Skip to main content

लंबित मुकदमों का निस्तारण जरूरी

    




देश के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर बेटे विगत रविवार को मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों के सम्मलेन को संबोधित करते हुए भावुक हो गये.दरअसल अदालतों पर बढ़ते काम के बोझ और जजों की घटती संख्या की बात करतें हुए उनका गला भर आया.चीफ जस्टिस ने अपने संबोधन में पुरे तथ्य के साथ देश की अदालतों व न्याय तंत्र की चरमराते हालात से सबको अवगत कराया.भारतीय न्याय व्यवस्था की रफ्तार कितनी धीमी है.ये बात किसी से छिपी नहीं है,आये दिन हम देखतें है कि मुकदमों के फैसले आने में साल ही नहीं अपितु दशक लग जाते हैं.ये हमारी न्याय व्यवस्था का स्याह सच है,जिससे मुंह नही मोड़ा जा सकता.देश के सभी अदालतों में बढ़ते मुकदमों और घटते जजों की संख्या से इस भयावह स्थिति का जन्म हुआ है.गौरतलब है कि 1987 में लॉ कमीशन ने प्रति 10 लाख की आबादी पर जजों की संख्या 50 करनें की अनुशंसा की थी लेकिन आज 29 साल बाद भी हमारे हुक्मरानों ने लॉ कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की जहमत नही उठाई.ये हक़ीकत है कि पिछले दो दशकों से अदालतों के बढ़ते कामों पर किसी ने गौर नही किया.जजों के कामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई.केसों की संख्यां रोज़ बढ़ते चले गए लेकिन जजों की संख्या में कोई इजाफा नही हुआ.इस 29 साल के दरमियान कई मुख्य न्यायाधीश बदले,हुकूमतें बदली परंतु किसी का ध्यान इस गंभीर समस्या की तरफ नही गया.ऐसे में माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रधानमंत्री की मौजूदगी में इस गंभीर मुद्दे को उठाना इस बात को दर्शाता है कि मुख्य न्यायाधीश लंबित पड़े मामलों के निस्तारण के लिए सजग हैं.चीफ़ जस्टिस का यह कदम स्वागतयोग्य है.गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लगभग 84 हजार केश लंबित हैं,अकेले हाईकोर्ट में 38 लाख केस पेंडिग में हैं,तो वहीँ निचली अदालतों में लगभग 3,07,05,153 केस आज भी लंबित पड़े है.देश के कोर्ट कचहरियों में फाइलों की संख्या बढ़ती जा रही है,लंबित मुकदमों की फेहरिस्त हर रोज़ बढ़ती जा रही है.फिर भी हमारे लिए गौरव की बात है कि आज भी आमजन का विश्वास न्यायपालिका पर बना हुआ है.अगर उसे शासन से न्याय की उम्मीद नही बचती तब वो न्यायपालिका ने शरण में जाता है.ताकि उसे उसका हक अथवा न्याय मिल सकें.लेकिन न्यायपालिका की सुस्त कार्यशैली एवं इसमें बढ़ते भ्रष्टाचार आदालतों की छवि को धूमिल कर रहें.ग्रामीण क्षेत्रों में आलम ये है कि लोग कोर्ट -कचहरी के नाम पर ही सर पकड़ लेते है,इसका मतलब ये नही कि उनको कोर्ट या न्यायपालिका से भरोसा उठ गया है,वरन जिस प्रकार से वहां की कार्यवाही और न्यायालय की जो सुस्त प्रणाली है,इससे भी लोगो को काफी दिक्कतों का सामना करता पड़ता है.जो अपने आप में न्यायालय की कार्यशैली पर सवालियां निशान लगाता है.सवाल ये कि क्या महज़ जजों की न्युक्ति हो जाने से समस्याएं समाप्त हो जाएँगी ? सवाल की तह में जाएँ तो हमारे लंबित मामलों की सुनवाई न होने की मुख्य वजह जजों की कमी है,मुख्य न्यायाधीश ने भी जजों की संख्या 21000 से बढ़ाकर 40000 हजार करने की वकालत की हैं,सरकार ने भी भरोसा दिया है कि इस मसले पर जल्द बड़ा कदम उठाया जायेगा.देश के लोगों में न्यायपालिका की गरिमा बरकरार रखनें के लिए जरूरी है कि जजों की न्युक्ति जल्दी हो जिससे लंबित पड़े मामलों की सुनवाई जल्द से जल्द किया जा सकें.इसके अतिरिक्त लंबित पड़े मामलों के जल्द निपटारे के लिए समूची अदालती प्रक्रिया को तकनीक से जोड़ा जाना चाहिए.तकनीकी का ज्यादा इस्तेमाल होने से न्याय में भी तेज़ी आएगी और पारदर्शिता भी बनी रहेगी.बहरहाल,न्याय की अवधारणा है कि जनता को न्याय सुलभ और त्वरित मिलें.परन्तुं आज की स्थिति इसके ठीक विपरीत है.आमजन को इंसाफ पाने में एड़ियाँ घिस जा रही,पीढियां खप जा रही है.त्वरित न्याय अब स्वप्न समान हो गया है.लोग कानूनों की पेंच में उलझ कर रह जा रहें हैं,प्रधानमंत्री खुद यह बात बार –बार कहते आयें हैं कि देश के संविधान में कई ऐसे जटिल कानून हैं जिससे आमजन को काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ता है,सरकार उन कानूनों को न्यायसंगत ढंग से खत्म करेगी जिससे न्याय प्रक्रिया में तेज़ी आएगी.खैर,मुख्य न्यायाधीश की बात को प्रधानमंत्री ने गंभीरता से लेते हुए इसी मंच से कहा कि अगर संवैधानिक सीमाएं न हों तो सीजेआई की टीम और सरकार के प्रमुख लोग आपस में बैठकर समाधान निकालें.मोदी ने ये भी भरोसा दिया कि सरकार न्यायपालिका के लिए हर कदम उठाने को तैयार है.लेकिन कई ऐसे मसले आयें है जब न्यायपालिका और कार्यपालिका आमने –सामने खड़े दिखे इसका ताज़ा उदाहरण कोलेजियम है,सरकार को न्यायपालिका से टकराव की स्थिति से बचना चाहिए.लोकतंत्र के इन स्तम्भों को इस बात का भान होना चाहिए कि लंबित पड़े मुकदमों से सबसे ज्यादा दिक्कत आम जनमानस को हो रही है.जनता के हीत के लिए सरकार तथा न्यायपालिका एक साथ मिलकर न्याय तंत्र की खामियों को दूर करें ताकि लोगों को अपने न्यायतंत्र पर भरोसा बना रहें.

Comments

Popular posts from this blog

काश यादें भी भूकंप के मलबे. में दब जातीं ..

    एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे  हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे.  मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख  से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते  हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी  प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो  मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में  एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही  आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...

पठानकोट हमला पाक का रिटर्न गिफ्ट

       दोस्ती के लायक नही पाकिस्तान आदर्श तिवारी -   जिसका अनुमान पहले से लगाया जा रहा था वही हुआ.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाहौर यात्रा के ठीक एक सप्ताह बाद पाकिस्तान का फिर नापाक चेहरा हमारे समाने आया है.भारत बार –बार पाकिस्तान से रिश्तों में मिठास लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है.लेकिन कहावत है ताली दोनों हाथो से बजती है एक हाथ से नही.पाकिस्तान की तरफ से आये दिन संघर्ष विराम का उल्लंघन ,गोली –बारी को नजरअंदाज करते हुए भारत पाकिस्तान से अच्छे संबध बनाने के लिए तमाम कोशिश कर रहा है.भारत की कोशिश यहीं तक नही रुकी हमने उन सभी पुराने जख्मों को भुला कर पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन पाक परस्त आतंकियों ने आज हमे नये जख्म दिए है गौरतलब है कि एक तरफ पाकिस्तान के सेना प्रमुख इस नये साल में पाक को आतंक मुक्त होने का दावा कर रहें है.वही पठानकोट में एयरफोर्स बेस हुए आतंकी हमले ने पाकिस्तान के आतंक विरोधी सभी दावों की पोल खोल दिया.ये पहली बार नही है जब पाकिस्तान की कथनी और करनी में अंतर देखने को मिला हो पाकिस्तान के नापाक मंसूबो की एक...

कश्मीर की उलझन

  कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान में वाक् युद्ध चलता रहा है लेकिन अब मामला गंभीर हो गया है.भारत सरकार ने भी कश्मीर को साधने की नई नीति की घोषणा की जिससे पाक बौखला उठा है.यूँ तो पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज़ नहीं आता. जब भी उसे किसी वैश्विक मंच पर कुछ बोलने का अवसर मिलता है तो वह कश्मीर का राग अलापकर मानवाधिकारों की दुहाई देते हुए भारत को बेज़ा कटघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास करता है. परंतु अब स्थितयां बदल रहीं हैं,कश्मीर पर भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए गुलाम कश्मीर में पाक सेना द्वारा किये जा रहे जुर्म पर कड़ा रुख अख्तियार किया है. साथ ही गुलाम कश्मीर की सच्चाई सबके सामने लाने की बात कही है. गौरतलब है कि पहले संसद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कश्मीर पर बात होगी लेकिन गुलाम कश्मीर पर, इसके बाद सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक बात कही है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा है. जब हम जम्मू–कश्मीर की बात करते हैं तो राज्य के चारों भागों जम्मू ,कश्मीर ,लद्दाख और गुलाम कश्मीर की बात करते हैं...