Skip to main content

संस्कृतियों को बचाने के लिए संयुक्त परिवार जरूरी



महान समाजशास्त्री लूसी मेयर ने परिवार को परिभाषित करते हुए बताया कि परिवार गृहस्थ्य समूह है.जिसमें माता –पिता और संतान साथ –साथ रहते है.इसके मूल रूप में दम्पति और उसकी संतान रहती है.मगर ये विडंबना ही है कि,आज के इस परिवेश में दम्पति तो साथ रह रहें ,लेकिन इस भागते समय और अपनी व्यस्तताओं में हम अपने माता –पिता को पीछे छोड़ रहें है.आज के इस आधुनिकीकरण के युग में अपने इतने स्वार्थी हो चलें है कि केवल हमें अपने बच्चे और पत्नीं को ही अपने परिवार के रूप में देखते है, अब परिवार अधिनायकवादी आदर्शों से प्रजातांत्रिक आदर्शों की ओर बढ़ रहें है,अब पिता परिवार में निरंकुश शासक के रूप में नही रहा है.परिवार से सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्णय केवल पिता के द्वारा नहीं लिए जातें.अब ऐसे निर्णयों में पत्नी और बच्चों को तवज्जों दी जा रही,ज्यादा नहीं अगर हम अपने आप को बीस साल पीछे ले जाएँ हो हालत बहुत अच्छे थे.तब संयुक्त परिवार का चलन था. साथ –साथ रहना, खाना –पीना पसंद करते थें, परिवार के मुखिया द्वारा लिया गया  निर्णय सर्वमान्य होता था,संयुक्त परिवार के अनेकानेक लाभ थे.मसलन हमें हम अपनी संस्कार,रीति –रिवाज़,प्रथाओं,रूढ़ियों  एवं संस्कृति का अच्छा ज्ञान परिवार के बुजूर्गो द्वारा प्राप्त हो जाता था.जिससे हमारी बौद्धिकता,समाजिकता को बढ़ावा मिलता था,जो हम पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते चलें आएं है,मगर अब इसकी जगह एकल परिवार में हम रहना पसंद करते है.जिससे हमारा सबसे अधिक नुक़सान हमारी आने वाली पीढ़ियों को है. न तो अपनी भारतीय संस्कृति के परिचित हो पाएंगी और न ही समाज में हो रहें भारतीय संस्कारों को जान पाएंगे.इन सभी के बीच एक सुखद बात सामने निकल कर आयीं है. वो है परिवार महिलाओं की बढती भागीदारी अब परिवार में स्त्री को भारस्वरूप नहीं समझा जाता.वर्तमान में परिवार की संपत्ति में स्त्रियों के संपत्तिक अधिकार बढ़ें हैं.अब इन्हें नौकरी या व्यापार करने की स्वतंत्रता है,इससे स्त्रियों के आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ी है.अब वें परिवार पर भार या पुरुषों की कृपा पर आश्रित नही है.इससे परिवार में स्त्रियों का महत्व भी बढ़ा है.जिसके साथ स्त्रियों का दायित्व और भी बढ़ गया है.गौरतलब है कि एक स्त्री को बेटी,बहन,  पत्नी तथा माँ इन सभी दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है और इन सभी रूपों में हम इनसे ज्यादा ही अपेक्षा करतें है ये इस अपेक्षाओं पर खरा भी उतरती है.बहरहाल आज परिवार दिवस के मौके पर हमें एक ऐसे  परिवार में रहने का संकल्प करना चाहिए.जिसमे माँ का दुलार हो,पिता का प्यार हो बच्चों तथा पत्नी का साथ हो.कभी -कभी नौकरी आदि के दौरान हमें कुछ दिक्कतें आ जाती हैं पर हम उन सभी का सामना  करने  लिए अनुभव की आवश्यकता चाहिए जो हमें पिता से मिल सकता है.हमें अपनी संस्कृतियों से दूर नहीं वरन और पास आना चाहिए,जुड़े रहना चाहियें. जिससे हम तथा हमारी आने वाली  वाली पीढीयों के उपर पश्चिमी सभ्यता का असर न पड़े.संयुक्त परिवार हमें अपने  संस्कृतियों तथा भारतीय सभ्यताओं  से परिचय करती है  एवं मिलजुल कर रहना सिखाती है.

Comments

Popular posts from this blog

काश यादें भी भूकंप के मलबे. में दब जातीं ..

    एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे  हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे.  मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख  से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते  हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी  प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो  मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में  एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही  आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...

पठानकोट हमला पाक का रिटर्न गिफ्ट

       दोस्ती के लायक नही पाकिस्तान आदर्श तिवारी -   जिसका अनुमान पहले से लगाया जा रहा था वही हुआ.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाहौर यात्रा के ठीक एक सप्ताह बाद पाकिस्तान का फिर नापाक चेहरा हमारे समाने आया है.भारत बार –बार पाकिस्तान से रिश्तों में मिठास लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है.लेकिन कहावत है ताली दोनों हाथो से बजती है एक हाथ से नही.पाकिस्तान की तरफ से आये दिन संघर्ष विराम का उल्लंघन ,गोली –बारी को नजरअंदाज करते हुए भारत पाकिस्तान से अच्छे संबध बनाने के लिए तमाम कोशिश कर रहा है.भारत की कोशिश यहीं तक नही रुकी हमने उन सभी पुराने जख्मों को भुला कर पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन पाक परस्त आतंकियों ने आज हमे नये जख्म दिए है गौरतलब है कि एक तरफ पाकिस्तान के सेना प्रमुख इस नये साल में पाक को आतंक मुक्त होने का दावा कर रहें है.वही पठानकोट में एयरफोर्स बेस हुए आतंकी हमले ने पाकिस्तान के आतंक विरोधी सभी दावों की पोल खोल दिया.ये पहली बार नही है जब पाकिस्तान की कथनी और करनी में अंतर देखने को मिला हो पाकिस्तान के नापाक मंसूबो की एक...

कश्मीर की उलझन

  कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान में वाक् युद्ध चलता रहा है लेकिन अब मामला गंभीर हो गया है.भारत सरकार ने भी कश्मीर को साधने की नई नीति की घोषणा की जिससे पाक बौखला उठा है.यूँ तो पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज़ नहीं आता. जब भी उसे किसी वैश्विक मंच पर कुछ बोलने का अवसर मिलता है तो वह कश्मीर का राग अलापकर मानवाधिकारों की दुहाई देते हुए भारत को बेज़ा कटघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास करता है. परंतु अब स्थितयां बदल रहीं हैं,कश्मीर पर भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए गुलाम कश्मीर में पाक सेना द्वारा किये जा रहे जुर्म पर कड़ा रुख अख्तियार किया है. साथ ही गुलाम कश्मीर की सच्चाई सबके सामने लाने की बात कही है. गौरतलब है कि पहले संसद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कश्मीर पर बात होगी लेकिन गुलाम कश्मीर पर, इसके बाद सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक बात कही है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा है. जब हम जम्मू–कश्मीर की बात करते हैं तो राज्य के चारों भागों जम्मू ,कश्मीर ,लद्दाख और गुलाम कश्मीर की बात करते हैं...