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मालदा की असहिष्णुता पर मौन क्यों

       मालदा की असहिष्णुता पर मौन क्यों ?
 
उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आज़म खान के बयान के प्रतिकार में कथित हिन्दू नेता कमलेश तिवारी ने आज से तकरीबन दो महीने पहले फेसबुक पर पैंगम्बर मोहम्मद साहब के प्रति कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.इस टिप्पणी ने पुरे देश में तहलका मचा कर रखा दिया है.जगह –जगह मुसलमान प्रदर्शनकारी कमलेश तिवारी को फांसी देने के लिए सड़क पर उतर आये हैं,बात यही समाप्त नही होती है.बिजनौर जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अनवारुल हक और नजीबाबाद के एक और मौलाना ने कमलेश तिवारी के सर कलम करने पर इनाम राशी की भी घोषणा कर दी है.आज तकरीबन दो महीने बाद ये भीड़  उत्तर प्रदेश,राजस्थान ,भोपाल ,बिहार के रास्ते पश्चिम बंगाल के मालदा शहर में तांडव मचाये हुए है.गौरतलब है कि कमलेश तिवारी की आपत्तिजनक  टिप्पणी के खिलाफ पश्चिम बंगाल के मालदा में गत रविवार को कालियाचक थाना क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के लोगो ने हिंसक विरोध जुलुस निकालते हुए थाना पर हमला बोल दिया उसके बाद थाने में आग दिया.मौके पर पहुंची बीएसएफ की गाड़ी पर भी हमला किया गया.प्रदर्शनकारियों ने सरकारी बस,जिप्सी समेत 30 गाड़ियों को आग के हवाले पर दिया.इस हिंसक भीड़ ने उस इलाके में एक समुदाय विशेष के छह घर को भी जला दिया है.जिसके चलते मालदा में इन दिनों साम्प्रदायिक माहौल खराब चल रहा है.इतने बड़े हिंसा के दो दिन बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने अबतक इस हिंसा पर कोई कड़ी कार्यवाही नही की है.जिससे  भीड़ और उन्मादी होती जा रही है.पुलिस ने मंगलवार को दस लोगो को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन ये गिफ्तारी प्रदर्शनकारियों को रास नही आई फलस्वरूप गिरफ्तारी से नाराज उत्पातियों ने पुलिस पर गोलियां चलाई और पत्थरबाज़ी की.कमलेश तिवारी की कथित टिप्पणी ने निश्चित ही नफरत और हिंसा फैलाने का काम किया है.एक धर्म विशेष की भावनाओं को आहात किया है.जिसकी आलोचना सभी हिन्दू संगठनों ने भी एक सुर में किया है.लेकिन अब भी बहुत से लोग आग में घी डालने का काम कर रहें है और पूरी आज़ादी से कर रहें है.कमलेश तिवारी को उत्तर प्रदेश सरकार ने 2 दिसम्बर को गिफ्तार कर लिया था.फिलहाल अभी जेल में है.कानून के नजरिये में सभी जाति ,धर्म ,सम्प्रदाय एक समान है.लेकिन हमारे सियासतदानों को ये बात हजम नही होती है.मुस्लिम वोटों की तुष्टिकरण के लिए हमारे राजनेता हमेसा से दोहरा मापदंड अपनाते आएं है.जिसका ताज़ा उदाहरण हमारे सामने है, कमलेश तिवारी को रासुका के तहत गिरफ्तार कर लिया है.लेकिन बड़ा सवाल ये कि कमलेश के सिर को कलम पर इनाम राशी की घोषणा करने वाले मौलवियों को अभी तक गिरफ्तार क्यों नही किया ?.इस सवाल के निहतार्थ को समझे तो एक बड़ा कारण हमे देखने को मिलता है.कोई भी हुकुमत मुसलमानों के खिलाफ बोलने का साहस नही दिखा पाती है.जिसका सीधा कारण मुस्लिम वोट बैंक से है.उत्तर प्रदेश की तथाकथित सेकुलर सरकार पूरी तरह से इमाम और मौलवी के बयान पर चुप्पी साधे उनको संरक्षण दे रही है. जो बेहद ख़तरनाक है.कमलेश तिवारी को कानूनन जो सज़ा का प्रावधान है.उसे दिया गया लेकिन मौलवियों पर कार्यवाही न करना सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगाता है.वहीँ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी मौन है.जिसका नतीजा हमारे सामने है.हिंसा और उग्र होने के साथ –साथ बढ़ती जा रही है.इन सब के बीच एक और बात गौर करने लायक है.सियासतदान ही नही हमारे देश के कथित बुद्धिजीवियों ने भी इस मसले पर मौन धारण कर रखा है.चुकी देश में अभी आभासी असहिष्णुता के विरोध में अपने पुरस्कार वापसी करने वाले तथा इनके समर्थन के नारा लगाने वाले सभी लोग आज चुप है.मालदा में इतनी बड़ी हिंसा फैली है.क्या वहां उन्हें असहिष्णुता नही नजर आ रही है ?गौरतलब है कि ये विवाद सोशल मीडिया से शुरू हुआ था.लोग सोशल मीडिया पर भी इसीप्रकार के सवाल पूछ रहें है.लेकिन अभी तक उन सभी तथाकथित सेकुलर लोगों की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है.पहला कि मालदा की हिंसा पर मौन क्यों है ? इस  सवाल की तह के जाए तो चुकी ये मुद्दा मुसलमानों से जुड़ा हुआ है और अगर ये कुछ बोलेंगे तो इनका सेकुलरिज्म भंग होगा.मालदा की घटना ने इसने सेकुलरिज्म को बेनकाब कर दिया है.एक बात अब स्पष्ट हो गई है कि सेकुलर लोगो की सेकुलरिज्म केवल हिन्दू विरोध तक सिमित रह गया है.मालदा की  घटना ने सेकुलर विरादरी के मुह पर ताला लगा दिया है.हमे याद होगा अभी कुछ महीने पहले दादरी  में गोमांस खाने की अफवाह के कारण एक अखलाख नामक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी.ये घटना पुरे देश के लिए शर्मनाक था.पुरे देश ने इस घटना की आलोचना की लेकिन कथित सेकुलर लोग इससे संतुष्ट नही दिखे.इस घटना के बाद छद्म सेकुलर विरादरी को भारत कट्टरपंथी देश होने का डर सताने लगा था.लेकिन आज जब कट्टरपंथी ताकते उपद्रव मचा रही है तो इन्हें नजर नही आ रहा है.ये छदम सेकुलर लोग हिंदूवादी संगठनों से लेकर केंद्र सरकार तक को कोश रहें थे,लेकिन उत्तर प्रदेश में हुई घटना में इन्हें उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार से आज- तक एक सवाल भी पूछना मुनासिब नही समझा.दूसरे सवाल पुरस्कार वापसी करने वाले उन तमाम साहित्यकारों ,इतिहासकारों तथा उन फिल्मी हस्तियों से है कि, मालदा में जो हो रहा है उसके प्रति उतना रुख इतना नरम क्यों है ? क्या उन्हें मालदा में असहिष्णुता नही नजर आ रही है ? अब प्रायोजित पुरस्कार वापसी का ढोंग क्यों नही कर रहें है ?मालदा में ढाई लाख मुसमानो के पुरे इलाके में तबाही मचा रखें है.पुलिस,जनता सभी उनके द्वारा फैलाये गये हिंसा के शिकार हुए है.गाड़ियाँ जला दी जा रही है, घरो से लुट –पाट हो रही है.पूरी तरह से अराजकता का माहौल है.ये उपद्रवी मुस्लिम वहां के लोगो का जीना दूभर कर रखा है.इतनी बड़ी घटना पर ये लोग पुरस्कार और सम्मान लौटना तो दूर एक ट्विट या बयान देना भी उचित नही समझ रहें.निश्चय ही इससे एक बात कि पुष्टि तो हो जाती है.इन सभी लोगो को हिंसा, मौत समाजिक समरसता से कोई लेना देना नहीं है.इनका अपना एजेंडा है जिसके अनुसार ये चलते है.बहरहाल ,मालदा में फैली हिंसा बेहद ही अलोकतांत्रिक और असामाजिक है.कोई भी धर्म इसकी इजाजत नही देता कि किसी व्यक्ति की एक गलती के लिए उसे फांसी दे दी जाए.कमलेश तिवारी को संविधान के अनुसार सज़ा मिलने के बाद मुस्लिम समुदाय का हिंसात्मक रुख अख्तियार करना बेहद ही अफसोसजनक है.



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