Skip to main content

एनआरसी पर सियासत के मायने


एनआरसी का ड्राफ्ट आज संसद से सड़क तक चर्चा का केंद्रबिंदु बना हुआ है, सभी विपक्षी दल इस मुद्दे पर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहें है,वहीँ बीजेपी का स्पष्ट कहना है कि घुसपैठियों के मसले पर सभी दलों को अपना मत स्पष्ट करना चाहिए,देश की सुरक्षा के साथ भाजपा कोई समझौता नहीं करेगी, लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि भाजपा को छोड़ कोई राजनीतिक दल एनआरसी की महत्ता को समझने की कोशिश नहीं कर रहा अपितु वह अपने राजनीतिक रणनीति के जोड़ –घटाव में लगा हुआ है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पहले राज्यसभा में जिस आक्रमकता के साथ एनआरसी पर राजीव गाँधी के हवाले से कांग्रेस को घेरा इससे कांग्रेस पूरी तरह बौखला गई. अमित शाह ने कांग्रेस की दोमुंही राजनीति को बेनकाब करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. कांग्रेस घुसपैठियों के मामले में खतरनाक राजनीति कर रही है.सदन के अंदर तथा इस मुद्दे पर प्रेस कान्फ्रेंस में अमित शाह ने बार –बार साहस और हिम्मत जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया.आखिर इन दो शब्दों के क्या मायने निकाले जाएँ ? दरअसल घुसपैठियों को कांग्रेस ,टीएमसी दल अपने वोटबैंक के नजरिये से देखते हैं ,इस मसौदे के बाद से उनकी छटपटाहट देखने के उपरांत भी सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है कि घुसपैठिए को चिन्हित होने से किसको वोट का नुकसान पहुँचने वाला है. वहीँ दूसरी तरफ़ अमित शाह भारतीयों की सुरक्षा एवं अधिकार ,मानवाधिकार से जोड़कर यह साबित किया कि भाजपा सरकार में यह हिम्मत है भारतीयता के गौरव एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए वोटबैंक जैसी ओछी  राजनीति वह नहीं कर रही है. जाहिर है कि एनआरसी जैसे मुद्दे राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं.यही कारण है कांग्रेस इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझने की बजाय तुष्टीकरण की खेल में व्यस्त रही और भाजपा सत्ता में आते ही घुसपैठ की  समस्या से असम की जनता को मुक्त कराने की हिम्मत दिखाई. असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में करीब चालीस लाख लोगों के नाम जरूरी दस्तावेज़ न होने के कारण शामिल नहीं किया गया है.गौरतलब है कि असम में बंग्लादेशी घुसपैठियों का मामला एक गंभीर रूप लेता दिखाई दे रहा था. वर्षों से किसी के पास यह ठोस एवं आधिकारिक जानकारी नहीं थी कि असम के अंदर कितने नागरिक अवैध हैं ? असम चुनाव में घुसपैठियों का मुद्दा सभी मुद्दों पर भारी पड़ता हुआ दिखाई दिया था जिसको भाजपा ने चुनाव के समय प्रमुखता से उठाया था और घुसपैठियों से प्रदेश को मुक्त कराने का वायदा किया था, कांग्रेस ने भी अपने घोषणा पत्र में इसका जिक्र किया था लेकिन जनता यह समझती है कि जिसके शासनकाल के दौरान उनके अधिकार एवं संसाधनों पर अवैध ढंग से घुसपैठियों ने अतिक्रमण किया वह कैसे इस गंभीर समस्या से निदान दिला सकता है ? उसके परिणामस्वरुप भाजपा की प्रचंड बहुतम की सरकार बनीं. बहरहाल, इस मुद्दे के आने के पश्चात् कांग्रेस की झूठी सियासत का नकाब भी जार –जार हो गया है. जब सरकार इस घुसपैठियों को चिन्हित करने की दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही है, तब कांग्रेस ने इसका विरोध करके यह प्रमाणित कर दिया है कि उसका  घुसपैठियों से उसके क्या रिश्ते हैं. एक लंबे जद्दोजहद के बाद सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश में अब स्थिति स्पष्ट होती हुई दिखाई दे रही है. जैसे ही एनआरसी का मसौदा देश के सामने आया देश की राजनीति में भूचाल आ गया.यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अवैध नागरिकों को रोकने का मसला असम और उन राज्यों में सभी राजनीतिक दलों द्वारा उठाया जाता, जहाँ अवैध नागरिकों की संख्या बढ़ती जा रही है.लेकिन जैसे ही यह लिस्ट सामने आई कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने इसका जमकर विरोध किया और तमाम बेतुके सवाल सरकार की मंशा पर उठाए. सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिनका नाम सूचि में नहीं है उन्हें नागरिकता साबित करने का मौक़ा दिया जाएगा तथा उन्हें किसी भी प्रकार से परेशान नहीं किया जायेगा. गौरतलब है कि इस मसले पर कोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया है कि जिनका नाम इस लिस्ट में नहीं है, उनके उपर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी. सरकार और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट वक्तव्य के बाद कांग्रेस और ममता के  द्वारा इस विरोध के मायने क्या हैं ? क्या अवैध घुसपैठियों के जरिये वोटबैंक की राजनीति का खेल खेला जा रहा है ? एनआरसी ने भी यह कहा है कि जिनका नाम नागरिक रजिस्टर में नहीं है उनको अपनी नागरिकता को साबित करने के मौक़ा दिया जाएगा इसके साथ –साथ यह जानकारी भी गुप्त रखी गई है. इसके बावजूद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मसले पर जो रूख अख्तियार किया है यह बेहद चिंता करने योग्य है.आखिर ममता किस आधार पर गृह युद्ध छिड़ने की बात कह रही हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं वह इस बयान के जरिये जनता को हिंसा के लिए उकसा रहीं हैं ? देश की राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से देखें अवैध घुसपैठिए देश की सुरक्षा के साथ –साथ आम नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं. इस संवेदनशील मसले पर देश के विपक्षी दलों  ने जिस छिछली राजनीति का परिचय दिया है उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हमारे राजनीतिक दल देश की सुरक्षा जैसे गंभीर विषय पर भी एका दिखाने में असमर्थ हैं.यह सर्वविदित है कि यह आखिरी सूचि नहीं है बल्कि यह एक मसौदा है.लेकिन कांग्रेस और ममता की बौखलाहट यह साबित कर रही है कि उन्हें अपने वोटबैंक की चिंता खाए जा रही है .भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिना लाग लपेट के इस मुद्दे पर जो रुख अपनाया है वह इस बात को समझने के लिए काफ़ी है कि असम  की जनता के साथ वर्षों से हो रहे अधिकारों पर अतिक्रमण के खिलाफ़ भाजपा पूरी तरह प्रतिबद्ध है.

Comments

Popular posts from this blog

काश यादें भी भूकंप के मलबे. में दब जातीं ..

    एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे  हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे.  मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख  से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते  हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी  प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो  मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में  एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही  आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...

पठानकोट हमला पाक का रिटर्न गिफ्ट

       दोस्ती के लायक नही पाकिस्तान आदर्श तिवारी -   जिसका अनुमान पहले से लगाया जा रहा था वही हुआ.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाहौर यात्रा के ठीक एक सप्ताह बाद पाकिस्तान का फिर नापाक चेहरा हमारे समाने आया है.भारत बार –बार पाकिस्तान से रिश्तों में मिठास लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है.लेकिन कहावत है ताली दोनों हाथो से बजती है एक हाथ से नही.पाकिस्तान की तरफ से आये दिन संघर्ष विराम का उल्लंघन ,गोली –बारी को नजरअंदाज करते हुए भारत पाकिस्तान से अच्छे संबध बनाने के लिए तमाम कोशिश कर रहा है.भारत की कोशिश यहीं तक नही रुकी हमने उन सभी पुराने जख्मों को भुला कर पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन पाक परस्त आतंकियों ने आज हमे नये जख्म दिए है गौरतलब है कि एक तरफ पाकिस्तान के सेना प्रमुख इस नये साल में पाक को आतंक मुक्त होने का दावा कर रहें है.वही पठानकोट में एयरफोर्स बेस हुए आतंकी हमले ने पाकिस्तान के आतंक विरोधी सभी दावों की पोल खोल दिया.ये पहली बार नही है जब पाकिस्तान की कथनी और करनी में अंतर देखने को मिला हो पाकिस्तान के नापाक मंसूबो की एक...

कश्मीर की उलझन

  कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान में वाक् युद्ध चलता रहा है लेकिन अब मामला गंभीर हो गया है.भारत सरकार ने भी कश्मीर को साधने की नई नीति की घोषणा की जिससे पाक बौखला उठा है.यूँ तो पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज़ नहीं आता. जब भी उसे किसी वैश्विक मंच पर कुछ बोलने का अवसर मिलता है तो वह कश्मीर का राग अलापकर मानवाधिकारों की दुहाई देते हुए भारत को बेज़ा कटघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास करता है. परंतु अब स्थितयां बदल रहीं हैं,कश्मीर पर भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए गुलाम कश्मीर में पाक सेना द्वारा किये जा रहे जुर्म पर कड़ा रुख अख्तियार किया है. साथ ही गुलाम कश्मीर की सच्चाई सबके सामने लाने की बात कही है. गौरतलब है कि पहले संसद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कश्मीर पर बात होगी लेकिन गुलाम कश्मीर पर, इसके बाद सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक बात कही है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा है. जब हम जम्मू–कश्मीर की बात करते हैं तो राज्य के चारों भागों जम्मू ,कश्मीर ,लद्दाख और गुलाम कश्मीर की बात करते हैं...