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इस त्रासदी का ज़िम्मेदार कौन ?

          
 केरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर में रविवार के तड़के आग  लगने से अबतक लगभग 112 लोग काल की गाल में समा गये है,जबकि 350 से अधिक लोग घायल हो गयें हैं.दरअसल इस मंदिर हर साल की भांति इस साल भी नये साल का उत्सव मनाया जा रहा था.जिसमें आतिशबाजी की प्रतियोगिता रखी गई थी,इसी दौरान पटाखें की एक चिंगारी उस जगह पर जा गिरी जहाँ बड़ी मात्रा में पटाखें रखें हुए थें.इससे इतना भीषण विस्फोट हुआ कि इसकी चपेट में मंदिर सहित आस –पास के मकान कुछ ही देर में मलबे मे तब्दील हो गये .इस आगजनी के बाद मची भगदड़ ने सैकड़ो श्रद्धालुओं को अपनी चपेट में ले लिया .हादसें के बाद राहत व बचाव जोरो पर है.इन सब के बीच राज्य सरकार ने इस पुरे मामले की न्यायिक जाँच कराने के आदेश दे दिए हैं.एक बात तो स्पष्ट है कि यह हादसा मंदिर में आतिशबाजी जैसी कुप्रथा के चलते हुई है,लेकिन इस हादसे के  बाद बुनियादी सवाल यही उठता है कि इस त्रासदी का जिम्मेदार कौन है ? सवाल की तह में जाएँ तो केरल के गृह मंत्री ने अपने बयान में कहा है कि प्रशासन ने मंदिर परिसर में आतिशबाजी की इजाजत नही थी,फिर बगैर इजाजत आतिशबाजी की प्रतियोगिता क्यों रखी गई ?जब आतिशबाजी हो रही थी तो प्रशासन ने क्यों नही रोका ? इन प्रश्नों का जवाब न तो सरकार के पास है तथा न ही मंदिर प्रबंधन के पास.केरल में हुए इस हादसे ने देश की जनमानस को झकझोर कर रख दिया.इस ह्रदय विदारक घटना को सुनकर हर कोई विचलित हो गया,बहरहाल,ये पहला मौका नहीं है.जब इस प्रकार का वीभत्स हादसा हुआ हो.देश में हर साल कोई न कोई बड़ा हादसा होता है.लेकिन, इससे रोकने की कोई ठोस नीति सरकार के पास नहीं है .एक बात तो साफ है कि सरकार तथा प्रशासन ने पिछली घटनाओं से सबक लेना उचित नही समझा.अगर सरकार ने कुछ भी सबक लिया होता तो इस प्रकार की दर्दनाक घटना से बचा जा सकता था. गौरतलब है कि इस उत्सव में  प्रदेश के अलग –अलग जिलों से श्रद्धालु बड़ी तादाद में आये थे.जिसके मद्देनजर प्रशासन तथा सरकार को सुरक्षा के व्यापक इंतजाम के साथ भीड़ नियंत्रण को लेकर ठोस योजना बनाने की जरूरत थी.लेकिन इस मसले पर प्रशासन और सरकार पूरी तरह विफल रहें हैं.एक के बाद हो रहे हादसे सैकड़ो परिवारों को ऐसे घाव दे जातें है,जो आजीवन उन्हें दर्द देते रहतें है.इस हादसे मे भी अबतक सौ से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है.जाहिर है कि किसी ने अपना बेटा ,किसी ने अपना पिता ,किसी ने अपनी माँ तो किसी ने अपनी पति को खोया है.किंतु सरकारें और प्रशासन कुछ मुआवजे का मरहम लगा कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जातें है.इस हादसे के बाद भी केंद्र तथा राज्य सरकार ने अपने –अपने स्तर पर घायलों तथा जिनकी मृत्यु हुईं हैं उनके परिजनों को मुआवज़ा देने का ऐलान कर दिया है.बहरहाल,अगर हम भगदड़ के कारणों की बात करें तो कई बातें सामने आती है.प्रथम दृष्टया आयोजकों का प्रशासन के बीच भीड़ नियंत्रण की कोई बड़ी योजना नही होती अगर होती भी है तो, उसे अमल नहीं किया जाता तथा आयोजकों और प्रशासन के  दरमियाँन बेहतर तालमेल नही होता है. जिसका खामियाजा वहां आएं लोगो को भुगतना पड़ता है.सही तालमेल के आभाव में वहां किसी आकस्मिक घटना के होने के बाद लोग इधर –उधर भागने लगते है.जिससे रास्ता जाम हो जाता है.फलस्वरूप इस प्रकार की दुखद घटना हो जाती है.दूसरा सबसे बड़ा कारण यें है कि श्रद्धालु बहुत ज्यादा उतावलें हो जातें है और अपना आपा खो देतें है.श्रद्धालुओं की इस लापरवाही को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता.खैर,इस प्रकार के हादसों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र तथा राज्य सरकारों को कई मर्तबा फटकार लगाई है कि ऐसे हादसों ने निपटने  के लिए देशव्यापी समान नीति बनाई जाएँ लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फटकार के बाद भी सरकारें मूकदर्शक बनें अगले हादसें का इंतजार करतीं हैं,इसके अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के दिशानिर्देशों पर गौर करें को प्रबंधन ने भी भीड़ नियंत्रण के लिए कई बातों का व्यापक स्तर पर जिक्र किया है.मसलन, आपात निकासी निर्बाध हों लेकिन आपात स्थिति में काम आएं,पर्याप्त अग्निशामक की व्यवस्था हो तथा आपात स्थिति में चिकित्सा की सुविधाओं के पर्याप्त इंतजाम हों. इस तरह आपात प्रबंधन के सुझावों को भी ध्यान में रखकर प्रशासन काम करें तो किसी भी भगदड़ को रोकने में सहायक साबित होंगी.लेकिन सरकार तथा प्रशासन इन सब हिदायतों को नजरअंदाज करतें हैं.जिसका नतीजा आज हमारे सामने हैं.लोग पूण्य के लिए मंदिर व  तीर्थस्थान पर जातें है ताकि अपने पापों से मुक्त हो सकें लेकिन इस प्रकार के हादसों से लोगो के मन में खौफ पैदा हो जाता हैं.उनके आस्था पर चोट पहुँचती है.इस खौफ को दूर करने का जिम्मा भी प्रशासन और शासन का हैं.ताकि जनता में भीड़ का भय समाप्त हो सके और उनकी आस्था अपने धर्म के प्रति बनीं रहें.  

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