नरेंद्र मोदी सरकार के
दुसरे कार्यकाल में संसद किसी एक व्यक्ति पर केन्द्रित रही है, तो वह गृह मंत्री
अमित शाह हैं. एनआईए संशोधन बिल से लेकर अनुच्छेद 370 हटाने तक का ऐतिहासिक निर्णय
हो, गृहमंत्री ने अपने भाषण और अपनी कार्यशैली से अपने आलोचकों को भी प्रभावित
किया है. संसद के शीत सत्र खत्म होने के ठीक पहले नागरिकता संशोधन विधेयक सदन में पारित हो
गया. लोकसभा में तो इस विधेयक के पास होने पर कोई संशय नहीं था, किन्तु राज्यसभा
में बिल पास होगा अथवा इस बार भी अटक के रह जाएगा. यह देखना दिलचस्प था, लेकिन
तमाम संशय हवा में रह गए, सरकार की रणनीति इस बार भी राज्यसभा में सफल हुई और नागरिकता
संशोधन विधेयक राज्यसभा में पास हो गया. सर्वविदित है कि यह विधेयक अपने पड़ोसी देश
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिकता के आधार पर प्रताड़ित
अल्पसंख्यको को भारत की नागरिकता प्रदान करके सम्मानयुक्त जीवन व्यतीत करने का
अवसर प्रदान करेगा. दुर्भाग्य से विपक्ष एवं एक विशेष बौद्धिक कबीले द्वारा इस
विधेयक को लेकर बहुत सारे भ्रम और गलत धारणाओं को विकसित करने का काम तेज़ी से हो
रहा है. देश के एक समुदाय को यह बताया जा रहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के आने
से उनकी यहाँ की नागरिकता समाप्त हो जाएगी. यहाँ तक कि कुछ राजनेता अपनी खोखली दलील
के कारण हास्य का भी पात्र बन रहे हैं. जिन्हें लग रहा है कि इस विधेयक के आने से बिहारी,
पूर्वांचली, तेलगू सबकी नागरिकता खत्म हो सकती है. इस विधेयक पर गृहमंत्री अमित
शाह ने एक-एक सवाल का जवाब तर्कपूर्ण ढंग से लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों सदनों में
दिया, किन्तु जिन्हें इस विधेयक में मानवीय पहलू से अधिक राजनीतिक नफा-नुकसान की
चिंता है. वह इस विधेयक को लेकर तमाम प्रकार की भ्रांतियां खड़ी कर रहे हैं, कि यह विधेयक
मुस्लिमों के खिलाफ़ है. सदन में गृहमंत्री ने बार-बार इस बात पर जोर देकर कहा कि
इस विधेयक से हिंदुस्तान के मुसलमानों का कोई संबंध नहीं है. उन्होंने देश को
आवश्वस्त भी किया कि मुस्लिमों को इससे डरने की कोई आवश्यकता है. इन सब के बावजूद
विपक्ष इस विधेयक को मुस्लिम विरोधी बताने की दिशा में गैरवाजिब चिंगारी को हवा
देने का काम कर रहा है. विपक्षी दलों के नेताओं के बयान एवं उनके वक्तव्यों से इन
निर्णय पर पहुँचाना आसान हो गया है. इनकी मंशा मुस्लिम समाज को भड़काने की है.
बहरहाल, इस विधयेक की आवश्यकता क्यों थी इसको समझना आवश्यक है. इस विधेयक के आने
से भारत में रहने वाले शरणार्थियों को सम्मान एवं गरिमायुक्त जीवन जीने का हक मिल
सकेगा. इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि अफगानिस्तान,बांग्लादेश और पाकिस्तान
से आने वाले हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी तथा इसाई जिन्हें धार्मिक रूप से
प्रताड़ना मिली है और वह, उस प्रताड़ना से भयभीत होकर मुक्ति के लिए हिंदुस्तान आए हैं.
उन्हें नागरिकता प्रदान की जाएगी. बशर्ते जो शरणार्थी 31 दिसंबर 2014 तक या उससे
पहले भारत में आ चुके हों. चुकी इन देशों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इसलिए इस
सवाल का कोई तर्क नहीं है कि इसमें मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया है.
कुछ स्यंभू बौद्धिक जमात के लोग पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों का जिक्र कर रहे
हैं, लेकिन सवाल यह है कि जब पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान इस्लाम में ही आस्था
रखते हैं और उनका आपसी विवाद ‘पैगंबर मोहम्मद’ को आखिरी पैगम्बर ना मानना है. बौद्धिक
जमात के इस तर्क के अनुसार विश्व में सऊदी अरब, शिरिया समेत कई इस्लामिक देशों में
शिया-सुन्नी का आपसी टकराव जगजाहिर है. हैरत नहीं होनी चाहिए कि ये लोग उन देशों
के नागरिकों को प्रताड़ित बताकर उनके लिए भारत की नागरिकता की भी मांग कर दें ! भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान
इस्लाम को मनाने वाले देश हैं और यहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हैं. यह कोई नई बात नहीं
है. जिससे उन्हें हर तरह से प्रताड़ित होना पड़ता है, धार्मिक रूप से भेदभाव, अपने
परिवार की सुरक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, अपने आस्था का सम्मान, आस्था प्रतीकों को
नष्ट करना ये सब क्रूर यातनायें हैं. जिन्हें इन देश की अल्पसंख्यक आबादी ने झेला
है.
आंकड़े बताते हैं कि यह काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था –
यह बात किसी से छिपी हुई
नहीं है कि विभाजन के बाद भारत में अल्पसंख्यकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई, उसके
ठीक उलट पाकिस्तान में अल्पसंख्यक को प्रताड़ना मिली. जिसके परिणामस्वरूप उनकी संख्या
वहाँ तेज़ी से कम हुई. आंकड़ो पर गौर करें तो 1952 में पाकिस्तान में हिन्दुओं की
आबादी 22 प्रतिशत थी, जो 2019 में घटकर महज़ 7-8 प्रतिशत रह गई. इसी तरह बांग्लादेश
में 1974 में हिन्दुओं की जनसंख्या 13.5 प्रतिशत थी, जो 2011 में घटकर 8.5 प्रतिशत
रह गई. इन अल्पसंख्यको के मानवाधिकार की रक्षा पर चुप्पी चारो तरफ दिखी. अंततः
भारत सरकार ने उनके मानवाधिकार को सुरक्षित किया है.
जनसंघ के जमाने से जताई जा रही प्रतिबद्धता को नरेंद्र मोदी ने पूरा किया-
नरेंद्र मोदी सरकार के
दुसरे कार्यकाल में पार्टी जनसंघ के जमाने से जो प्रतिबद्धता और वायदे करती आई है,
उन वायदों को ऐतिहासिक ढंग से पूरा कर रही है. तीन तलाक, अनुच्छेद 370, राममन्दिर
और अब नागरिकता संशोधन विधेयक के माध्यम से लंबे समय से लंबित एक और मुद्दे को
संसद में पारित कराना सरकार की दृढ इच्छाशक्ति को दिखाता है. भारत के मतदाताओं को
यह हर्ष प्रदान करता है कि पूर्ण बहुमत की सरकार चुनने एवं साहसिक नेतृत्व होने से
लंबे कालखंड से उलझे हुए मुद्दे भी सुलझ सकते हैं. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की
जोड़ी ने अपने साहसिक निर्णयों से देश की जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता को और मजबूत
किया है. जनसंघ से लेकर अभीतक पार्टी जिन वायदों को जनता के बीच घोषणा पत्रों के
माध्यम से ले जाती है. उन वायदों को एक-एक करके नरेंद्र मोदी सरकार पूरा कर रही
है. यहाँ जनसंघ के जमाने से लेकर अभीतक पार्टी द्वारा पारित कुछ प्रस्तावों और
घोषणापत्रों का जिक्र करना समीचीन होगा. 31 दिसंबर 1952 को कानपुर में जनसंघ के प्रथम
अधिवेशन में एक प्रस्ताव पास किया. जिसमें पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं की दिनोंदिन
बिगड़ती स्थिति पर चिंता जाहिर की गई. उसमें कहा गया कि “भारत का यह अधिकार ही नहीं
अपितु कर्तव्य भी बनता है कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यको की रक्षा का भार संभाले”. इसी
क्रम में 18 जुलाई 1970 को चंडीगढ़ में भी जनसंघ की भारतीय प्रतिनिधि सभा में एक
प्रस्ताव पारित किया. जिसमें विस्थापितों की चिंता जाहिर की गई. प्रस्ताव में कहा
गया कि “जनसंघ का यह निश्चित मत है कि पाकिस्तान के विस्थापितों को सहायता और
पुनर्वास तथा पाकिस्तान में शेष हिन्दुओं के जीवन, सम्मान और सम्पत्ति की रक्षा के
लिए भारत सरकार को अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के कदम उठाने चाहिए.” दुर्भाग्य
से तत्कालीन सरकार ने इस पर विचार नहीं किया. जिसके परिणामस्वरूप स्थिति आज इतनी
विकराल हो गई है. इसके अलावा जनसंघ ने 1951 में अपने घोषणापत्र में भी स्पष्ट रूप
से विस्थापितों के पुनर्वास की समस्या को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने की बात
कही. जनसंघ ने माना कि जो लोग विभाजन से पीड़ित हैं और भारत के पास आते हैं उनका
पुनर्वास कानूनी रूप से और नैतिक रूप से भी भारत की जिम्मेदारी है. 1971 के
घोषणापत्र में भी जनसंघ ने विभाजन की त्रासदी से पीड़ितों के दुखों को समझते हुए यह
माना कि पूर्वी पाकिस्तान
से साल दर साल लाखों विस्थापितों का आना
जारी है. जनसंघ इस बात पर विशेष ध्यान देगा कि पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ अच्छा व्यवहार हो,
जिससे उन्हें अपने प्राण और इज्जत बचाने के लिए भागना न पड़े. साथ ही जनसंघ यहां आए
सभी विस्थापितों को शीघ्रता से बसाने का प्रबंध करेगा.
अपने घोषणा पत्रों और
पार्टी के दस्तावेजों में पाकिस्तान और बांग्लादेश के शरणार्थियों की समस्याओं को पार्टी
क्रमश: प्रमुखता से उठाती रही. भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के घोषणापत्र में भी
बेहद स्पष्ट रूप से माना कि पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के
व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए, उन्हें उत्पीड़न से बचाने के लिए हम नागरिकता संशोधन
विधेयक को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. भारत के पड़ोसी देशों में उत्पीड़न से
बचने वाले हिंदुओं, जैन, बौद्ध, सिख और ईसाई को भारत में
नागरिकता दी जाएगी. इस विधेयक के माध्यम से नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अपने
प्रेरणा पुरुषों के अधूरे संकल्प को पूरा करने का ऐतिहासिक कार्य किया है तथा देश
की जनता के समक्ष यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपने वायदों, नीतियों एवं
विचारधारा को सत्ता में हो अथवा विपक्ष में उसपर अडिग रहती है.
गृहमंत्री ने हर सवाल का दिया स्पष्ट जवाब -
गृह मंत्री अमित शाह ने
लोकसभा तथा राज्य सभा अपने दोनों भाषणों में विपक्ष द्वारा खड़े किये जा रहे तमाम
सवाल एवं संशयों को तर्कसंगत जवाबों से दूर किया. गृहमंत्री के लोकसभा और राज्य
सभा के भाषण को सुनने के बाद एक बात कहने में कोई हिचक नहीं होना चाहिए कि गृहमंत्री
ने पूरी तैयारी के साथ जवाब दिया. जिससे कई दफा विपक्ष असहज भी दिखने लगा. बहरहाल
जो मुख्य बातें उन्होंने कहीं उसमें उन्होंने बार-बार यह स्पष्ट किया कि नागरिकता संशोधन
विधेयक से हिन्दुस्तानी मुस्लिमों को कोई दिक्कत नहीं होने वाली है. इसके अतिरिक उन्होंने
बांग्लादेश, पाकिस्तान में अल्पसंख्यको को मिली प्रताड़ना का विस्तृत जिक्र किया कि
कैसे उनके साथ धार्मिक प्रताड़ना होती थी. नागरिकता संशोधन विधेयक पर पंडित नेहरु और इंदिरा से लेकर मनमोहन
सिंह तक कांग्रेस कैसे अपने रुख में परिवर्तन लाती रही है उसको भी गृहमंत्री ने इंगित
किया. यह कहने में कोई दोराय नहीं है कि इस विधेयक पर संसद के दोनों सदनों दिलचस्प
चर्चा सुनने को मिली और गृह मंत्री ने अपने भाषण से उन सभी शंकाओं का पटाक्षेप कर
दिया जिसे विपक्ष हवा दे रहा था.
सतर्कता की जरूरत –
इस विधेयक के पारित होते
ही सरकार के सामने मुख्य रूप से दो चुनौतियाँ मौजूद हैं. पहला विपक्ष एवं बौद्धिक
कबीले द्वारा मुस्लिमों को उत्तेजित करने का जो कार्य हो रहा है उसपर तत्काल रोक
लगाकर सत्य और अत्याधिक ढंग से लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है. दूसरा, जिस ढंग
से इस विधेयक को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा है. खासकर बंगाल, असम एवं नार्थ-ईस्ट
के राज्यों के लोगों को भी इस विधेयक को लेकर भारी जागरूकता की जरूरत है. जिससे
उनकी नागरिकता को लेकर जो उनका भय है वह समाप्त हो सके.
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Best of luck🙌🙌