किसी ने अपना बेटा, किसी ने अपना पिता, किसी ने अपनी माँ तो, किसी ने अपनी पति को खोया है. किंतु सरकारें और प्रशासन कुछ मुआवजे का मरहम लगा कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं. इस हादसे के बाद भी केंद्र तथा राज्य सरकार ने अपनेअपने स्तर पर घायलों तथा जिनकी मृत्यु हुई हैं उनके परिजनों को मुआवज़ा देने का ऐलान कर दिया है. अगर हम इस प्रकार के हादसों के कारणों की बात करें तो कई बातें सामने आती हैं. प्रथम दृष्टया आयोजकों का प्रशासन के बीच भीड़ नियंत्रण की कोई बड़ी योजना नहीं होती, अगर होती भी है तो उसे अमल नहीं किया जाता तथा आयोजकों और प्रशासन के दरमियान बेहतर तालमेल नहीं होता है. जिसका खामियाजा वहां आए लोगों को भुगतना पड़ता है. सही तालमेल के आभाव में वहां किसी आकस्मिक घटना के होने के बाद लोग इधरउधर भागने लगते हैं. जिससे रास्ता जाम हो जाता है और जिसे जहाँ जगह मिलती उस तरफ़ लोग भागते हैं, फलस्वरूप इस प्रकार की दुखद घटना हो जाती है. दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग भी बहुत ज्यादा उतावले हो जाते हैं और अपना आपा खो देते हैं. इस घटना में भी यह बात सामने आई है कि कुछ लोग पहले से ही पटरी की तरफ़ खड़े थे और फोन का इस्तेमाल कर रहे थे. लोगों की इस लापरवाही को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता. खैर, इस प्रकार के हादसों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र तथा राज्य सरकारों को कई मर्तबा फटकार लगाई है कि ऐसे हादसों से निपटने  के लिए देशव्यापी समान नीति बनाई जाए. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के इस फटकार के बाद भी सरकारें मूकदर्शक बने अगले हादसे का इंतजार करती हैं, इसके अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के दिशानिर्देशों पर गौर करें तो प्रबंधन ने भी भीड़ नियंत्रण के लिए कई बातों का व्यापक स्तर पर जिक्र किया है. मसलन, आपात निकासी निर्बाध हों लेकिन आपात स्थिति में काम आएं, पर्याप्त अग्निशामक की व्यवस्था हो तथा आपात स्थिति में चिकित्सा की सुविधाओं के पर्याप्त इंतजाम हों. इस तरह आपदा प्रबंधन के सुझावों को भी ध्यान में रखकर प्रशासन काम करे, तो इस तरह के भयावह हादसे से बचा जा सकता है. लेकिन सरकार तथा प्रशासन इन सब हिदायतों को ताक पर रख देते हैं, जिसका नतीजा आज हमारे सामने है. लोग उत्सव एवं उमंग से अपने त्यौहार को मनाते हैं, कई ऐसे पर्व हैं जिसमें लाखों लोग एक साथ एकत्र होते हैं ऐसे में इस तरह के हादसे  लोगों के मन में खौफ पैदा कर जाते हैं. इससे उनकी आस्था पर चोट पहुँचती है. इस खौफ को दूर करने का जिम्मा भी प्रशासन और शासन का है. ताकि जनता में भीड़ का भय समाप्त हो सके और उनकी आस्था अपने धर्म के प्रति बनी रहे. अमृतसर हादसे में मानवीय भूल से ज्यादा लापरवाही नजर आती है अब देखने वाली बात होगी कि राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे मजिस्ट्रेट जाँच में 62 मौतों का गुनहगार कौन साबित होता है और दोषियों को कठोर सज़ा मिल पाती है या नहीं?

 

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