उत्तम स्वास्थ्य मानव जीवन की सबसे प्रमुख जरूरतों में से एक है.
किन्तु आज के दौर में व्यक्ति लगातार बीमारियों की गिरफ़्त में आता जा रहा है, तो
दूसरी तरफ़ नई –नई बीमारियों का आने से खतरा और बढ़ जाता है. जिनके पास पैसा है, जिनकी
आर्थिक स्थिति मजबूत है वह देश अथवा विदेश में जाकर इलाज करवा सकते हैं किन्तु
गांव के अंतिम छोर पर खड़ा भयंकर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति कहाँ जाएगा ? जाएगा भी तो
इलाज में लगने वाली मोटी रकम कहाँ से लाएगा ? यह ऐसे सवाल हैं जिसके जवाब के लिए
गांव –गरीब ,मजदूर तथा वंचित वर्ग सरकार की तरफ़ मुंह कर के वर्षों से जवाब चाहता
था. स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ देश के हर व्यक्ति के मिले यह सरकार का
दायित्व बनता है. लेकिन उसकी गुणवत्ता को परखने की बजाय केवल खानापूर्ति से
दायित्वों से मुक्त होने का समय अब जा चुका है. सरकारी योजनाओं का लाभ लाभार्थियों
तक पहुंचें इस दिशा में देश अब आगे बढ़ा है. जिसका सबसे प्रत्यक्ष उदारहण डीबीटी के
माध्यम से सीधा लाभार्थी के खाते में जाना वाला धन हो अथवा उज्ज्वला योजना से
गरीबों के घर में जलने वाले चूल्हे हो या फिर जनधन के माध्यम से वंचितों को
अर्थतंत्र से जोड़ने की पहल हो, नरेंद्र मोदी सरकार इसको पारदर्शी ढंग से लागू करने
में सफ़ल रही है. सरकार का लक्ष्य जन कल्याण होना चाहिए और इस दिशा में केंद्र
सरकार धीरे –धीरे हर बुनियादी सुविधाओं को गरीबों तक पहुंचाने की पहल कर रही है.
सरकार द्वारा किए जा रहे यह प्रयास सराहनीय है. इसी कड़ी में गत सप्ताह प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने अपने एक और महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री जन
आरोग्य योजना का शुभारम्भ किया है. गौरतलब है कि इस योजना का लाभ दस करोड़ परिवार
यानी लगभग पचास करोड़ लोगों को मिलेगा. यही कारण है कि यह विश्व की सबसे बड़ी
स्वास्थ्य बीमा योजना के रूप में खुद को दर्ज़ किया है. सरकार की यह पहल निश्चित
तौर पर गरीबों को संजीवनी देने का काम करेगी. इस योजना को समझने की कोशिश करें तो स्पष्ट पता
चलता है कि सरकार ने गरीब परिवारों के उस दर्द को महसूस किया है, जब पैसे के आभाव
में उसके परिवार का कोई व्यक्ति असमय मौत का शिकार हो जाता है. इस योजना के द्वारा
लाभार्थी पांच लाख तक का इलाज मुक्त में करा सकेंगे. इसमें कोई दोराय नहीं है कि
आज गरीब ,मज़दूर अपनी कमाई का चालीस से
पचास फीसद हिस्सा ईलाज में खर्च करने को विवश है. इसके दो नुकसान हैं. पहला कि वह
गरीब अपनी गरीबी को चाहते हुए भी दूर नहीं कर पाता और दुर्योग से बीमारी अगर बड़ी
हुई तो पैसे के आभाव के कारण उसे जरूरी इलाज़ नहीं मिल पाता और उसकी जान भी चली जाती.
कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि भारत में महंगे स्वास्थ्य सेवा के कारण
गरीब तो और गरीब हो ही जाता है किन्तु इसके इतर चार से पांच करोड़ लोग गरीबी रेखा
से नीचे चले जाते हैं, ऐसे में इस योजना के सहीं ढंग से अमल में लाने से गरीबी उन्मूलन
की दिशा में यह कारगर साबित होगी. इस योजना से स्वास्थ्य के क्षेत्र में जिस
क्रांतिकारी बदलाव की बात की जा रही थी आयुष्मान भारत वह सामर्थ्य रखता है.
लाभार्थी इस योजना के शुरू होने से सरकारी अथवा निजी अस्पताल में ई-कार्ड दिखाकर इलाज
करवा सकते हैं. आयुष्मान भारत में छोटी से छोटी बीमारी से लेकर गंभीर बीमारियों तक
को शामिल किया गया है. जिसकी संख्या 1300 बताई जा रही है.गंभीर
से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त व्यक्ति का इलाज के आभाव में मृत्यु न हो इसके लिए
सरकार प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है . लेकिन योजनाओं के मकड़जाल में उलझे देश में बड़ी –बड़ी
योजनायें कैसे विफ़ल होती हैं अथवा किस तरह भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ जाती है, यह सबने
देखा है. यह योजना बीमार गरीब तबके के जीवन में नया सवेरा लेकर आया है. हमारे
उपनिषदों में ‘सर्वे सन्तु निरामया’ अर्थात सभी के रोगमुक्त होने की बात कही गई है
तो वहीँ पंडित दीनदयाल के अन्त्योदय की बात कही है. पंडित दीनदयाल के विचारों से
प्रेरित यह सरकार आयुष्मान भारत के माध्यम से दोनों को साकार करने की तरफ़ अग्रसर
हो रही है. लेकिन इसका लाभ तभी देश की आम जनमानस को मिलेगा जब इसका क्रियान्वयन सहीं
ढंग से होगा. क्योंकि भारत के बीमार स्वास्थ तंत्र को दुरुस्त करने की दिशा में कितने
भी कदम क्यों न उठाए जाएँ, वह नाकाफी साबित होते हैं, इसलिए चुनौतियाँ और बड़ी हो
जाती हैं. देश में लगभग चौदह लाख चिकित्सकों की कमी हो अथवा अस्पतालों में हो रही
लापरवाही, इन दोनों का दंश आम जनता को ही
झेलना पड़ता है. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयुष्मान भारत जैसे बड़े मिशन
पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़े. प्राथमिक स्तर से लेकर जिला अस्पताल की दयनीय स्थिति
किसी से छिपी नहीं है. अस्पताल है तो डॉक्टर नहीं, डॉक्टर हैं तो दवा नहीं. ऐसी
परिस्थिति में आयुष्मान भारत के लक्ष्य को
पूरा करने में सरकार को एक विशेष कार्य प्रणाली के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है. क्योंकि
आने वाले दिनों में इस योजना का देश के भीतर तथा विश्व की कई संस्थाएं आयुष्मान के
प्रभावों का मुल्यांकन अवश्य करेंगी. ऐसे में
जब यह मूल्यांकन सामने आए तो देश की स्वास्थ्य तस्वीर में बड़ा अंतर दिखाई दे इस
लक्ष्य को भी सरकार को ध्यान में रखना चाहिए.
एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे. मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...
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