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आत्महत्या की राह पर बदहाल किसान।



उत्तर प्रदेश के मथुरा में पिछले 17 साल से भटक रहे लगभग पच्चीस हजार किसानों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखकर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सामूहिक आत्महत्या करने की अनुमति मांगी है.मथुरा गोकुल बैराज पीड़ित किसान लगभग 17 साल से मुआवज़े के लिए भटक रहे हैं.पिछले वर्ष नवंबर  में किसानों ने अपने हक के लिए धरना भी दिया था, उसके बदले किसानों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक गोलीबारी और लाठियां बरसाई थीं औरउनके आंदोलन को कुचलने की कोशिश की गई थी.हद तो तब हो गई जब गरीब किसानों पर प्रशासन ने लूट, डकैती और हत्या जैसे संगीन आरोप लगाकरअन्यायपूर्ण तरिके से 526 किसानों को जेल में डाल दिया था.गोकुल बैराज बाँध में 11 गावं के किसानों की तकरीबन 700 एकड़ जमीन जलमग्न हो गई है, जिससे 943 परिवारों के पच्चीस हजार सदस्य भूमिहीन हो गए हैं.इससे पहले भी इनके परिवारों के लोग पैसे की कमी के कारण बीमारी और भूखमरी के शिकार होकर काल के गाल में समाते रहे हैं. प्रशासन के आकलन के अनुसार किसानों की मुआवजा राशि 800 करोड़ है लेकिन इन किसानों की सुध न तो प्रशासन ले रहा और न ही शासन.17 साल से यह समस्या नौकरशाही और सियासत के मकड़जाल में फंसकर विकराल रूप धारण कर लिया है.फलस्वरूप किसानों ने ये घातक कदम उठाने का फैसला लिया है.किसानों की आत्महत्या की फेहरिस्त हर रोज़ बढती जा रही है,फिर भी सरकार इस मसले पर गंभीरता नहीं दिखा रही है. नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आकड़े को देखें तो हमारे देश में अन्नदाताओं की हालत का पता चलता है.31 मार्च 2013 तक के आकड़े बताते है कि 1995 से अब तक 2,96 438किसानों ने ये घातक कदम मजबूरन उठाया है, इन 18 सालों के दरमियान  यूपीए के हाथ में भी सत्ता रही तो वहीँ कुछ साल एनडीए ने भी सत्ता का स्वाद चखा, हुकुमत बदली लेकिन किसानों के हालात में सुधार नहीं हुआ.इस कृषि प्रधान देश में कृषि और किसान कितने मुश्किलों से गुज़र रहे हैं.किसानों की बदहाली का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 18 वर्षो में लगभग तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं फिर भी सरकार मौन रहती हैं,जो अन्नदाता दुसरों के पेट को भरता है आज उसी अन्नदाता की सुध लेने वाला कोई नहीं,किसान उर्वरक के बढ़ते दामों से परेशान है तो, कभी नहर में पानी न आने से परेशान है और अब तो मौसम भी किसानों पर बेरहम हो गयी है, बेमौसम बरसात और बाढ़ ने किसानों को तबाह कर दिया है .आखिर गरीब किसान किस पर भरोसा करे. सरकार किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए ऋण माफी,बिजली बिल माफी समेत कई राहत पैकेज आदि तो देती रहती है,परन्तु ये भी उन्हें समय पर नहीं मिलता ,न कि उनकी समस्याओं का स्थानीय समाधान. भारत सरकार किसानों की समस्या का स्थानीय समाधान क्यों नहीं ढूढ़ती इस यक्ष प्रश्न का सटीक जबाब सरकार के पास नहीं है.भारत वह देश है जहां की दो-तिहाई आबादी विशुद्ध रूप से खेती पर निर्भर है.लेकिन इन विकट समस्याओं से किसान इस कदर तंग आ गया है कि वो खेती छोड़ना चाहता है ,एनएसएसओ के आकड़े पर गौर करे तो 42  फीसदी  किसान खेती हमेशा के लिए छोड़ने को तैयार हैं लेकिन विकल्प न होने के कारण वे खेती करने के लिए मजबूर हैं.एक कृषि प्रधान देश में कृषि मजबूरी बस की जा रही है इससे बड़ा दुर्भाग्य देश के लिए और क्या हो सकता है .आज़ादी के इतने सालों के बाद भी किसान अपनी किस्मत सहारे अपनी जिन्दगी जीने को मजबूर है.समय से वर्षा नहीं हुई तो फसल चौपट होने का डर तथा बेमौसम बरसात का डर बाढ़ से फसल डूब जाने की चिंता आज भी किसानों को सोने नहीं देती .देश में चाहे कितने बांध और नहरें क्यों ना बनी हों लेकिन तीन-चौथाई किसान आज भी इंद्र देवता की मेहरबानी को ही अपना नसीब मानते हैं.प्रधानमंत्री को यह एहसास भी होना चाहिए कि उनके द्वारा चलाई गई योजनायें भी किसानों तक ठीक से नहीं पहुंच रही हैं.सरकार की योजनाएं ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गरीब किसानों, मजदूरों को केवल सुनाई देती हैं, उन तक पहुंचती नहीं.प्रधानमंत्री मोदी अपनी सरकार को हर सरकार से अलग रखते है अब ये देखने वाली बात होगी की मोदी योजनाओं के सही क्रियान्वयन के लिए क्या करते है.उल्लेखनीय है कि  सरकार मुआवजे की घोषणा तो कर देती है लेकिन किसानों तक मुआवज़ा पहुंचते–पहुंचते काफी लंबा वक्त गुज़र जाता है और किसान सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट-काट के थक जाता है और हार मान लेता है.फलस्वरूप आत्महत्या जैसा कड़ा कदम उठाने को मजबूर हो जाता है.बहरहाल,सरकार ने भले ही जनधन योजना के जरिये 13 करोड़ से अधिक खाते खोल दिए हों और आधर कार्ड के जरिये किसानों से सीधे सम्पर्क साधने की बात कह रही हो पर,जमीनी हकीकत इससे परे है.किसानों के लिए वही पुरानी लंबी और लचर व्यवथाबनी हुई है.क्या मोदी कुछ ऐसा बड़ा फैसला लेंगे जिससे किसान आत्महत्या जैसे कदम न उठाये.क्या मोदी कुछ ऐसा करेंगे जिससे किसानों तक सीधे सरकार द्वारा दिया गया मुआवजा या योजना का लाभ आसानी से मिल सके ताकि किसान आत्महत्या जैसा निर्णय लेने को मजबूर न हो.प्रधानमंत्री हर रोज़ एक- एक कानून खत्म करने की बात तो करते हैं,अच्छा होगा की मोदी कानून के साथ कृषि के क्षेत्र में जो किसानों की जटिलता है उसे खत्म करें .राजनेताओं के लम्बे –चौड़े वादे सुन –सुन कर किसान त्रस्त आ चुके हैं.हर एक राजनीतिक दल सत्ता को पाने के लिए किसानों के हित में बात करते हैं परन्तु  चुनाव जीतने के बाद भूल जाते हैं. मोदी ने भी किसानों के लिए बड़े –बड़े वायदें किये हैं,इस सरकार से किसानों को बहुत उम्मीदें हैं.अबसमय आ गया है कि मोदी किसानों की उम्मीदों पर खरा उतरें .किसानों को आत्महत्याओं से बचाने के लिए सरकार को गंभीर होने की जरूरत है उन समस्याओं का निवारण करना सरकार की पूर्णतया जिम्मेदारी है,जिसके चलते किसान आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं ,ऐसे गंभीर विषय पर सरकार को जल्द से जल्द कोई बड़ा फैसला लेने की जरूरत है साथ ही सरकार को इन बातों का ख्याल भी रखना चाहिए कि किसानों को बिजली, खाद,पानी के साथ – साथ सरकार द्वारा मिल रहे मुआवज़े  तथा योजनाओं का लाभ समय पर मिल सके.

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