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कृषि और ग्रामीण विकास के लिए जरूरी बजट


 आर्थिक समीक्षा आने के पश्चात् यह अंदाज़ा हो गया था कि वित्त मंत्री अरूण जेटली आगामी बजट को राजनीतिक महत्वाकांक्षा से परे एक ठोस बज़ट प्रस्तुत करेंगे.जिसमें ग्रामीण, कृषि और रोजगार पर ज्यादा फोकस रहेगा.हुआ भी ऐसा ही ,वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 2018-19 के आम बजट में ग्रामीण विकास, ग्रामीण रोजगार और स्वास्थ्य को लेकर कई अहम योजनाओं की घोषणाएं की. जो आगमी वर्षों में किसान और ग्रामीण जनता के जीवन में सकरात्मक बदलाव ला सकते हैं. जाहिर है कि जब भी आम बजट आता है सरकार अपने बजट को सराहती है, प्रसंशा करती है वहीँ विपक्ष बजट को लेकर आलोचनात्मक प्रतिक्रिया देता है किन्तु, आम जनता ,गावं की जनता इस आस में जरूर रहती है इस बजट में उसके लिए क्या खास है ? अमूमन यह देखने को मिलता है बजट को सत्ता पक्ष समावेशी और समग्र विकास वाला बजट ,ग्रामीण और कृषि केन्द्रित बजट कहते हैं लेकिन,  यह पहली बार हो रहा है कि 2018-2019 के बजट को प्रधानमंत्री नए भारत का बजट कहा है. गौरतलब है कि 2022 में भारत अपनी स्वतंत्रता के 75वीं वर्षगाठ मनाएगा,इस आज़ादी के साल को प्रधानमंत्री ने नए भारत की परिकल्पना की है. जिसमें युवाओं को रोजगार,सबको छत ,खुले में शौच से मुक्ति,ग्रामीण विकास,सबको शिक्षा,स्वास्थ्य तथा बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से कोई वंचित न रह जाए इस दिशा में सरकार काम कर रही है.न्यू इण्डिया के आलोक में अगर हम इस बजट को समझने का प्रयास करें तो, यह प्रतीत होता है कि यह बजट नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा. बेशक सरकार के समक्ष ग्रामीण रोजगार और किसानों की चुनौतियों से निपटने में तमाम प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.किन्तु जो ख़ाका इस बजट में दिख रहा है उससे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अगर सरकार दृढ इच्छाशक्ति दिखाती है तो, इन लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है.वित्त बजट 2018 -19 के लिए वित्त मंत्री ने कई अहम घोषणाएं कि है मसलन किसानों की आमदनी को दोगुना करना,42 मेगा फ़ूड पार्क बनाने की बात ,सरकार की सफलतम योजनाओं में से एक उज्ज्वला योजना का लक्ष्य पांच करोड़ से बढ़ाकर आठ करोड़ कर दिया है. इसके साथ –साथ सरकार ने बीमार स्वस्थ्य तंत्र के उपचार करने की दिशा में भी कारगर कदम उठाते हुए पांच लाख नए स्वास्थ्य केंद्र,हेल्थ वेलनेस फंड में 1200 करोड़ की मोटी राशि सरकार ने दिया है.24 नए मेडिकल कॉलेज की स्थापना की भी घोषणा की गई है..रोजगार मोदी सरकार के लिए चिंता का सबब बना हुआ है सरकार ने इस बजट में 70 लाख नई नौकरियों तथा पचास लाख युवाओं को फेलोशिप देने का भी निर्णय लिया है.
 किसानों की समस्याओं को दूर करने की पहल  
सरकार ने बदहाल किसानों और घाटे का सौदा कर रहे खेतिहरों की पीड़ा को समझते हुए किसानों को उनकी उत्पादन की लागत से कम से कम पचास प्रतिशत अधिक अर्थात लागत से ढेढ़ गुना देने की बात कही है,सरकार का यह फैसला किसानों के लिए बड़ी सौगात के तौर पर देखा जा रहा है इससे पहले सरकार ने रवि की फसलों के लागत न्यूनतम समर्थन मूल्य को ढेढ़ गुना किया था.इस बजट में सरकार ने खरीफ़ के सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत के ढेढ़ गुना करने का फैसला लिया है.एमएसपी का पूरा लाभ किसानों को मिले सरकार इस दिशा में भी काम कर रही है इसके लिए नीति आयोग जल्द ही राज्य सरकारों के साथ चर्चा करके एक पुख्ता व्यवस्था तैयार करेगा.जिसके परिणाम स्वरूप किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिल सके.हालाँकि सरकार ने कोई समय सीमा का निर्धारण् नहीं किया है.जिससे यह कहना मुश्किल है कि नीति आयोग इस दिशा में प्रयास कब करेगा ? यह सर्वमान्य सत्य है कि देश में किसानों की स्थिति बदतर है. एक के बाद एक चौतरफ़ा संकटों के चक्रव्यूह में फंसे किसान की हर नब्ज को टटोलने का काम अरूण जेटली ने किया है.इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि देश में सैकड़ों सिंचाई परियोजनाएँ चल रहीं है.बावजूद इसके किसानों के खेतों तक पानी मयस्सर नहीं हो पा रहा है.इस बजट में प्रधानमंत्री हर खेत पानी योजना के तहत ,भू –जल सिंचाई स्कीम से वंचित 96 जिलों में शुरू करने का सराहनीय फ़ैसला लिया गया है.गौरतलब है कि 96 जिलों में 30% से भी कम पानी खेतों तक पहुँच पाता है.अब इसके समूचे लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने इसका विस्तार किया है.इस परियोजना के लिए बजट में 2600 करोड़ की धनराशी आवंटित की गई है. किसानों की सबसे बड़ी समस्या बाजार की रही है जाहिर है किसानों में से 86% छोटे और लघु सीमांत श्रेणी के किसान हैं.यह किसान अपने उत्पाद को ऑनलाइन अथवा बड़ी मंडी में बेचने की स्थिति में नहीं होते .सरकार ने इन किसानों की परेशानियों को समझते हुए मौजूदा 22000 हज़ार ग्रामीण हाठों को ग्रामीण कृषि बाज़ार में बदलने का निर्णय लिया है.सरकार ने इन बाज़ारों को ई – नैम से भी जोड़ने की दिशा में काम करेगी.जाहिर है कि किसानों को इससे सीधे तौर पर बाज़ार मिलेगा. जिससे उनका उत्पाद आसानी से व्यापारियों तथा उपभोक्ताओं तक पहुँच जाएगा.अगर यह योजना सफ़ल होती है तो ग्रामीण स्तर पर किसानों के लिए तो लाभकारी होगा ही इसके साथ –साथ रोजगार सृजन की  संभावनाएं भी परिलक्षित होती दिखाई दे रही हैं.जब हाठों को बाज़ार के रूप में विकसित किया जाएगा तो वहाँ लघु एवं कुटीर उद्योगों की भी शुरुआत होगी.किसान खुद अपना उत्पाद तो बेचेगा ही इसके साथ दूकान आदि के जरिये छोटा व्यापार को बढ़ावा मिलेगा.बजट में जैविक कृषि को बढ़ावा देने की बात भी कही गई है.ज्ञातव्य हो कि टमाटर प्याज और आलू जैसी दैनिक उपयोग की सब्जियां है किन्तु उगाने वाले किसान प्राय :कभी मौसम की मार तो, कभी अत्याधिक पैदावार की वजह से अपने उत्पाद को कौड़ियो के दाम बेचने पर मजबूर हो जाते हैं.इसका एक कारण यह है कि यह सब्जियां मौसमी होती है और कम समय में खराब हो जाती हैं.दूसरा कारण किसानों के पास इनके स्टोरेज तथा रख –रखाव की व्यवस्था नहीं होती.ऊपर से फसलों का कुछ हिस्सा ऐसा बच जाता है जो न खराब होता है और, न ही उपभोक्ता उसे खरीदना चाहता है इस द्वन्द में किसानों और उपभोक्ताओं में नोक –झोंक भी देखने को मिलती है.सरकार ने  किसानों की इस समस्या को भी बजट के शामिल करते हुए यह घोषणा किया है कि ऑपरेशन फ्लड के तर्ज पर सरकार “ऑपरेशन ग्रीन” शुरू करने जा रही है.इसके लिए सरकार ने 500 करोड़ की राशि को मंजूरी दी है.जिससे फसलों के रख –रखाव अथवा कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया जा सके.गौरतलब है कि किसानों की एक प्रमुख समस्या ऋण को लेकर रही है.इस  दिशा में सरकार ने कृषि क्षेत्र में संस्थागत ऋण को दस लाख करोड़ से बढाते हुए ग्यारह लाख करोड़ करने की घोषणा की है साथ में पट्टाधारी किसानों की दिक्कतों को समझते हुए उन्हें साहूकारों की चंगूल से मुक्ति की दिशा में सरकार ने नीति आयोग से राज्य सरकारों से परामर्श करने के बाद सुलभता से ऋण देने की दिशा में कदम उठाने जा रही है.इन सब के बीच किसानों को यह उम्मीद थी कि उन्हें ऋण में छुट तथा कर्ज के ब्याज की दिशा में सरकार कोई ठोस कदम उठाएगी किन्तु इस मोर्चे पर किसानों को मायूसी हाथ लगी है.
 ग्रामीण रोजगार की दिशा –  
 रोजगार को लेकर मोदी सरकार निरंतर सवालों के घेरे में रही है.खासकर के नोटबंदी और जीएसटी के बाद विपक्ष यह आरोप लगातार लगाता रहा कि सरकार ग्रामीण ,लघु,कुटीर ,सूक्ष्म उद्योगों को बर्बाद कर दिया है जिससे रोजगार को लेकर विकराल संकट पैदा हुआ है. इस बजट में सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध कराने पर जोर दिया है.आजीविका के आधारभूत सुविधाओं के सृजन के लिए मंत्रालयों द्वारा खर्च की जाने वाली राशि 14.34 लाख करोड़ रूपये आवंटित किया है इसमें 11.98 लाख करोड़ अतिरिक बजटीय संसाधन शामिल हैं.सरकार ने छोटे –छोटे ही सहीं किन्तु रोजगार की दिशा में सार्थक प्रयास इस बजट में किया है.,मसलन, डेयरी उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ –साथ मस्त्स्य क्रांति अवसंरचना विकास कोष तथा पशुपालन क्षेत्र की आवश्यकताओं को समझते हुए आधारभूत सुविधा कोष की स्थापना की है.इस निधि के लिए सरकार ने 10,000 करोड़ रूपये आवंटित किये हैं.परन्तु सूखते तालाब और खत्म होते तलाबों के दौर में मत्स्य पालन अब घाटे का व्यापार हो गया है.सरकार इसे कैसे प्रोत्साहित करेगी यह अपनेआप में बड़ा प्रश्न है ? सरकार ने अब पशुपालन और मछली पालन के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड से जोड़ने जा रही है यह इन छोटे –छोटे निर्णय निश्चित तौर पर रोजगार पैदा करेंगे.गौरतलब है कि पशुपालन और मत्स्य पालन ग्रामीण स्तर के लोग अपनी रोजी –रोटी के लिए करते हैं किन्तु पूंजी न होने से उन्हें यह आइडिया तथा बाज़ार होते हुए भी बेरोजगारी के दौर से गुजरना पड़ता था .सरकार किसान क्रेडिट कार्ड से जैसे ही इन्हें जोड़ेगी ऋण के साथ –साथ सरकारी सब्सिडी का लाभ आसानी से मिलने लगेगा.जिससे वह अपना व्यापार शुरू कर सकेंगे.इसी तरह सरकार ने राष्ट्रीय बाँस मिशन के तहत 1290 करोड़ रूपये परिव्यय किया है.वह किसानों और ग्रामीणों को शुद्ध लाभ देने वाली योजना है.इसी तरह मुद्रा योजना,गोवर्धन योजना जैसे कई कदम सरकार ने इस  बजट में उठाये हैं.जो सीधे तौर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों को बढ़ाएगा.     


क्रियान्वयन सबसे जरूरी –   किसी भी सरकार के लिए उसके विकास का मानक उसकी योजनाओं को लागू होने की प्रक्रिया के आधार पर करते हैं.सरकार सैकड़ों की संख्या में योजनायें और नीतियाँ बनाती है पंरतु उसके लागू होने की दिशा में सक्रिय नहीं होती है. जिससे विकास के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होता है,अर्थ का व्यय होता है  परिणाम के नाम पर कुछ हासिल नहीं होता है उसका दुष्परिणाम यह होता है कि योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है.सरकार के लिए सबसे जरूरी है उसकी नीतियों को क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर हो,जिसके लाभ के लिए योजनाएं शुरू हुई हैं उस लाभार्थी तक योजना का लाभ पहुंचे.तभी योजनाएं सार्थक और सफल मानी जाती हैं.


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