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पूर्वाग्रहों का नंगा प्रदर्शन कर रहा ट्विटर

 

 

 

देश में  इस समय सोशल मीडिया को लेकर उठा कोलाहल शांत होने का नाम नहीं ले रहा है जब भी मामला शांत होने की कगार पर आता ट्विटर की बदमाशी इसे और बढ़ा देती. सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की बात करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं हो रही है क्योंकि ट्विटर ही सभी प्लेटफार्मों का सरदार बनने की कोशिश में लगा हुआ है. ट्विटर ने पिछले एक पखवारे से जो अकड़ व अहंकार दिखाया है उससे तो यही लगता है कि ट्विटर ने एक अलग गणराज्य की स्थापना कर लिया है और इस मुगालते में जी रहा है कि उस गणराज्य द्वारा जारी फरमान के मुताबिक़ ही सभी देश चलें अथवा उसे ही सर्वोपरी रखा जाए. भारत सरकार के नए आईटी नियमों को मनाने को लेकर जिस तरह से विवाद हुआ उससे स्पष्ट हो गया कि सोशल साइट्स कम्पनियां अपने आप को अत्याधिक शक्तिशाली मानने लगी हैं. इनके लिए किसी देश भी के संविधान, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति की गरिमा से खेलना आम हो गया है.  भारत में ट्विटर का पूर्वाग्रह किसी से छुपा नहीं है उससे कहीं अधिक ट्विटर भी यह बताने की उत्सुकता दिखा रहा है कि उसकी  विचारधारा क्या है.  ट्विटर पर कई अधिकृत ब्लू  टिक वाले अकाउंट होंगे जो सक्रिय नहीं होंगे उन सबको भूल ट्विटर ने सबसे पहले उपराष्ट्रपति के अकाउंट से ब्लू टिक वापस ले लिया उसके बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत समेत बड़े नेताओं के ब्लू टिक ट्विटर ने वापस ले लिए. इसके पीछे ट्विटर का तर्क यह था कि यह अकाउंट सक्रिय नहीं थे. ट्विटर का यह तर्क हास्यास्पद तो लगता ही है इसके साथ ही उसके भेदभाव वाली नीति को भी उजागर करता है. क्योंकि जैसे ही ट्विटर का यह तर्क आया सैकड़ो ब्लू टिक अकाउंट लोगों ने खंगाल के ट्विटर के सामने रख दिए, जो वर्षों से सक्रिय नहीं हैं  फिर भी उनका ब्लू टिक बरकरार है. सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया और लोगों के विरोध के बाद आख़िरकार ट्विटर ने पहले उपराष्ट्रपति फिर आरएसएस के पदाधिकारियों के ब्लू टिक को बहाल कर किया है. इस पुरे घटनाक्रम को देखें तो ऐसा लगता है ट्विटर यह दिखाना चाहता था कि वह नए नियम मानने की खीझ उतार रहा है अथवा उसकी नीयत बदला लेने की है. ट्विटर इन गतिविधियों के द्वारा वामपंथी गिरोह के अपने समर्थकों को यह बताना चाहता था कि वह समर्थन में अपनी आवाज बुलंद करें ट्विटर हर तरह से उनके साथ है, लेकिन इस मामले में आम उपयोगकर्ता से लेकर सरकार की ऐसी तीखी  प्रतिक्रिया ट्विटर को मिली जिससे उसे अपने पाँव पीछे खींचने पड़े व जगहंसाई अलग से हुई. गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में  लिखा है कि काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच, बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच. अर्थात किसी भी प्रकार से कोई सींच लें किन्तु केला काटने पर ही फल देता है और नीच विनय से नहीं मानता, वह डांटने पर ही झुकता है. ट्विटर की स्थिति फिलहाल ऐसी ही है. बहरहाल, ट्विटर को लेकर भारत में मतभेद की स्थिति है, दिलचस्प यह है कि समय-समय पर ट्विटर की कारस्तानियों से उसके वैचारिक पूर्वाग्रह के नतीजे सामने आते रहते हैं. एक दो मामले का जिक्र करना समीचीन लगता है. कुछ महीने पहले ट्विटर ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा  के दफ्तर का  ट्विटर अकाउंट अकारण ही बंद कर दिया था. इसको लेकर बड़ा विवाद हुआ था. ऐसे ही भारत की संप्रभुता से खिलवाड़ करते हुए ट्विटर ने लद्दाख के कुछ भाग को चीन का दिखा दिया था. कांग्रेस टूलकीट मामले में तो ट्विटर ने जज बनकर फैसला ही सुना दिया कि भाजपा नेताओं द्वारा ट्विट की गई सामग्री  को मैन्युपलेटेड मीडिया है. एक समय के लिए हम मान लेते हैं कि वह मैन्युपलेटेड था, लेकिन ट्विटर अपने इस कथित पड़ताल  की प्रक्रिया उपयोगकर्ताओं के समक्ष क्यों नहीं रख रहा है ? आज सोशल मीडिया पर हर रोज सैकड़ो ट्वीट दिख जाएंगे जिसमें तथ्य और आंकड़ो से हेरफेर हुआ रहता है. आखिर किसी चुनिन्दा ट्वीट पर ही ट्विटर की नजर क्यों जाती है ? ट्विटर को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर उसका मानक क्या है ? ऐसे ही ट्विटर की मनमानी अकाउंट बंद करने को लेकर भी दिख जाती है. ट्विटर के इस रवैये पर अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आता है- हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता. ट्विटर किस ट्विट को भड़काऊ मानता है उसका आधार क्या होता है. यह पूरी तरह संदिग्ध दिखाई पड़ता है. इस समय एक बात सबके समझ में आ गई है वह है ट्विटर के पास घनघोर अपारदर्शिता है. वह अपनी मर्जी के आधार पर बेलगाम घोड़े की भाँती चलना चाहता है. नए आईटी  नियम सोशल मीडिया के मनमानेपन पर रोक तो लगायेंगे ही इसके साथ ही उपयोगकर्ताओं को अधिक शक्तिशाली बनायेंगे. नियमों को लेकर अनाकनी करने वाले सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को ध्यान रखना चाहिए कि उनका काम सरकार से लड़ना-भिड़ना नहीं बल्कि किसी भी देश के संविधान के अनुसार उस देश के मानकों की गरिमा का ख्याल रखते हुए अपने व्यापार को आगे बढ़ाना और अपने उपयोगकर्ताओं के प्रति जवाबदेह बनना है. किन्तु ये कम्पनियां पारदर्शिता से भी परहेज कर रही हैं और जवाबदेही से भी बचना चाहती हैं, जिससे इनकी मानसिकता पर गंभीर प्रश्नचिंह खड़े होते है. विश्व को कई देशों को इसका भान हो गया है कि सोशल मीडिया साइट्स को अगर खुला मैदान दिया गया अथवा उनकी शातिराना शरारत की अनदेखी की गई तो वह किसी भी राष्ट्र की गरिमा, संप्रभुता पर सीधा हमला करने से पीछे नहीं हटने वाले. इसलिए विश्व के कई देश सोशल मीडिया के संचालन के लिए नियम कानून बना रहे हैं अथवा बना चुके हैं. इसी बीच ट्विटर की मनमौजीपन पर नाइजीरिया ने जो उदाहरण विश्व के सामने रखा है वह यह बताता है कि इन कम्पनियों की अकड़ को कैसे सीधा किया जा सकता है अथवा इनको अपने दायरा का भान कैसे कराया जा सकता है. दरअसल नाइजीरिया के राष्ट्रपति ने एक ट्वीट को ट्विटर ने कुछ समय के लिए हटा दिया. उसका परिणाम यह हुआ कि वहाँ की सरकार ने ट्विटर पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबन्ध लगा दिया है. भारत में ट्विटर की उससे भी बड़ी शरारतपूर्ण हरकत पर सरकार अभी भी नोटिस और अंतिम नोटिस देकर धैर्य का परिचय दे रही है. ट्विटर को यह भान होना चाहिए कि उनकी हरकतों से सरकार का धैर्य कभी भी जवाब दे सकता है इस स्थिति में उनका क्या नफा-नुकसान है.

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