दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार को फटकार लगाते हुए स्पष्ट किया कि
दिल्ली के उपराज्यपाल दिल्ली कैबिनेट की सलाह के मुताबिक काम करने के लिए बाध्य
नहीं हैं. केजरीवाल सरकार ने अधिकार क्षेत्र के बंटवारे को लेकर अदालत का दरवाज़ा
खटखटाया था. मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने केजरीवाल को संविधान का आईना
दिखाते हुए कहा कि अनुछेद 239 के अनुसार दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है और यह
लागू रहेगा.गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने कहा था कि उपराज्यपाल
मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं. जाहिर है कि दिल्ली सरकार कई दफे
उपराज्यपाल की सलाह के बगैर ही अपने तानाशाही के बूते पर फैसला ले लिया करती है.खैर,कोर्ट
ने केजरीवाल के उन आरोपों को भी खारिज कर दिया, जिसमें केजरीवाल मोदी सरकार पर
हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते रहते हैं. इस मसले पर कोर्ट ने दिल्ली सरकार को
नसीहत देते हुए कहा कि दिल्ली में जमीन व पुलिस से जुड़े फैसले लेने का अधिकार
केंद्र सरकार को है.भारतीय राजनीति में अपने नाटकीय कार्यों के कारण चर्चा में
रहने वाली आम आदमी पार्टी आए दिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों पर निराधार आरोप
लगाती रहती है.कोर्ट के इस तमाचे के बाद भी आम आदमी पार्टी के रवैये में कोई बदलाव
नहीं आया है और आम आदमी पार्टी द्वारा आये बयान के मुताबिक पार्टी अब सुप्रीम
कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी. लेकिन गौर करें तो दिल्ली सरकार जिस तरह से संघीय ढांचे
पर चोट कर रही है वह भर्त्सना योग्य है. बात यहीं समाप्त नहीं होती है,इसके अलावा
समय –समय पर केजरीवाल की पार्टी संविधान को भी ताक पर रख निर्णय लेती रही है.
जिसपर कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया है. मसलन दिल्ली सरकार द्वारा गठित डीडीसीए
घोटाला और सीएनजी फिटनेस घोटाले की जाँच आयोग को भी कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर
दिया कि दोनों आयोगों का गठन उपराज्यपाल की इजाजत के बिना किया गया है. दिल्ली की
जनता ने केजरीवाल को बहुमत दिया ताकि केजरीवाल अपने किये वादों के जरिये दिल्ली का
विकास करें. लेकिन सत्ता में आने के बाद से ही केजरीवाल बेजा आरोप और उन मसलों में
जानबूझ कर उलझ रहें हैं,जिससे उनका कोई सरोकार ही नहीं है. ऐसा नहीं है कि
केजरीवाल और उनके साथियों को दिल्ली सरकार के काम – काज तथा उपराज्यपाल की
शक्तियों व सरकार के संवैधानिक अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं है. बल्कि, यह
एक सोची समझी तथा जानबूझ कर की जा रही क्षुद्र राजनीति का हिस्सा है. ध्यान दें तो
केजरीवाल कई संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों पर आरोप लगाते रहते हैं. पंरतु कुछ ही
समय बाद वह आरोप निराधार साबित होते हैं.दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल को कड़ा संदेश
देते हुए कहा कि दिल्ली के मुख्य उपराज्यपाल ही हैं. यह फैसला दिल्ली सरकार को रास
नहीं आया फलस्वरूप अब दिल्ली सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात
कर रही है, तो यह समझा जा सकता है कि केजरीवाल सरकार अब भी सबक लेने के मूड में
नज़र नहीं आ रही है.ऐसा नहीं है कि कोर्ट ने दिल्ली सरकार को पहली बार फटकार लगाई
हो, अपनी उदंडता के कारण केजरीवाल कई बार कोर्ट से मुंह की खाते रहें हैं. लेकिन
फिर भी अपनी आदतों से बाज़ नहीं आ रहें हैं.हाईकोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद
से स्पष्ट हो गया है कि केजरीवाल संविधान का उल्लंघन करने में माहिर है.
एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे. मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...
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