Skip to main content

रामलीला रैली के निहितार्थ




नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश भर में मचे उपद्रव के बीच पूरा देश प्रधानमंत्री की तरफ देख रहा था कि उनपर पर हो रहे लगातार हमले एवं नागरिकता कानून को लेकर फैलाए जा रहे झूठ पर वे क्या जवाब देते हैं. रविवार को देश की राजधानी दिल्ली के चर्चित रामलीला मैदान से 1731 अवैध कालोनियों को केंद्र सरकार द्वारा नियमित कराए जाने के बाद दिल्ली प्रदेश भाजपा इकाई द्वारा आयोजित ‘आभार रैली’ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकता कानून को लेकर सरकार पर हो रहे हमलों का एक-एककर तार्किक जवाब दिया. प्रधानमंत्री ने इस ‘आभार रैली’ के बहाने एक तीर से कई निशाने साधने में सफल रहे.  यह रैली ऐसे वक्त में हुई जब नागरिकता कानून बहस के जेरे में हैं, इसको लेकर तमाम विपक्षी दलों एवं बुद्धिजीवियों  द्वारा सरकार पर तरह-तरह से सवाल उठाए जा रहे हैं, जगह-जगह हिंसात्मक प्रदर्शन हो रहे हैं. अफवाह मशीनरी इतनी तेज़ी से काम कर रहा है कि नागरिकता कानून को मुस्लिमों के खिलाफ़ बताते हुए, यहाँ तक कहा जा रहा है कि यह कानून मुसलमानों को देश से बाहर कर देगा. कैसे कर देगा ? इस सवाल का कोई वाजिब जवाब किसी भी प्रदर्शनकारी एवं मौन सहमति देने वाले इनके राजनीतिक आकाओं के पास के पास नहीं है. यह सवाल पूछते ही अफवाह गिरोह बगलें झाँकने लगते हैं. प्रदर्शन के नाम पर देशभर में हुई हिंसा की जो तस्वीरें आई वह दुखित करने वाली हैं. अफवाह फैलाने तक ही अफवाही गिरोह सीमित नहीं है बल्कि वह लोगों को उकसा कर सड़को पर लाने का भी काम कर रहा है. जो लोग उकसावे में आकर हिंसा कर रहे उनमें ज्यादातर को नहीं मालूम कि वह किसलिए यह सब कर रहे हैं. कुछेक मीडिया रिपोर्टो को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रदर्शन करने वालों को यह तक नहीं मालूम की नागरिकता कानून क्या है और इससे क्या होने वाला है. लिहाज़ा इन अफवाहों के अँधेरे को हटा कर लोगों को सत्य बताने का सार्थक प्रयास प्रधानमंत्री ने किया. दिल्ली के ही मजनू का टीला और मजलिस पार्क के पास शरणार्थियों का कैंप है. जहाँ हमें उनसे बात करने का अवसर मिला. उनके लिए नागरिकता कानून नए जीवन की तरह है. वहीँ जब पाकिस्तान में उनकी स्थिति को लेकर बात करते हैं तो वे वहाँ की पीड़ा बताते हुए रो पड़ते हैं. कैसे एक धर्म विशेष के लोग वहाँ के अल्पसंख्यकों की बहु-बेटियों को उठा ले जाते थे, जबरन धर्म परिवर्तन करा देते थे. शरणार्थियों का स्पष्ट मानना है कि वह अपने धर्म की रक्षा एवं सम्मानयुक्त जीवन व्यतीत करने के लिए ‘अपने हिंदुस्तान’ आए हैं. शरणार्थियों की इस पीड़ा को भी प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया. जाहिर है कि देश में नरेंद्र मोदी के आलोचकों का एक समूह है, जो मोदी की हर गतिविधियों की आलोचना करने को ही अपनी विशेषज्ञता मानता है. यह भी सत्य है कि प्रधानमंत्री उचित समय आते ही अपने आलोचकों को जवाब देने से पीछे नहीं हटते. रामलीला मैदान में भी ऐसा ही हुआ. लगभग सौ मिनट के लंबे भाषण में नरेंद्र मोदी ने नागरिकता कानून को लेकर खड़े किया जा रहे तमाम संशयों की धुल को साफ करने के साथ-साथ अपने तर्कों से आलोचकों एवं विपक्षियों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया.   


 प्रधानमंत्री की विपक्ष को चुनौती -

जब नरेंद्र मोदी के आलोचकों को यथार्थ के धरातल पर विरोध का कोई मुद्दा नजर नहीं आया तो उन्होंने नागरिकता कानून को धार्मिक रंग देकर समाज को भड़काने का काम किया. प्रधानमंत्री ने रामलीला मैदान से खुली चुनौती दी कि उनके कामों की पड़ताल की जाए एवं उसमें भेदभाव को रेखांकित कर देश के सामने लाया जाए. इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिए कि नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफ़लता यही है कि वह योजनाओं का लाभ लाभार्थी तक पहुँचाने में सफल रही है. अटल पेंशन योजना से 1,85,85,000 से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल रहा है. क्या सरकार ने लाभर्थियों की जाति एवं उनका धर्म पूछा ? प्रधानमंत्री आवास योजना के द्वारा 16 दिसंबर 2019 तक 1,80,00,000 करोड़ आवास बना है. जिनका घर नहीं था उन्हें घर मिला, क्या सरकार ने बेघरों को घर देते हुए उनका धर्म पूछा ? इसी तरह 1,31,043 लाख गावं ऑप्टिकल फाइबर से कनेक्ट हो चुके हैं. क्या इससे लाभ लेने वाले ग्रामीणों का धर्म पूछा जायेगा तभी इंटरनेट कनेक्ट होगा ? उज्ज्वला सहित सरकार की कई योजनाएं हैं जो समाज के गरीब,वंचित तबके के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद कर रही हैं.
दिल्ली में भाजपा का चुनावी प्रचार शुरू –
 अवैध कॉलोनियों को वैध कर केंद्र सरकार ने दिल्ली के चालीस लाख लोगों  को घर की समस्या से निजात दिलाई है. यह लोग वर्षों से शंकाओं में घिरे थे, लेकिन सदन में बिल पास होने के बाद उनकी शंकाएं समाप्त हो गई हैं. राजनीतिक रूप से भी भाजपा के लिए यह लाभदायक होने वाला है. प्रधानमंत्री ने इस निर्णय को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर योजनाओं को लटकाने एवं भटकाने का आरोप भी लगाया. दिल्ली की सियासी लड़ाई धीरे-धीरे उफान पर आती हुई दिखाई दे रही है. प्रधानमंत्री ने नागरिकता कानून को लेकर चल रहीं भ्रांतियों को तो दूर किया, इसके साथ-साथ दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रचार का भी बिगुल बजा दिया. लिहाज़ा यह रैली भाजपा का एक शक्ति परीक्षण भी था. प्रधानमंत्री ने इस मंच से मेट्रो निर्माण, प्रदूषण, ट्रैफिक और शुद्ध पानी को लेकर केजरीवाल सरकार को जमकर घेरा और इस दिशा में केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को जनता से अवगत कराया.
प्रधानमंत्री ने नागरिकता कानून का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं के पुराने बयानों को निकाल कर उनके दोहरे रवैये को जनता के सामने रखा. गांधी से लेकर कांग्रेस के मनमोहन सिंह, असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा केंद् सरकार को लिखी गई चिट्टी और कांग्रेस के प्रस्तावों का जिक्र कर कांग्रेस को बेनकाब किया. वहीँ ममता और कम्यूनिस्ट नेताओं को भी उनके बयानों की याद दिलाई. प्रधानमंत्री ने आशंकाओं के आधार पर हिंसा करने वाले लोगों को समझाया, मुस्लिमों को आवश्वस्त किया कि जो हिंदुस्तान की मिट्टी के मुसलमान है, उनका एनआरसी और नागरिकता कानून से कोई लेना-देना नहीं है. प्रधानमंत्री द्वारा इतनी स्पष्टता के बाद अब भ्रम और झूठ के सहारे अपनी सियासत की रणनीति बनाने वालों को बाज आना चाहिए.

Comments

Popular posts from this blog

भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात

      भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात -:   अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं.बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहतें है.लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दी.दरअसल एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है,चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये,पर मै भारत माता की जय नही बोलूँगा.ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है .इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आज़ादी के लिए अपने होंठों पर भारत माँ की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है,भारत माता की जय कहना अपने आप में गर्व की बात है.इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितो की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.इस पुरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भाग

लंबित मुकदमों का निस्तारण जरूरी

     देश के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर बेटे विगत रविवार को मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों के सम्मलेन को संबोधित करते हुए भावुक हो गये.दरअसल अदालतों पर बढ़ते काम के बोझ और जजों की घटती संख्या की बात करतें हुए उनका गला भर आया.चीफ जस्टिस ने अपने संबोधन में पुरे तथ्य के साथ देश की अदालतों व न्याय तंत्र की चरमराते हालात से सबको अवगत कराया.भारतीय न्याय व्यवस्था की रफ्तार कितनी धीमी है.ये बात किसी से छिपी नहीं है,आये दिन हम देखतें है कि मुकदमों के फैसले आने में साल ही नहीं अपितु दशक लग जाते हैं.ये हमारी न्याय व्यवस्था का स्याह सच है,जिससे मुंह नही मोड़ा जा सकता.देश के सभी अदालतों में बढ़ते मुकदमों और घटते जजों की संख्या से इस भयावह स्थिति का जन्म हुआ है.गौरतलब है कि 1987 में लॉ कमीशन ने प्रति 10 लाख की आबादी पर जजों की संख्या 50 करनें की अनुशंसा की थी लेकिन आज 29 साल बाद भी हमारे हुक्मरानों ने लॉ कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की जहमत नही उठाई.ये हक़ीकत है कि पिछले दो दशकों से अदालतों के बढ़ते कामों पर किसी ने गौर नही किया.जजों के कामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई.केसो

लोककल्याण के लिए संकल्पित जननायक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना 70 वां जन्मदिन मना रहे हैं . समाज जीवन में उनकी यात्रा बेहद लंबी और समृद्ध है . इस यात्रा कि महत्वपूर्ण कड़ी यह है कि नरेंद्र मोदी ने लोगों के विश्वास को जीता है और लोकप्रियता के मानकों को भी तोड़ा है . एक गरीब पृष्ठभूमि से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने की उनकी यह यात्रा हमारे लोकतंत्र और संविधान की शक्ति को तो इंगित करता ही है , इसके साथ में यह भी बताता है कि अगर हम कठिन परिश्रम और अपने दायित्व के प्रति समर्पित हो जाएँ तो कोई भी लक्ष्य कठिन नहीं है . 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनते हैं , यहीं से वह संगठन से शासन की तरफ बढ़ते है और यह कहना अतिशयोक्ति   नहीं होगी कि आज वह एक अपराजेय योध्हा बन चुके हैं . चाहें उनके नेतृत्व में गुजरात विधानसभा चुनाव की बात हो अथवा 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव की बात हो सियासत में नरेंद्र मोदी के आगे विपक्षी दलों ने घुटने टेक दिए है . 2014 के आम चुनाव को कौन भूल सकता है . जब एक ही व्यक्ति के चेहरे पर जनता से लेकर मुद्दे तक टिक से गए थे . सबने नरेंद्र मोदी में ही आशा , विश्वास और उम्मीद की नई किरण देखी और इतिहास