श्री
श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय विश्व संस्कृति
महोत्सव विवादों में घिर गया है.इस कार्यक्रम की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है,किंतु
अब इस कार्यक्रम पर संशय के बादल मंडराने लगें हैं.आर्ट ऑफ़ लिविंग के 35 साल पूरा
होने के अवसर पर दिल्ली में यमुना किनारे 11 से 13 मार्च तक अंतराष्ट्रीय संस्कृति
महोत्सव का आयोजन होना है.लेकिन यमुना जियो अभियान एनजीओ के संयोजक समेत कुछ और
पर्यावरणविदों ने कार्यक्रम को रदद् कराने के लिए एक याचिका दायर की है.याचिका में
यमुना जिए अभियान का आरोप है कि आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था ने एनजीटी के नियमों को
दरकिनार करते हुए,यमुना किनारे निर्माण कार्य किया है.आरोप ये भी है कि यमुना किनारे
की हरियाली को जलाकर उसपर मलबा डाल कर समतल किया गया है,जिससे यमुना को हमेशा के
लिए नुकसान पंहुचा है.एनजीटी ने याचिका की सुनवाई करते हुए सभी विभागो को कड़ी
फटकार लगाई है.नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकार से पूछा है कि आयोजन के लिए
पर्यावरण मंजूरी की जरूरत क्यों नही है ? एनजीटी के चेयरमैन स्वतंत्र कुमार ने
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जवाब माँगा
है.जाहिर है कि इतने बड़े आयोजन को लेकर सभी पक्षों ने लापरवाही बरती है,किसी ने भी
इस कार्यक्रम को लेकर यमुना तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर ध्यान नही
दिया है.यहाँ तक की सुरक्षा ,पार्किंग,पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आर्ट ऑफ़
लिविंग नेविशेष ध्यान नही दिया है.किसी भी बड़े आयोजन के लिए इस प्रकार की चुक करना
निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है.बहरहाल ,ट्रिब्यूनल ने सेना द्वारा बनाएं गये पंटून
पुल पर भी सवाल खड़े किए हैं. एनजीटी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के पूछा है कि क्या
आयोजन में नियमों की अनदेखी तो नही हुई ? क्या डीडीए ने अनुमति देने के बाद देखा
की नदी में कोई मलबा तो नही डाला गया ? इसके जवाब में डीडीए ने कहा है कि आयोजन की
मंजूरी नियमों के मुताबिक ही दी गई है.डीडीए ने दलील दी है कि वहां कोई मलबा नही
था.वहीँ एनजीटी ने आर्ट ऑफ़ लिविंग से भी सवाल पूछा कि इतने बड़े आयोजन की पूरी
जानकारी डीडीए को क्यों नही दी गई ? इसके जवाब में श्री श्री रविशंकर ने कहा कि
हमने सारी जरूरी मंजूरी ली है,कार्यक्रम के बाद इस जगह को कतई बर्बाद नही किया
जायेगा.सबकी दलीलें सुनने के बाद एनजीटी ने मंत्रालयों के जवाब आने तक सुनवाई को
टाल दिया है.गौरतलब है कि विवाद को बढ़ता देख राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस कार्यक्रम
में शामिल होने में असमर्थता जताई है तो वहीँ प्रधानमंत्री के नही आने की भी
अटकलें तेज़ हो गई हैं.इसमें कोई दोराय नहीं है कि श्री श्री रविशंकर लगातार मानवीय
मूल्यों को सुदृढ़ करने का काम किया है तथा शन्ति दूत के रूप में विश्व भर में अपने
आप को स्थापित किया है. श्री श्री रविशंकर खुद पर्यावरण को लेकर बहुत सजग रहें
है,समय –समय पर उनकी संस्था नदियों को साफ करने के लिए तथा बढ़ते प्रदुषण को कम
करने के लिए लोगो को जागरूक करने का काम करती रहती है.चुकी यह कार्यक्रम
अध्यात्मिक गुरु का है जिसके अनुयायी पुरे विश्व भर में फैले हुए है,इसलिए इस
कार्यक्रम का भविष्य क्या होगा इसपर सबकी नजरें टिकी हुई है.बहरहाल ,अब इस
कार्यक्रम को लेकर सियासत भी तेज़ हो चली है, कांग्रेस समेत कई दल श्री श्री
रविशंकर के बहाने सरकार पर निशाना साधने से नही चुक हैं.सभी विपक्षी दल इस कार्यक्रम के आयोजन को लेकर
सरकार पर सवाल खड़े कर रहें हैं,विरोधियों का आरोप है कि श्री श्री रविशंकर बीजेपी
के करीबी हैं इसलिए सरकार सभी नियमों को ताक पर रखकर कार्यक्रम कराने की अनुमति दे
रही है.वहीँ श्री श्री रविशंकर ने अपने बयान में कहा है कि आर्ट ऑफ़ लिविंग ने सभी
नियमों व कायदों को ध्यान में रखतें हुए इस
कार्यक्रम की तैयारी की है.श्री श्री पूरी तरह आश्वस्त हैं कि फैसला उनके पक्ष में
आ जायेगा,वहीँ इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि आर्ट ऑफ़ लिविंग ने जो
दलीलें दी हैं उसमें विरोधाभास हैं,एनजीटी में दी गई दलील के अनुसार कार्यक्रम में
दो से तीन लाख लोगों के आने की बात कही गई है लेकिन,आर्ट ऑफ़ लिविंग की वेबसाइट पर
स्पष्ट रूप से पढ़ा जा सकता है कि इस कार्यक्रम में देश-दुनिया से तकरीबन पैंतीस
लाख लोगों के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है.आर्ट ऑफ़ लिविंग को यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि कहीं
न कहीं चुक हुई है,जिसके कारण बवाल इतना बढ़ा है.बहरहाल एनजीटी का फैसला जो आएं
परन्तु ऐसे अंतराष्ट्रीय कार्यक्रमों में आयोजकों को सभी नियमों और प्रावधानों का
ठीक ढंग से अनुसरण कर लेना चाहिए ताकि आयोजन पर सवाल उठने की गुंजाइश ही न हो,खुदा
न खास्ता अगर एनजीटी का फैसला आर्ट ऑफ लिविंग के पक्ष में नहीं आया तो इससे 155
देशों के आने वाले प्रतिनिधियों के मन में भारत के प्रति क्या संदेश जायेगा ?विश्व में
भारत की पहचान एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में होती है.ये कार्यक्रम भी
सांस्कृतिक है.इस दृष्टि से इस कार्यक्रम को रदद् करने से भारत की छवि पर बुरा असर
पड़ेगा,अगर कार्यक्रम को लेकर आर्ट ऑफ़ लिविंग ने नियमों व प्रावधानों का उल्लंघन
किया है.इसके बावजूद इस कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति राष्ट्रीय हरित अधिकरण को दे
देनी चाहिए,कार्यक्रम को निरस्त करने से देश की छवि के बुरा असर पड़ेगा.जाहिर है कि
ऐसे अन्तराष्ट्रीय कार्यक्रम राष्ट्र की अस्मिता से जुड़ जाते हैं,आर्ट ऑफ़ लिविंग
के कुछ गलतियों के चलते देश की छवि को नुकसान पहुँचाना कतई उचित नहीं होगा,एनजीटी
को इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला सुनाना चाहिए.अलबत्ता अगर आर्ट
ऑफ़ लिविंग का ये कार्यक्रम एनजीटी के मानकों पर खरा नहीं उतरी है तो संस्था पर कड़ी
कार्यवाही करनी चाहिए.
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