Skip to main content

जीवन स्तर की चिंताजनक तस्वीर

    ब्रिटेन के हेनली एंड पार्टनर्स द्वारा दुनिया के तमाम एशियाई और योरोपीय आदि देशों के नागरिकों के  जीवन स्तर और सुविधाओं के आधार पर एक सर्वेक्षण किया गया है. सर्वेक्षण  में आये परिणाम के मुताबिक बेहतर जीवन स्तर के मामले में जर्मनी सबसे आगे है जबकि कांगो के लोगों का जीवन स्तर दुनिया के सभी देशों से बदतर है. इस सूची में भारत को टॉप सौ देशों में भी जगह नही दी गई है. भारत इस सूची में 102वें पायदान पर है,  दरअसल इस सर्वे के लिए हेनली एंड पार्टनर्स ने जो मानक तैयार किये थे, वो सभी देशों के लिए एक समान न होकर भिन्न–भिन्न थे. मुख्य रूप से जिस आधार पर रैंकिंग दी गई उसमें स्वास्थ्य नीति, शिक्षा, अर्थव्यवस्था तथा शांति और स्थिरता मुख्य थे. इन सभी मानकों पर जर्मनी अव्वल रहा और पहली रैंक पर कब्जा जमाया. इस सर्वेक्षण में शीर्ष 20 देशों में यूरोपीय देशों का दबदबा है. कुल मिलाकर समूचे सर्वेक्षण के आधार की बात करें तो दुनिया के तमाम देशों के नागरिकों को प्राप्त   बुनियादी सुविधाओं को केंद्र में रखते हुए यह सर्वे किया गया है. इस सर्वेक्षण को अगर भारत के परिदृश्य में समझें तो हमें इसे स्वीकारना में कोई गुरेज नही होना चाहिए. हालांकि सर्वेक्षण के उन आधारों में से कुछ ऐसे भी हैं, जिनके संदर्भ में भारत की स्थिति का मूल्यांकन बहुत न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता. वैसे, मुख्यतः अगर शिक्षा, स्वास्थ्य, शांति आदि आधारों की बात करें तो इन स्तरों पर भारत की स्थिति को निश्चित ही हम उसमें यूरोपीय देशों के मुकाबले काफी पीछे हैं. हालांकि शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के हालात को सुधारने व मजबूत करने के लिए भारत की सरकारों द्वारा तमाम योजनाएं, कार्यक्रम एवं नीतियां बनाई एवं संचालित की जाती रही हैं. ऐसे में, अगर हम भारत को योजनाओं का देश कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आज़ादी के बाद से अबतक स्वास्थ्य, शिक्षा और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए हजारों योजनायें हमारे सत्ताधीशों ने चलाई लेकिन योजनाओं को धरातल पर ठीक से उतारने का काम किसी सरकार ने नहीं किया. ये स्थिति अभी तक ऐसी  ही चली आ रही है हमारी सरकारें योजनायें तो ला रहीं हैं किंतु उस योजना का लाभ व्यक्ति तक पहुँचाने में पूरी तरह से सफल नहीं रही हैं. हैरान करने वाली बात है कि किसी भी सरकार ने योजनाओं की विफलता पर कभी ध्यान नहीं दिया. आज भारत में शिक्षा को लेकर तमाम प्रकार की योजनाएं चल रहीं हैं. मसलन वर्ष 2001 में सर्व शिक्षा अभियान, उसके बाद अधिकाधिक बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए संचालित मिड-डे-मिल योजना तथा वर्ष 2009 में संसद द्वारा ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ आदि योजनाएं हैं जिन्हें देश में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए सरकार द्वारा चलाया जा रहा है. शिक्षा का अधिकार के तहत 6 से 14 साल की उम्र के बीच हे बच्चे को मुफ्त  और अनिवार्य शिक्षा देने की बात कही गई. बावजूद  इन सबके हम अन्य विकसित देशों की अपेक्षा शिक्षा के  मामले में पिछड़े हैं. उच्च शिक्षा में भी हमारें पास प्रकार के शिक्षण संस्थान व टेक्नोलॉजी उपलब्ध नहीं हैं, जो यूरोपीय देशों में प्राथमिक शिक्षा के लिए उपलब्ध हैं. इसका एक दुष्परिणाम हम देख सकतें हैं कि हमारे युवा बड़ी संख्या में शिक्षा के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं. इसी तरह अगर हम स्वास्थ्य व चिकित्सा से क्षेत्र में देखें तो यहाँ स्थिति और बदतर है. चिकित्सा के नाम सरकार सौ से अधिक योजनाओं की घोषणा एक साथ करती हैं किंतु इन योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नही पर पाती. सरकार ने ग्रामीण भारत के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अप्रेल 2005 में  राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की जिसका उद्देश्य महिलाओं ,बच्चों के साथ–साथ वंचित वर्गों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करना था किंतु यह योजना भी जमीनी स्तर पर बहुत ज्यादा कारगर नही हुई. इस सर्वे में हमारा पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण हमारे सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं की विफलता है,यूरोपीय देशों में किसी भी योजना का सीधा लाभ जनता को मिलता है जनता भी उसमें सरकार का पूरा सहयोग करती हैं परंतु, हमारे यहाँ  स्थिति इसके विपरीत है यहाँ किसी भी योजना को पारदर्शिता के साथ लागू करना सबसे बड़ी चुनौती रहती है उसके बाद जनता को सरकार की ढेर सारी योजनाओं को लेकर जानकारी नहीं होती.इस सर्वे में एक बिंदु शांति और स्थिरता भी है, इस बिंदु पर तो भारत की स्थिति काफी हद तक अच्छी है. चूंकि दक्षिण एशिया में तो कम से कम भारत को काफी शांतिपूर्ण देश ही कहा जा सकता है. ऐसे में सर्वे एजंसी ने शांति और स्थिरता के आधार पर भारत की स्थिति को बहुत अच्छा क्यों नहीं माना है, ये समझ से परे है. यहाँ तक अमेरिका को भी शांति व स्थिरता बनाएं रखने के मामले में उसे 30वें नंबर पर रखा गया है. वैसे गौर करें तो दक्षिण एशिया में तो भारत उक्त  मुलभुत सुविधाओं के मामले में  अन्य एशियाई देशों की अपेक्षा एक हद तक बेहतर स्थिति में हैं, ये बात संतोषजनक है किंतु इस सर्वेक्षण में भारत का दुनिया के सौ देशों में अपनी जगह न बनाना एक चिंताजनक स्थिति को दिखता है. अब ऐसी स्थिति में तो भारत का वैश्विक महाशक्ति या विश्वगुरु बनने का स्वप्न बहुत दूर की कौड़ी ही नज़र आता है.


                      

Comments

Popular posts from this blog

काश यादें भी भूकंप के मलबे. में दब जातीं ..

    एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे  हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे.  मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख  से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते  हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी  प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो  मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में  एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही  आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...

डिजिटल इंडिया को लेकर सरकार गंभीर

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी महत्वकांक्षी योजना डिजिटल इंडिया को साकार करने के लिए सिलिकाँन वैली में तकनीक क्षेत्र की सभी दिग्गज कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात की . प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल इंडिया के उद्दश्यों व लक्ष्यों के बारें इन सभी को बताया.तकनीक जगत सभी शीर्षस्थ कंपनियां मसलन गूगल,माइक्रोसॉफ्ट तथा एप्पल के सीईओ ने भारत सरकार की इस योजना का स्वागत करते हुए, भारत में निवेश को लेकर अपने –अपने प्लानों के दुनिया के सामने रखतें हुए भारत को भविष्य की महाशक्ति बताया है. इन सभी कंपनियों को बखूबी मालूम है कि भारत आज सभी क्षेत्रों  नए- नए आयाम गढ़ रहा है. इसको ध्यान में रखतें हुए गूगल के सीईओ सुंदर पिचई ने भारत के 500 रेलवे स्टेशनों को वाई -फाई से लैस करवाने के साथ 8 भारतीय भाषाओं में इंटरनेट की सुविधा देने की घोषणा की तो वहीँ माइक्रोसॉफ्ट ने भी भारत में जल्द ही पांच लाख गावों को कम लागत में ब्रोडबैंड तकनीकी पहुँचाने की बात कही है.इस प्रकार सभी कंपनियों के सीईओ ने भारत को डिजिटल बनाने के लिए हर संभव मदद के साथ इस अभियान के लिए प्रधानमंत्री मोदी से कंधा से कंधा ...

लोकतंत्र पर बड़ा आघात था आपातकाल

  लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को 25 जून की तारीख याद रखनी चाहिए. क्योंकि यह वह दिन है जब विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को बंदी बना लिया गया था. आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय है , जिसके दाग से कांग्रेस कभी मुक्त नहीं हो सकती. इंदिरा गांधी ने समूचे देश को जेल खाने में तब्दील कर दिया था. लोकतंत्र के लिए उठाने वाली हर आवाज को निर्ममता से कुचल दिया जा रहा था, सरकारी तंत्र पूरी तरह राजा के इशारे पर काम कर रहा था. जब राजा शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूँ तो स्वभाविक है कि इंदिरा गांधी पूरी तरह लोकतंत्र को राजतंत्र के चाबुक से ही संचालित कर रही थीं. गौरतलब है कि इंदिरा गांधी किसी भी तरीके से सत्ता में बने रहना चाहती थी. इसके लिए वह कोई कीमत अदा करने को तैयार थी किन्तु इसके लिए लोकतांत्रिक मूल्यों पर इतना बड़ा आघात होने वाला है शायद इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी.   देश में इंदिरा गाँधी की नीतियों के खिलाफ भारी जनाक्रोश था और जयप्रकाश नारायण जनता की आवाज बन चुके थे. जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ रहा था इंदिरा सरकार के उपर खतरे के बादल मंडराने लगे थे. हर रोज हो रहे प्रदर्...