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पुलिस महकमे में सुधार की आस

 

   देश में समयसमय पर पुलिस की कार्य प्रणाली में सुधार की मांग उठती रही है. जाहिर है कि पुलिस महकमे में आज भी तमाम प्रकार की खामियां मौजूद हैं, पुलिस के ऊपर भ्रष्टाचार , दुरव्यवहार, एफआईआर न लिखने सहित कई आरोप आये दिन लगते रहते हैं. यही नहीं आरोप यह भी लगते रहे हैं कि पुलिस एफआईआर में छेड़छाड़ कर मुकदमे को कमजोर करने की कोशिश भी कई दफा करती है. ऐसे गंभीर मसले पर शीर्ष अदालत ने संज्ञान लेते हुए एक अहम आदेश जारी किया है. यूथ लॉयर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि देशभर के थानों में दर्ज एफआईआर को 24 घंटे के भीतर राज्य सरकार या पुलिस की वेबसाइट पर अपलोड किया जाये. न्यायाधीश दीपक मिश्रा और सी नगाप्प्न की बेंच ने याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश देश के सभी राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए दिए हैं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जिन स्थानों पर नेट्वर्किंग की सुविधा नहीं है या जिन दुर्गम इलाकों में इंटरनेट स्लो है वहां समयावधि 24 की बजाय 72 घंटे के अंदर प्राथमिकी को वेबसाइट पर अपलोड करना जरूरी होगा. वहीँ कोर्ट ने संवेदनशील मामले मसलन महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न, छापेमारी, आतंकवाद, विद्रोह आदि मामलों में वेबसाइट पर एफआईआर अपलोड करने में छुट प्रदान की है. बशर्ते संवेदनशील मसले की श्रेणी जिला क्लेक्टर या डीएसपी मामले को समझने के उपरांत करेगा. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पुलिस सुधार की दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है, कोर्ट ने बुधवार को इस मामले पर फैसला सुनाया है. मुख्य अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर किसी कारणवश एफआईआर वेबसाइट पर अपलोड नहीं हुई है फिर भी आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं दी जाएगी. बहरहाल यह फैसला आम जनता के लिए राहत देने वाला फैसला है. जाहिर है कि एफआईआर की कॉपी आम जनता को थाने से प्राप्त करना आसान काम नहीं होता है. पुलिस प्रशासन इसकी कॉपी देने में आनाकानी करती है, जिसके कारण दोनों पक्षों को विधि परामर्श लेने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कभी–कभी तो ऐसे मामले भी प्रकाश में आये हैं जहाँ एफआईआर के दौरान मामला कुछ अलग रहता था किन्तु कोर्ट में केस को कमजोर करने के लिए तथ्यों के साथ छेड़छाड़ कर दिया जाता था. लेकिन इस आदेश के बाद से आम नागरिक इन परेशानियों से मुक्ति पा सकेगा. एफआईआर की इस प्रक्रिया में शुरू से ही पारदर्शिता का आभाव रहा है किन्तु अब कॉपी ऑनलाइन उपलब्ध रहेगी जिससे इस प्रक्रिया में पारदर्शिता  देखने को मिलेगी. कोर्ट के आदेश उपरांत एफआईआर पुलिस वेब पर उपलब्ध होने की वजह से आम जनता को इसकी कॉपी को हासिल करने की प्रक्रिया सुगम हो जाएगी और वेबसाइट पर आसानी से इसकी प्रति उपलब्ध रहेगी. गौरतलब है कि इससे पहले भी दिल्ली हाईकोर्ट ने 2010 में तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले साल ही एफआईआर की कॉपी वेबसाइट पर डालने के निर्देश जारी कर चुके हैं. किन्तु अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे समूचे देश में लागू करने का आदेश किया है.गौर करें तो पुलिस कार्यप्रणाली में व्यापक सुधार की जरूरत है,जाहिर है कि कई बार पुलिस सुधार के लिए हमारे नीति –नियंताओं ने कमेटीयों का गठन किया किन्तु उसकी सिफारिशों को कूड़ेदान में फेक दिया. देश की आम जनता आज भी पुलिस महकमे से भयभीत रहती है. ग्रामीण क्षेत्रों का आलम यह है कि लोग अपने हक के लिए भी थाने जाने से कतराते हैं. हमें इस समस्या की जड़ को समझना होगा कि आखिर क्यों आम जनता पुलिस से मित्रवत संबधं नहीं रखती है? प्राथमिकी दर्ज कराने में एक साधारण व्यक्ति को कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं यह बात जगजाहिर है. सुप्रीम कोर्ट के इस सार्थक पहल के बाद पुलिस सुधार में एक आशा की किरण नजर आती है. ध्यान दें तो वर्तमान समय में पुलिस तंत्र में भ्रष्टाचार आम बात हो गई है एक प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए पीड़ित व्यक्ति को थाने के दस चक्कर लगाने पड़ते हैं. उसके उपरांत भी उसे तमाम प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन बदलते समय के साथ तकनीकी ने आम जनता को जो शक्ति दी है उसी की नतीजा है कि आज व्यक्ति किसी भी काम को आसानी से घर बैठे कर सकता है. जाहिर है कि किसी भी मामले की बुनियाद एफआईआर ही होती है. अगर उसमें पिछले कुछ समय से भारी अनियमितता देखने को मिल रही है तो इसके सुधार के लिए सबसे पहले एफआईआर को तकनीकी से जोड़ते हुए ऑनलाइन किया गया. मगर यह भी स्याह सच है कि ऑनलाइन एफआईआर को कुछेक स्थानों पर ही शुरू किया जा सका हैं अधिकतर जगहों पर तो ऑनलाइन शिकायत मंजूर कर दी जा रही है किन्तु इसे एफआईआर के दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार नही किया जा रहा है. ऐसे में सवाल यह भी खड़ा होता है कि एफआईआर प्रक्रिया को पूर्णतया तकनीकी से क्यों नही जोड़ा जा रहा है ? सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को 13 सप्ताह के अंदर सभी राज्यों को  अमल करने के निर्देश दिए हैं लेकिन अब यह देखते वाली बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राज्य सरकार व पुलिस प्रशासन कितनी गंभीरता से लेती  हैं.
      

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