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वर्चस्व की लड़ाई में सपा खो रही राजनीतिक जमीन

  
 


उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे –जैसे करीब आ रहें है सियासत हर रोज़ नए करवट लेती नजर आ रही है.हर रोज़ ऐसी खबरें सामने आ रहीं हैं जो प्रदेश की सियासत में बड़ा उलट फेर करने का माद्दा रखतीं है.सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी की आंतरिक कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, चुकी यहाँ मामला जटिल इसलिए भी हो जाता है कि एक तरफ पार्टी में दरार तो आ ही रही है वहीँ दूसरी तरफ मुलायम परिवार में बिखराव भी हो रहा है.इन दोनों को बिखरने से रोकने में अभी तक पार्टी व परिवार मुखिया मुलायम सिंह भी सफल नहीं हुए हैं. गत जून माह से ही चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश में बीच शुरू हुई तल्खी लागतार बढती जा रही है. अगर गौर करें तो चुनाव में अब ज्यादा समय शेष नहीं रह गया है सभी दल चुनावी बिसात बिछाने में लगें हुए ऐसे में सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी दो खेमे में बंटी हुई नजर आ रही  है.जिसकी बानगी हम कई बार पहले भी देख चुके हैं एक तरफ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव खड़ें हैं.ताज़ा मामला पोस्टर वार को लेकर सामने आया है आगामी तीन नवम्बर को जहाँ अखिलेश यादव “ रथ यात्रा” शुरू करने जा रहें है.वहीँ पञ्च तारीख को पार्टी के पचीस साल पूरे होने पर भव्य आयोजन की तैयारी की जा रही है जिसके कर्ता-धर्ता शिवपाल यादव हैं. पहले दिन अखिलेश अपने रथ की लेकर उन्नाव जायेंगें उसके बाद पार्टी के रजत जयंती समारोह में शिरकत करने के लिए लखनऊ लौट आयेंगें. जिससे यह सन्देश दिया जा सके कि तमाम मतभेद के बावजूद समाजवादी पार्टी एक है.गौरतलब है कि शिवपाल और अखिलेश के बीच घमासान थमने का नाम नही ले रहा है.इस बार कड़वाहट पोस्टरों में माध्यम से सामने आई है मुख्यमंत्री अखिलेश की रथ यात्रा “विकास से विजय की ओर” के लिए लगे पोस्टरों में शिवपाल यादव नदारद हैं जाहिर है कि शिवपाल यादव पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भी हैं सत्ताधारी दल के प्रदेश अध्यक्ष होकर भी मुख्यमंत्री के एक अहम रथ यात्रा के लिए लगे पोस्टर से गायब कर दिया जाना कोई छोटी घटना नही हैं, खबर तो यह भी है कि नेता जी को भी पहले जितना तवज्जो नही दी गई है उनके पोस्टर भी एकाध जगह ही दिख रहें है.इन सब के बीच बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या अखिलेश अलग रास्ता चुनकर सत्ता तक पहुंचना चाहतें हैं ? इस सवाल की तह में जाएँ तो समझ में आता है कि अखिलेश की छवि एक युवा और गंभीर मुख्यमंत्री के रूप में बनी हुई है.वहीँ दूसरी तरफ सपा के कई आला नेता मसलन मुलायम सिंह यादव ,आजम खांन हो अथवा शिवपाल यादव समय –समय पर विवादास्पद बयानों के चलते पार्टी के साथ –साथ  सरकार की छवि को घूमिल करने का काम करतें है.बल्कि अखिलेश अपने बयानों के जरिये चर्चा के केंद्र बनने से बचतें रहें हैं.बहरहाल ,शिवपाल और अखिलेश में जबसे रार सामने आई हैं मुखिया मुलायम सिंह ने भी कई ऐसे बयान दिए हैं जिससे अखिलेश अलग रुख रखने को विवश हुए हैं. इस पुरे प्रकरण में एक और प्रमुख वजह पर ध्यान दें तो  गायत्री प्रजापति का रोल भी कम नहीं है.भ्रष्टाचार और कई मामलों से घिरे गायत्री को अखिलेश ने अपने मंत्रीमंडल से बर्खास्त तो कर दिया लेकिन मुलायम और शिवपाल के राजनीतिक वर्चस्व के आगे  अखिलेश का मुख्यमंत्री पद  बौना और लाचार दिखाई  दिया.इन सब से खिन्न आकर पिछले कुछ समय से पिछले कुछ समय से अखिलेश की कार्यशैली को देखकर यही प्रतीत होता है कि अगर अखिलेश अकेले भी चुनाव में जाने से गुरेज नहीं करने वालें हैं.खैर, अखिलेश की रथयात्रा से शिवपाल की तस्वीर का गायब होना इस बात को साबित करता है कि लाख समाजवादी कुनबे और उसके मुखिया मुलायम सिंह यादव ये रट लगातें रहें कि पार्टी और परिवार एक है लेकिन इसकी सच्चाई जगजाहिर है इस पूरे प्रकरण एक बात तो स्पष्ट है  कि अंतर्कलह से सबसे ज्यादा नुकसान आगामी चुनाव में पार्टी को होने वाला है.शायद इसका अंजादा पार्टी नेताओं को भी हो गया है.इसके बावजूद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह और अखिलेश खेमे के कार्यकर्ता यह  मुगालता पाले बैठें हैं कि इस कलह के उपरांत उनके अखिलेश की एक मजबूत छवि जनता के बीच बनी हैं.उस मजबूत छवि का आधार क्या है ? इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास मौजूं नहीं है खैर, पार्टी के रजत जयंती समारोह और अखिलेश की रथयात्रा की  दोनों ऐसे वक्त में हो रही है जब सपा दो धड़ों में बटी हुई हैं पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ता मुख्यमंत्री के साथ खड़े दिखाई दे रहें है.कुछ कार्यकर्ता इस असमंजस की स्थिति में हैं कि ऐसे नाज़ुक दौर में वह मुख्यमंत्री के साथ खड़ें दिखाई दे या शिवपाल को बल दें अथवा सपा मुखिया की बात सुने यह पूरी स्थिति में सपा को आगामी चुनाव में भारी नुकसान होना तय है. इसमें कोई दोराय नहीं है कि यह वर्चस्व की लड़ाई है इस लड़ाई में एक तरफ अखिलेश तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव हैं.पार्टी में मुलायम सिंह के बाद संगठन के स्तर पर तथा राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में शिवपाल यादव शुरू से जाने जाते रहें हैं किन्तु अखिलेश के बढ़ते राजनीतिक कद ने जहाँ उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया वहीँ अखिलेश के मंत्रीमंडल से शिवपाल की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी शिवपाल के राजनीतिक वजूद पर ही सवाल खड़े कर दिए.अखिलेश और शिवपाल की बर्चस्व की इस लड़ाई में सपा की राजनीतिक जमीन खोती हुई दिखाई दे रही है.इन सब के बीच शिवपाल यादव ने एक ऐसी चाल चली है जो अखीलेश की रथयात्रा के सफलता को सीधे तौर पर प्रभावित करने वालें हैं.तीन नवम्बर को जहाँ अखिलेश यादव “रथ यात्रा निकालने जा रहें है वहीँ उनके प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखे जा रहे चाचा पञ्च नवम्बर को पार्टी रजत जयंती उत्सव मनाएगी यह कार्यक्रम शिवपाल सिंह की अगुआई में हो रहें है.इससे एक और बात निकलकर सामने आ रही है वह है खुद को शक्तिशाली दिखाने का एक तरफ जहाँ अखिलेश रथ यात्रा के जरिये अपनी शक्ति का आभास करायेंगें वहीँ शिवपाल यादव भी रजत जयंती के बहाने सभी समाजवादी कुनबे को जुटा अपने राजनीतिक शक्ति को दिखाने का प्रयास करेंगें.इस भारी खेमेबाज़ी और वर्चस्ववादी रवैये से एक बात तो तय है कि इसबार सपा की सत्ता तक पहुचने वाली डगर कठिन होने वाली  है. हालिये में आये चुनावी सर्वेक्षण भी इस बात के तस्दीक कर चुकें हैं ऐसे में अगर पार्टी में और बिखराव होता है तो यह समाजवादी पार्टी के लिए ऐसा घाव होगा जिसेसे उभरने में पार्टी को कितना समय लगेगा यह कहना मुश्किल होगा.

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