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फांसी को धार्मिकता का रंग न दे ओवैसी



सर्वोच्च न्यायालय ने याकूब मेमन को मिली मौत की सज़ा को बरकरार रखा है, लेकिन अब भी वो इस सज़ा से बचने के लिए प्रयासरत है, हालांकि लगभग तय है कि इसकी सज़ा बरकरार रहेगी, इसके बाद कई तथाकथित सेकुलर ऐसे प्रलाप कर रहे मानों पहली बार भारत में फांसी दी जा रही हो.भारत में सेकुलरिज्म की आड़ में छुपा सम्प्रदायिकता का वीभत्स चेहरा एक – एक कर सामनें आ रहा है. कुछ राजनेता हमारे बीच है जो इस फैसले को अपरोक्ष रूप से धार्मिकता के आधार पर लोगो को बाटनें व भड़काने का काम कर रहें है .१९९३ मुंबई बम धमाकों के षड्यंत्रकारियों में से एक याकूब मेमन को फांसी पर लटकाने का फैसला न्यायपालिका को पहले ही दे देना चाहिए था,बहरहाल ये फैसला देर से तो आया लेकिन दुरुस्त आया.इसका स्वागत होना चाहिए.इन दरिंदो के लिए हमारे न्यायपालिका के पास साक्ष्यों की कमी नहीं थी.और न ही उनकी दलील में इनता दम था कि उसकी फांसी की सज़ा रुक जाती.ये फैसला निर्विवाद था,लेकिन भारतीय राजनीति में वोटबैंक की बहुत पुरानी परम्परा रही है,उसी का अनुसरण करते हुए हमारे कुछ राजनेता जो सेक्युलर की खाल ओढ़े देश की एकता, अखंडता व सौहार्द को बिगाड़ने की ओर अग्रसर है,मसलन एमआइएम के अध्यक्ष ओवैसी ने याकूब की फांसी की सज़ा से बिगड़ गये और चीखते हुए खुलकर मेमन के बचाव में आ गयें ओवैसी के बयान से ही एक सवाल पैदा होता है कि क्या इस्लाम आतंक का पर्याय है ये सवाल इसलिए लिए क्योकिं हमारा ये मत है कि आतंक का कोई मजहब, धर्म या सम्प्रदाय से कोई ताल्लुक नहीं होता है और ये भी सही है कि कोई धर्म आतंक की इजाजत नहीं देता अपने आप को मुस्लिमों के रहनुमा बताने वालें ओवैसी के बयान से राष्ट्रद्रोह की बू आती है.ओवैसी अपने बयान में स्पष्ट बोल रहें है कि याकूब मेमन को फांसी इसलिए दी जा रही क्योकिं वो मुसलमान है. आकड़े बिल्कुल इस बात की पुष्टि नहीं करतें  आज़ादी के बाद से अबतक भारत में १९९ फांसी हुए है जिसमे महज़ १५ मुसलमान है, ये आकड़े ओवैसी के बयान कि पोल खोल रहें है लेकिन जहर की खेती करनें वाले कहाँ मानने वालें,ओवैसी ने धर्म के नाम पर नफरत फ़ैलाने का आरोप  सरकार पर लगाया. लेकिन सच्चाई इससे परे है, हक़ीकत तो यह है कि ओवैसी ही आतंक को धर्म का रंग दे रहें हैं और अपरोक्ष रूप से आतंक को इस्लाम धर्म से जोड़ रहें हैं, ये भारतके उन २५ करोड़ मुसलमानों का अपमान है.जो इसे स्वीकार नहीं करेंगे,ओवैसी मुसलमानों की सहानभूति लेने का प्रयास कर रहें लेकिन मुसलामन भी इस राजनीतिक कुचक्र को समझ गये हैं. आज़ादी के बाद से ही हमेशा मुसलमानों को सिर्फ व सिर्फ वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया गया है.लेकिन अब ये समझ चुकें है कि धर्म के नाम पर कौन जहर फैला रहा और कौन उनका इस्तेमाल कर रहा. बहरहाल,समूचा देश माननीय सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करता है और इस फैसले पर खुश है, आतंकवाद के हितैसी को ये फैसला नागवार गुज़र रहा गौरतलब है कि याकूब मेमन मुंबई विस्फोट का अपराधी है और विस्फोट के दौरान हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग मारें गये थे.धमाके में २६० लोग मारे गये और लगभग ७०० सौ से अधिक लोग घायल हुए. एक –एक कर कई सीरियल ब्लास्ट हुए जिसमें निर्दोष लोग मारे गये..जब भी हमारे देश में कोई ऐसा संवेदनशील मसला आता है हमारे कुछ राजनेता इसको राजनीतिक रंग देने से नहीं चुकते.ओवैसी बार – बार पूर्व रॉ आधिकारी दिवंगत बी रमन के लेख का हवाला दे रहे है.जिस लेख को रमन ने २००७ में लिखा था लेकिन उसका प्रकाशन अब जाकर हुआ है गौरतलब है कि बी रमन रॉ के पाकिस्तान काउन्टर टेररिज्म डेस्क के मुखिया थे,याकूब और उसके परिवार के सदस्यों को करांची से भारत लाने के पूरे ऑपरेशन को उन्हीं की देखरेख में अंजाम दिया जा रहा था, बी रमन ने अपने लेख में लिखा हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि याकूब मेमन मुंबई बम धमाके का दोषी था लेकिन जिस तरह उसने आत्मसमर्पण किया और जाँच में सहयोग किया,उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि उसे फांसी की सज़ा नहीं दी जानी चाहिए.रमन की २०१३ में मौत हो गई थी,रेडिफ डॉट कॉम ने उनके भाई से इजाजत लेकर इस लेख को गुरुवार को प्रकाशित किया. रमन के मुताबिक उनके रिटायरमेंट से कुछ माह पहले जुलाई १९९४ में नेपाल पुलिस के सहयोग से याकूब को काठमांडू से गिरफ्तार किया किया गया था.नेपाल से लाकर उसे भारतीय सीमा में रखा गया इसके बाद उसे एआरसी के विमान से दिल्ली लाया गया जाँच अधिकारियों ने उसकी गिरफ्तारी पुरानी दिल्ली रेलवे से दिखाई पूरे ऑपरेशन को मेरी देखरेख में अंजाम दिया गया.लेख पर गौर करें तो  उन्होंने कहीं ये नहीं लिखा कि फांसी देना गलत होगा और न ही उन्होंने फांसी का विरोध किया ये उनके खुद के विचार थे. मगर किसी आतंकवादी को महज़ इसलिए नहीं छोड़ सकते कि उसने अधिकारियों की मदद की.अगर मुजरिम पुलिस की गिरफ्त में है,जाहिर है कि मुजरिम के पास जानकारी देने के सिवाय और कोई चारा नहीं होता.सनद रहें कि  मुंबई ब्लास्ट कि वजह से कई घर बेघर हो गये कई सैकड़ो लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.तब तो ओवैसी ने एक बार भी संवेदना नहीं जताई और उनसे हमे ये उम्मीद भी नहीं है, याकूब की फांसी के तख्ते पर चढना न्याय प्रकिया का एक अहम मुकाम होगा,ओवैसी जैसे लोगों की वजह से ही भारत में आतंकवाद के साथ सम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिल रहा. ये दुर्भाग्य है कि समूचा विश्व आतंकवाद के मसले पर एक मंच पर एक साथ आने को तैयार है,वहीँ हमारे राजनेता अपनी राजनीति को साधने के लिए आतंकवाद पर बेवजह बहस छेड़े हुए है.



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