जब तमाम प्रकार की बातें किसी सामाजिक संगठन को लेकर फैलाई जा रहीं हो,
तब ऐसी स्थिति में यह जरूरी जो जाता है कि वह संगठन अपना पक्ष तथा अपना विचार देश
के समक्ष रखे. आरएसएस जैसे सांस्कृतिक संगठन के लिए तो यह और जरूरी हो जाता है.
क्योंकि आज़ादी के पश्चात् ही संघ को लेकर तमाम प्रकार की भ्रांतियों और मिथकों को
बड़े स्तर पर प्रसारित करने का काम किया है.किन्तु संघ अटल होकर अपने पथ से डगमगाए
बगैर राष्ट्र निर्माण के संकल्प के साथ निरंतर आगे बढ़ता गया और हर रोज़ अनूठे कार्यों
से चर्चा भी हासिल करता जा रहा है. इसी क्रम में दिल्ली के विज्ञान भवन में
राष्ट्रीय स्वयं सवेक संघ ने तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया. जिसमे संघ
प्रमुख ने भविष्य का भारत और संघ का दृष्टिकोण पर तीनों दिन लगातार लगभग सभी चर्चित
मुद्दों पर अपनी बात रखी तथा जो सवाल आए उसका जवाब भी दिया. इस आयोजन में हर
विचारधारा से जुड़े लोगों को बुलाने की कोशिश संघ द्वारा की गई. ताकि संघ के विचार
और दृष्टिकोण से सभी परिचित हो सकें. राजनीतिक दलों एवं देश के बड़े बौद्धिक वर्ग, कला,
विज्ञान, संस्कृति एवं शिक्षा के क्षत्रों से जुड़े प्रभावी लोगों को आमंत्रित
किया. कुछेक दलों ने संघ द्वारा प्राप्त आमंत्रण का बहिष्कार भी किया. लेकिन, अच्छा होता कि मन के पूर्वाग्रह को छोड़कर यह लोग
आए होते तथा संघ को लेकर उनके मन में जो संशय है. वह संघ प्रमुख से पूछ लेते.
किन्तु उनके इस स्वभाव से यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्हें संघ के विचारों को
समझने से ज्यादा विरोध करने की हड़बड़ी है. बहरहाल, इन तीन दिनों तक चले आयोजन में बहुत
सारी बातें निकलकर सामने आई.जिसकी पृष्ठभूमि
पर यह कहा जा सकता है कि आरएसएस का
एक अपना विजन है, जो भारतीयता तथा राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत है. गौरतलब है
कि आरएसएस देश, काल और परिस्थिति के अनुसार खुद को अनुकूल बनाने से पीछे नहीं हटने
वाला है. समय –समय पर बदलाव के साथ खुद को जोड़ते जाना भी संघ की बढ़ती शक्ति के
प्रमुख कारको में से एक है. संघ प्रमुख के तीन दिन तक लगातार भाषणों ,सवाल –जवाब
की श्रंखला को देखें तो स्पष्ट पता चलता है कि देश के हर मुद्दों और समस्याओं लेकर
संघ सजग है और उसके निवारण के लिए प्रयासरत भी है. जाति, पंथ, धर्म के भेद को संघ
नहीं मानता बल्कि उसका मूल सबको जोड़ने का है और व्यक्ति निर्माण का है. इसमें कोई
दोराय नहीं है कि देश के एक बड़ा कथित बौद्धिक वर्ग तथा कुछेक राजनीतिक दल आरएसएस
को संकुचित दायरे में ढाल कर नियमित उसके हर सेवा कार्यों की आलोचना करते हैं,
खासकर संघ के हिंदुत्व विचारधारा को लेकर अपप्रचार की सारी सीमाओं को लाँघ जाते
हैं . उसे सांप्रदायिक ,फासिस्ट संगठन कहने से यह वर्ग नहीं हिचकते किन्तु क्या इन
लोगों ने संघ के हिंदुत्व को समझने की कोशिश की ? संघ प्रमुख ने हिंदुत्व को विस्तार
से परिभाषित करते हुए स्पष्ट ढंग से कहा कि सबको साथ लेकर चलने के स्वभाव का नाम
ही हिंदुत्व है. हिंदुत्व सर्व समावेशी है, इसमें देश में रहने वाले सभी
मतावलंबियों के लिए जगह है.जिस दिन कहेंगे कि मुसलमान नहीं चाहिए, उसदिन हिंदुत्व
भी नहीं रहेगा. यहाँ केवल वेद चलेंगे, दूसरे ग्रन्थ नहीं चलेंगे उसी दिन हिंदुत्व
का भाव ख़त्म हो जाएगा. क्योंकि हिंदुत्व में वसुधैव कुटुंबकम शामिल है. इसी तरह कई
ऐसी बात संघ के इस संवाद कार्यक्रम से निकल कर सामने आई जिसे समझना जरूरी है. संघ
प्रमुख ने अपने सवाल –जवाब में लगभग सभी ज्वलंत मुद्दों पर पूछे गए सवालों का जवाब
दिया. मसलन राम मंदिर, आरक्षण, लिंचिंग ,
जाति व्यवस्था, धारा 370, महिलाओं की सुरक्षा, भाषा, शिक्षा तथा संघ और राजनीति से संबंध आदि.जिसका जवाब भी
मोहन भागवत ने संतोषप्रद दिया. लिहाज़ा अब देश की जनता के समक्ष आरएसएस ने अपना
प्रमाणिक मत प्रत्येक मुद्दों पर रख दिया है. जिसको लेकर तरह –तरह के विश्लेषणों
का दौर भी जारी है. किन्तु इन सब बातों में से तीन ऐसे मुद्दों पर संघ प्रमुख ने
मुखरता के साथ अपनी बात रखी जिसको लेकर या तो संघ को घेरा जा रहा था अन्यथा उसको लेकर
एक भ्रमजाल बून दिया गया था. जिसे अपने जवाबों के द्वारा संघ प्रमुख ने उस जाल को
भेदने की कोशिश की. पहला सबसे प्रमुख मुद्दा आरक्षण का था, जिसको लेकर ऐसी अफवाहें
हवा में तैरने लगी थी कि आरएसएस आरक्षण को खत्म करने पर विचार कर रहा है. लेकिन,
आरक्षण के संबंध में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि सामाजिक
विषमता दूर करने के लिए संविधान सम्मत आरक्षण को संघ का पूरा समर्थन है. आरक्षण को
लेकर समय –समय पर उठ रहे विवाद को संघ प्रमुख ने राजनीति को दोषी ठहराते हुए समाज
के सभी अंगो को बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण को जरूरी बताया. भागवत के इस बयान के
बाद संघ विरोधियों द्वारा आरएसएस को आरक्षण विरोधी बताकर फैलाए जा रहे झूठ की हवा
भी निकल गई. इसके साथ –साथ आरक्षण के लाभार्थियों में मन की शंकाएं भी दूर करने का
प्रयास मोहन भागवत ने किया. दूसरा मुद्दा सबसे संवेदनशील और आस्था से जुड़ा हुआ है,
वह है राम मंदिर का. अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन में भाजपा ,संघ तथा उससे जुड़े
संगठनों ने अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन आंदोलन के ढाई दशक से अधिक हो जाने के
उपरांत भी राम मंदिर का मामला सुप्रीमकोर्ट के पास उलझा हुआ है, जिस पर प्रतिक्रिया
देने पर राजनीतिक दल या तो बचते हैं, अथवा अपने बयान के द्वारा संघ और भाजपा पर
तंज़ मारते हैं किन्तु संघ प्रमुख ने बगैर हिचके इस सवाल का जवाब दिया कि मै सर
संघचालक होने के नाते चाहता हूँ कि अयोध्या में रामजन्म भूमि का भव्य मंदिर बनना
चाहिए, भगवान राम बहुसंख्यक समाज के लिए आस्था के केंद्र हैं. और मंदिर का निर्माण
शीघ्र होना चाहिए. मंदिर बन गया तो हिन्दू –मुस्लिम विवाद भी खत्म हो जायेगा. तीसरा
मुद्दा राजनीति और संघ के संबंध का है. जो सबसे दिलचस्प है जिसका जवाब भी संघ
प्रमुख ने बहुत अनोखे अंदाज़ में दिया. प्राय : ऐसा कहा जाता है कि संघ राजनीति में
भले नहीं हो किन्तु भाजपा को पूरी तरह से आरएसएस ही संचालित करता है. ऐसे कई तरह की
बातों के सामने आने से ऐसी स्थिति बना दी गई थी.जिसके कारण संघ के सामाजिक कार्यों
को राजनीति से जोड़ा जाने लगा था. इस कार्य्रकम में एक सवाल भी आया कि भाजपा को
संगठन मंत्री संघ ही क्यों देता है ? इस सवाल का मोहन भगवत ने बड़ी रोचक जवाब दिया.
उन्होंने कहा कि संगठन मंत्री जो मांगते हैं हम देते हैं,और अभी तक किसी ने माँगा
नहीं, मांगेंगे तो विचार करेंगे, काम अच्छा कर रहे होंगें तो जरूर देंगे. हलांकि
संघ प्रमुख ने अच्छे कार्यों की व्याख्या नहीं किया. उन्होंने स्पष्ट किया कि 93
सालों में संघ ने किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं किया बल्कि नीतियों का समर्थन
करता है.और संघ की नीतियों का समर्थन करने वाले दल संघ की शक्ति का फ़ायदा उठा लेते
हैं. उन्होंने भाजपा और संघ के संबंध तथा वर्तमान में संघ के ऊपर तथा सरकार पर यह आरोप प्राय : दिख जाता है कि सरकार
नागपूर से चलती है. इस आरोप भी मोहन भागवत ने पूरी तरह खारिज़ करते हुए, इसे गलत
बताया.इसी तरह संघ प्रमुख ने धारा 370 ,आर्टिकल 35 ए पर भी संघ का मत प्रकट करते
हुए स्पष्ट किया कि यह नहीं रहना चाहिए. कुल मिलाकर इन तीन दिनों तक चले संघ के
कार्य्रकम का निचोड़ यही है कि आरएसएस समय के साथ खुद को ढाल रहा है तथा संघ को
लेकर मिथ्याबोध कराने का जो एजेंडा चलाया
जा रहा है, हरेक मुद्दे पर संघ के नाम से जो अलग –अलग विचार प्रचारित किए जा रहे
थे. उन भ्रांतियों को दूर कर संघ अपना एक प्रमाणिक विचार और विजन देश के सामने
प्रस्तुत किया है. जिसमें संघ का भूत ,वर्तमान एवं भविष्य तीनों की वस्तुस्थिति
सबके सामने रखा है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आरएसएस को लेकर भ्रम फैलानें वाले
लोग समझेंगे ?
एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे. मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...
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