Skip to main content

संसद सत्र : नकारात्मक विपक्ष

 नकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस.

लोकतंत्र में मंदिर संसद में जो हो रहा है उसे देख हमारे मन में कई सवाल उत्पन्न हो रहे हैं.जिसका जवाब मिलना बहुत मुश्किल है.शीतकालीन सत्र भी मानसून सत्र की तरह हंगामे की भेंट चढ़ गया. लोकतांत्रिक धर्म के विरुद्ध, अपने शपथ को ताख पर रख कर हमारे राजनेता इन दिनों संसद में जो कर रहे हैं.वो देश के लोकतंत्र के लिए कुठाराघात से कम नहीं है.लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा चुन कर संसद में पहुंचे इन सांसदों का आचरण देश के लोकतंत्र को शर्मशार कर रहा है. संसद विकास के द्वार खोलती है और विकास तभी संभव है,जब इसका दरवाज़ा खुलेगा, इसके अंदर विकास को लेकर, देश की जनमानस को लेकर चिंतन होगा.परन्तु मौजूदा वक्त में इन बातों का कोई औचित्य नहीं रह गया है.जनता मूकदर्शक बने इस तमासे को कब-तक देखती रहेंगी ? इस सवाल का जवाब भी मिलना कठिन है.आज विपक्षी दल सदन में जो कर रहे हैं वो हमारे लोकतंत्र की गरिमा के विपरीत है.सत्र के शुरुआत में ही सरकार ने विपक्ष को विश्वास में लेने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.हम ये भी कह सकते हैं कि सत्ताधारी दल इस बार नरम है तथा काम कराने को आतुर है बशर्ते विपक्ष बार –बार बेजा हंगामा ना करे लेकिन सरकार के लाखों प्रयास के बाद भी विपक्ष सदन को बाधित करने का काम कर रही है,शीतकालीन सत्र के दरमियान विपक्ष ने जो कहा सरकार ने उसको गंभीरता से लिया.आज हमारे देश में कई ऐसे मुद्दे है.जो जन-सरोकार के है लेकिन, संसद में इसके चर्चा के बजाय विपक्ष उन मुद्दे को ज्यादा तरजीह देने में लगा हुआ है जिसका आम जनमानस से कोई लेना –देना नहीं है.मसलन विपक्ष असहिष्णुता को सबसे गंभीर मसला मानता है तथा चर्चा की मांग करता है.उल्लेखनीय है कि सरकार इस बार विपक्ष के प्रति उदार है.नतीजन देश की संसद में असहिष्णुता पर चर्चा होती है.सरकार ने असहनशीलता पर चर्चा कराया.बहस के दौरान कई दफा सदन बाधित हुआ.इससे ज्यादा हास्यास्पद स्थिति क्या हो सकती है कि असहिष्णुता  पर बहस के दौरान विपक्ष खुद असहिष्णु हो गया.दरअसल, असहिष्णुता ऐसा मुद्दा है जो एक वर्ग विशेष से जुड़ा हुआ है.इसके विसाद पर हमारे राजनीतिक दल सड़क से ससंद तक इस मुद्दे को भुनाने में लगे हैं और उस वर्ग विशेष के हिमायती बन अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हुए हैं.यद्यपि सवाल हुकुमत से भी है और विपक्ष से भी,असहिष्णुता पर हुए मंथन से निकला क्या ?यकीनन इस चर्चा से केवल ससंद का समय जाया किया गया इसके अतिरिक्त कुछ नही.बहरहाल,सरकार का भी लक्ष्य था कि इस सत्र में किसी भी तरह से वस्तु सेवा कर विधेयक पास हो जाएँ.लेकिन इस सत्र में भी जीएसटी सियासत की भेंट चढ़ गया.मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस रोज़ नये नुस्के के साथ संसद में हंगामा करती रही .अभी कुछ रोज़ पहले वीके सिंह के द्वारा दलितों पर दिए गये आपतिजनक टिप्पणी  को लेकर हंगामा चल ही रहा था फिर पाकिस्तान से बातचीत को लेकर भी हंगामा करना शुरू कर दिया.उसके बाद नेशनल हेराल्ड,रेलवे की जमीन अतिक्रमण का मुद्दा अभी चल ही रहा था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के दफ्तर में हुई छापेमारी का मुद्दा आ गया है.इस प्रकार एक लंबी फेहरिस्त है.नकारात्मक मुद्दों की जिसके वजह से हंगामा हो रहा है.इसी कड़ी में एक और मुद्दा कांग्रेस के युवराज़ राहुल गाँधी ने उठाया कि आरएसएस वालें हमे मंदिर में प्रवेश नहीं करने दे रहे .अब ये सोचनीय विषय है कि इसका संसद से क्या लेना –देना ? और रही बात मंदिर जाने की तो मंदिर के तरफ आएं बयान में इसका खंडन किया गया है कि किसी के प्रवेश पर रोक लगाई गई हो.ठीक इसीप्रकार हेराल्ड के मसले पर संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस ने खूब हंगामा किया जिससे संसद से कोई सरोकार ही नही था.लेकिन जबरन ऐसे छोटे –छोटे निराधार व मनगढंत मुद्दों पर विपक्ष संसद को बाधित करने का काम क्यों कर रहा है? दरअसल फिलवक्त में लगता यही है कि कांग्रेस कि एक सूत्रीय रणनीति है कि किसी भी कीमत पर संसद को चलने न दिया जाए. कांग्रेस हर एक मुद्दे पर नकारात्मक विपक्ष की भूमिका अदा कर रही है.जिसका खामियाजा उसे आने वाले चुनावों में भुगतना पड़ सकता है.देश में आज मुद्दों की कमी नहीं है.अगर कांग्रेस ये मान के चल रही है कि विरोध कर के मीडिया की हेडलाइन में रहेंगे और जनता से इसी माध्यम से जुड़ जायेंगे तो, ये कांग्रेस की विकृत मानसिकता का परिचायक है.अगर कांग्रेस जनता से जुड़ता चाहती है तो उसे  किसी भी मुद्दे पर वाजिब विरोध करना चाहिए जिससे जनता में उसके के प्रति सकारात्मकता का भाव पहुंचे और आपके विरोध को गंभीरता से ले, किंतु कांग्रेस उलुल –जुलूल मुद्दे के आधार पर हंगामा कर जनता से छल करने के साथ –साथ  हमारे लोकतंत्र का अपमान कांग्रेसी सांसद कर रहे हैं.देश की जनता भी बखूबी देख रही है कि हमारे द्वारा चुने गये प्रतिनिधि किस प्रकार से लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहे हैं.देश में मुद्दों की कमी नहीं है,जो सीधे तौर पर आमजन से जुड़े हो मसलन किसान,गरीब ,महंगाई ये ऐसे मुद्दे है जिससे जनता सीधे तौर पर जुडी हुई है लेकिन अब ये सत्र भी समाप्त होने को है,ये सभी जो मुख्य मुद्दे होने चाहिए कांग्रेस के अड़ियल रवैये के कारण आज ये मुद्दे गौण है.विपक्ष का मुख्य कार्य होता है जनता के उस मुद्दे को उठाना जिस पर सरकार ध्यान नहीं दे रही हो परन्तु विपक्ष ने इन सब मुद्दों पर बात करना  मुनासिब नहीं समझा.सरकार भी किसान और महंगाई जैसे मुद्दों पर खामोश रही.आज देश के किसानों की हालात कितनी दयनीय है ये बात किसी से छुपी नहीं है.हम देख रहे हैं कि किसान हर रोज़ आत्महत्या कर रहे हैं,महंगाई चरम पर है.ऐसे जन सरोकारी मुद्दों पर हंगामा और चर्चा करने की बजाय विपक्ष ऐसे मुद्दों पर हंगामा कर रहा है जिसमें उसके राजनीतिक स्वार्थ छिपे हुए हैं.इस अलोकतांत्रिक शोर –शराबे के चलते कांग्रेस की छवि और धूमिल हुई है.विपक्ष किसानों की आत्महत्या और महंगाई का मुद्दा उठाता तो जनता का भी उसे समर्थन हासिल होता लेकिन कांग्रेस ने इन सब मुद्दों को भूनाने के बदले अपने पैरो पर खुद कुल्हाड़ी मार लिया है तथा ये साबित कर दिया कि हमारे निजी स्वार्थ से बढ़ कर कुछ नहीं है.

Comments

Popular posts from this blog

भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात

      भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात -:   अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं.बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहतें है.लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दी.दरअसल एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है,चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये,पर मै भारत माता की जय नही बोलूँगा.ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है .इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आज़ादी के लिए अपने होंठों पर भारत माँ की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है,भारत माता की जय कहना अपने आप में गर्व की बात है.इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितो की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.इस पुरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भाग

लोककल्याण के लिए संकल्पित जननायक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना 70 वां जन्मदिन मना रहे हैं . समाज जीवन में उनकी यात्रा बेहद लंबी और समृद्ध है . इस यात्रा कि महत्वपूर्ण कड़ी यह है कि नरेंद्र मोदी ने लोगों के विश्वास को जीता है और लोकप्रियता के मानकों को भी तोड़ा है . एक गरीब पृष्ठभूमि से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने की उनकी यह यात्रा हमारे लोकतंत्र और संविधान की शक्ति को तो इंगित करता ही है , इसके साथ में यह भी बताता है कि अगर हम कठिन परिश्रम और अपने दायित्व के प्रति समर्पित हो जाएँ तो कोई भी लक्ष्य कठिन नहीं है . 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनते हैं , यहीं से वह संगठन से शासन की तरफ बढ़ते है और यह कहना अतिशयोक्ति   नहीं होगी कि आज वह एक अपराजेय योध्हा बन चुके हैं . चाहें उनके नेतृत्व में गुजरात विधानसभा चुनाव की बात हो अथवा 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव की बात हो सियासत में नरेंद्र मोदी के आगे विपक्षी दलों ने घुटने टेक दिए है . 2014 के आम चुनाव को कौन भूल सकता है . जब एक ही व्यक्ति के चेहरे पर जनता से लेकर मुद्दे तक टिक से गए थे . सबने नरेंद्र मोदी में ही आशा , विश्वास और उम्मीद की नई किरण देखी और इतिहास

लंबित मुकदमों का निस्तारण जरूरी

     देश के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर बेटे विगत रविवार को मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों के सम्मलेन को संबोधित करते हुए भावुक हो गये.दरअसल अदालतों पर बढ़ते काम के बोझ और जजों की घटती संख्या की बात करतें हुए उनका गला भर आया.चीफ जस्टिस ने अपने संबोधन में पुरे तथ्य के साथ देश की अदालतों व न्याय तंत्र की चरमराते हालात से सबको अवगत कराया.भारतीय न्याय व्यवस्था की रफ्तार कितनी धीमी है.ये बात किसी से छिपी नहीं है,आये दिन हम देखतें है कि मुकदमों के फैसले आने में साल ही नहीं अपितु दशक लग जाते हैं.ये हमारी न्याय व्यवस्था का स्याह सच है,जिससे मुंह नही मोड़ा जा सकता.देश के सभी अदालतों में बढ़ते मुकदमों और घटते जजों की संख्या से इस भयावह स्थिति का जन्म हुआ है.गौरतलब है कि 1987 में लॉ कमीशन ने प्रति 10 लाख की आबादी पर जजों की संख्या 50 करनें की अनुशंसा की थी लेकिन आज 29 साल बाद भी हमारे हुक्मरानों ने लॉ कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की जहमत नही उठाई.ये हक़ीकत है कि पिछले दो दशकों से अदालतों के बढ़ते कामों पर किसी ने गौर नही किया.जजों के कामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई.केसो