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दक्षिण भारत में भाजपा की रणनीति !




लोकसभा चुनाव राजनीतिक दलों के लिए एक युद्ध की तरह होता है. इसमें तमाम प्रकार की रणनीतियां सफल अथवा विफल होती है. प्राय: जिस राजनीतिक दल को जनादेश प्राप्त होता है, उस दल के कार्यकर्ताओं में विजय के उपरांत जीत के जश्न में आलस्य का भाव आ जाता है और यहीं से संगठन आंतरिक ढंग से कमजोर पड़ने लगता है.लेकिन , भाजपा अध्यक्ष अमित शाह संगठन को सक्रिय रखने और आगे बढ़ाने  के लिए नए –नए सफ़ल प्रयोग करते रहे हैं. अमित शाह के राजनीतिक क्रियाकलापों को समझें तो यह स्पष्ट पता चलता है कि जब पहले पहले लक्ष्य की सफलता की आखिरी पड़ाव पर होते हैं तो, वह अगले लक्ष्य की सलफता का चक्रव्यूह रच चुके होते हैं.गत सप्ताह भाजपा अध्यक्ष ने पदाधिकारियों की बैठक में एक ऐसी बात कही जिसने राजनीति के जानकारों को हैरान कर रखा है. अभी लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड विजय के बावजूद भाजपा अध्यक्ष का यह कहना कि ‘भाजपा अभी अपनी उंचाई पर नहीं पहुंची है’ यह दर्शता है कि अमित शाह अभी संगठन के विस्तार और इस अपार जनसमर्थन के बाद भी रुकने वाले नहीं है. उनका अगला लक्ष्य दक्षिण भारत में संगठन के जनाधार को बढ़ाना है, वैसे शाह की अचूक रणनीति और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में भाजपा अपनी सफलता के सबसे बड़े शिखर पर खड़ी है,बावजूद इसके शाह ‘राम काजु किन्हें बिना मोहे कहाँ विश्राम’ को चरितार्थ करते हुए नजर आ रहे हैं.अमित शाह को यह कई बार कहते हुए देखा गया है कि राजनीति में पार्ट टाइम जैसा कुछ नहीं होता अगर आप राजनीति में हैं तो केवल राजनीति में हैं. अमित शाह ने संगठन में एक ऐसा तंत्र विकसित किया है, जहाँ संगठन बूथ से राष्ट्रीय स्तर पर संवाद किया जा रहा है, कार्यकर्ता हर समय उत्साह में रहे इसके लिए समय –समय पर नए –नए कार्यक्रम चलाए जाते रहे हैं . इसी उत्साह की तलाश शाह, भाजपा के लिए दक्षिण में कर रहे हैं. भाजपा आगामी छह जुलाई से दस अगस्त के बीच सदयस्ता अभियान चलाएगी, इस बार भाजपा का लक्ष्य 20% नए सदस्यों को पार्टी से जोड़ना है. जिसके लिए पार्टी एक व्यापक रणनीति बना रही है इस सदस्यता अभियान के केंद्र में दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु जैसे प्रमुख राज्य शामिल हैं, यह, वह राज्य हैं जहाँ भाजपा तमाम प्रयासों के बावजूद मनचाही सफ़लता हासिल नहीं कर पा रही हैं. हालाँकि बीजेपी की लोकप्रियता इन राज्यों में पहले की अपेक्षा बढ़ी है.अब फिरसे बीजेपी इन राज्यों में सदस्यता अभियान पर जोर देकर राज्य से लेकर मंडल स्तर तक कार्यकर्ताओ को जोड़ने की तैयारी में है. इससे पहले अमित शाह ने अध्यक्ष बनने के तुरंत बाद 1 नवंबर 2014 को सदस्यता अभियान की शुरुआत की थी. सदस्यता अभियान की सफलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा ने इतिहास रचते हुए विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का मुकुट अपने सिर पर सज़ा लिया था. इस सदस्यता अभियान से भाजपा की सदस्यों की संख्या 2,90,55,220 करोड़ से बढ़कर 30 नवम्बर 2015 तक 11,08,88,547 करोड़ पहुंच गई थी.
 यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि भाजपा वर्तमान समय में अपने इतिहास के सबसे स्वर्णिम दौर से गुजर रही है. किन्तु आज भी अमित शाह संतोषप्रद की स्थिति में नही है,लोकसभा चुनाव का एक महीना भी नहीं पूरा हुआ है, तबतक अमित शाह ने ये तय कर लिया कि पार्टी पुन: देशभर में सदस्यता अभियान चलाएगी,वह दक्षिण में भाजपा को शिखर पर देखना चाहते हैं, सर्वविदित है कि बीजेपी भाजपा उत्तर भारत के बरक्स दक्षिण में मजबूत दिखाई नहीं देती लेकिन पूर्वोत्तर के त्रिपुरा ,असम, नगालैंड जैसे राज्यों में अपनी रणनीति के दम पर भाजपा को स्थापित करने वाले शाह का अगला मिशन दक्षिण को फतह करना है. यह सदस्यता अभियान इसी मिशन का हिस्सा है.दक्षिण भारत में भाजपा की दो बड़ी चुनौतियाँ मुख्य रूप से नजर आ रही हैं जिसमें पहला संगठन को सुदृढ़ कर प्रत्येक बूथ तक भाजपा को पहुँचाना है तथा दूसरी चुनौती दक्षिण को क्षेत्रीय क्षत्रपों के वर्चस्व को ध्वस्त करना. पहली चुनौती पर भाजपा ने अपना मिशन शुरू कर दिया है. वहीँ दूसरी चुनौती थोड़ी कठिन है किन्तु राजनीति में आज सफलता की बुलंदीओं पर पहुंचें शाह इसके लिए प्रख्यात हैं. उल्लेखनीय होगा कि त्रिपुरा में 25 वर्षों से गड़े वाम किला को उखाड़ने के पश्चात् अमित शाह की नजरें आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर है. जहाँ बीजेपी सत्ता से दूर है किन्तु इस लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिले जनसमर्थन से भाजपा का हौसला बुलंद है. वर्तमान समय में हमें भाजपा की रणनीति को देखकर यह कहने में गुरेज़ नहीं करना चाहिए कि इस समय भाजपा के लिए नामुमकिन जैसा कुछ नहीं है. इसको समझने के लिए हमें इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के परिणाम देखने होंगें जहाँ बीजेपी ने अभूतपूर्व सफलता अर्जित की.लेकिन इसको विस्तार से समझने के लिए त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत को समझना होगा. 2013 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, परिणाम यह निकला की भाजपा को एक भी सीट हांसिल नहीं हुई थी यहाँ तक कि 49 उम्मीदवार अपनी जमानत राशी भी नहीं बचा सके थे और भाजपा को मात्र 1.87 फ़ीसदी वोट के साथ संतोष करना पड़ा. परन्तु त्रिपुरा के राजनीतिक परिदृश्य में इतना बड़ा बदलाव होने जा रहा है इसका अंदाज़ा किसी को नहीं था. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 43 फ़ीसदी वोटों के साथ 35 सीटों पर विजय प्राप्त किया. यह जीत अप्रत्याशित थी और इस बात का प्रमाण भी कि अमित शाह की अगुआई में भाजपा सफलता के सभी बड़े सोपान गढ़ने के लिए तैयार है, उनका मैनेजमेंट, सोशल इंजीनियरिंग  केवल उत्तर भारत ही नहीं वरन देश के हर राज्यों की राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने तथा उसे बदलने का माद्दा रखता है. यही कारण है कि दक्षिण के राज्यों में भी अमित शाह भाजपा को नए सोपान पर देखने के लिए उत्सुक है. यही उनके स्वर्णिम भाजपा की कल्पना है. गौर करें तो शाह की  रणनीति में हताशा और पूर्व चुनाव के परिणामों की सफ़लता या विफलता से अधिक इस बात पर केन्द्रित रहता है कि आगामी चुनाव में पार्टी कैसे तय लक्ष्य को हांसिल करे. इसी के मद्देनजर वह पार्टी की नीतियों तथा चुनावी योजनाओं का निर्माण कर स्वयं उसे अमल करने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं. यही कारण है कि आज के सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों से अलग उनके आलोचक भी यह बात मानते है कि वह एक अथक परिश्रमी पार्टी अध्यक्ष हैं.

इस सदस्यता अभियान की अगुआई मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं, इस अभियान के तहत भाजपा यह चाहेगी कि पूर्वोत्तर की तरह दक्षिण में भी भाजपा का किला मजबूत हो , अमित शाह भाजपा के जिस स्वर्णिम काल की बात करते हैं और तभी प्राप्त होगा जब बीजेपी दक्षिण के राज्यों में  अभूतपूर्व सफलता पाने में सफल होगी. इस सदस्यता अभियान के जरिये भाजपा 20% सदस्यों को बढ़ाने का लक्ष्य रखा है .किन्तु अभियान की सफलता का दारोमदार इस बात पर निर्भर करता है कि दक्षिण भारत के राज्यों में बीजेपी कितने सदस्यों को अपने साथ जोड़ती है.भाजपा के सामने यह कठिन लक्ष्य है लेकिन दिलचस्प बात यह भी है कि शाह को कठिन लक्ष्यों को हासिल करने में महारथ हासिल है. इस लोकसभा चुनाव परिणाम में खासकर उड़ीसा , पश्चिम बंगाल  और कर्नाटक के नजीते इस बात की तस्दीक करते हैं कि भाजपा के इस नेतृत्व के सामने असाधारण लक्ष्य भी साधारण लगने लगता है.

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