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लोककल्याण के कार्य बनाम नकरात्मक राजनीति


  

लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है, सभी राजनीतिक दल अपने –अपने ढ़ंग से अपनी पार्टी का प्रचार कर जनता का समर्थन पाने की कवायद में जुटे हुए हैं. किन्तु इस महान लोकतांत्रिक देश में मतदाता अब सभी राजनीतिक दलों के प्रत्यासियों को अपनी अपेक्षाओं की कसौटी पर कसने लगे हैं. उनके मुद्दों ,कार्यों तथा विजन का अवलोकन करने लगे हैं, ऐसे में इस चुनाव की दिशा बदलना स्वभाविक है. 17वीं लोकसभा का चुनाव ऐसे चुनाव के रूप में दर्ज होगा जब राजनेता वादों की पोटली खोलेंगे तो जनता डिजिटल इंडिया के इस दौर में अपने फोन से उनके इतिहास के वायदों का हिसाब –किताब टटोलने और उनसे सवाल पूछने से पीछे नही हटेगी. गौरतलब है कि प्रत्येक चुनाव के अपने अलग मुद्दे होते हैं जिसके आधार पर चुनाव होता है.उन्हीं मुद्दों में प्रमुख रूप से गरीबी, बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा इत्यादि शामिल हैं. किन्तु अबकी इन मुद्दों से हटकर समूचा विपक्ष इस बात पर चुनाव लड़ रहा है कि जैसे भी हो मोदी को हटाना है. एक हैरत में डालने वाला यथार्त यह भी है कि नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ विपक्ष ने जनता के हित में एक भी लड़ाई नहीं लड़ी. लोकतंत्र में इसका क्या मतलब निकला जाए ? क्या नरेंद्र मोदी सरकार ने विपक्ष को एक भी ऐसा बड़ा अवसर नहीं दिया ? प्रत्येक सरकार की कोई न कोई कमजोरी रहती है और यह स्वभाविक है कि इतने बड़े देश में सब व्यवस्थाएं सुचारू ढंग से चलाना मुश्किल है जाहिर हैं यहाँ सुधार और कमियों की गुंजाइश सदैव बनी रहती है. यह भी हास्यास्पद है कि जब भी कांग्रेस ने किसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की तैयारी करती है,उसी मुद्दे पर बीजेपी उसके काले अध्याय से उसको आइना दिखा देती है. कुलमिलाकर यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इन पांच वर्षों में दरमियान विपक्ष अपना मूल स्वभाव भूलकर प्रेस कांफ्रेंस कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेता है. एक नागरिक के नाते छोभ इस बात का भी है कि इसमें भी विपक्षी दलों के कई बार झूठे दस्तावेजों , मनगढंत बातों के सहारे व्यर्थ का विमर्श खड़ा करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है. दूसरी तरफ़ सरसरी तौर पर सरकार के कामकाज को देखें तो यह पांच साल एक ऐसी विकास यात्रा नजर आएगी जिसमें प्रत्येक वर्ष भारत क्रमबद्ध ढंग से प्रगति के मार्ग पर बढ़ता गया है. केंद्र सरकार की विदेशी नीति से विश्व में भारत का गौरव बढ़ाने का काम किया है.इसके सबसे ताज़ा उदारहण एयर स्ट्राइक पर विश्व का कोई भी शक्तिशाली देश ने भारत का विरोध नहीं किया, वहीँ पुलवामा आतंकी हमले पर समूचा विश्व हमारे दुःख में सहभागी हुआ था. वहीँ योगा को वैश्विक मान्यता मिलना भारत की सबसे बड़ी उपलब्धी है. गरीबी इस देश का सबसे अधिक संभावनाओं वाला मुद्दा है. चुनाव आते राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस द्वारा गरीबी दूर करने की कसमें खाई  जाने लगती हैं. पर चुनाव के पश्चात गरीब ठगे हुए महसूस करते हैं किन्तु भाजपानीत केंद्र सरकार ने इस मिथक को तोड़ा है. केंद्र सरकार ने गरीबी को दूर करने के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत किया और उसे अमल में लाया. इस सरकार की कार्य संस्कृति भी काबिलेगौर है कि योजनाओं ने जमीन पर अपना असर दिखाया आज देश के सभी कोने में बिजली पहुँची है, उज्ज्वला योजना के तहत 7,16,57,884 करोड़ गरीब महिलाओं को मुफ़्त में गैस सिलेंडर दिया है, स्वच्छ भारत अभियान के तहत 9,79,04,880 करोड़ शौचालय बनाने में सरकार सफ़ल रही है. इसे सरकार की गरीबी दूर करने की प्रतिबद्धता और सफल क्रियान्वयन की इच्छाशक्ति के तौर पर देखा जाना चाहिए. उसी के फलस्वरूप विश्व की भरोसेमंद संस्था ब्रुकिंग्स के फ्यूचर डवलपमेंट ब्लॉग में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया कि भारत में प्रति मिनट 44 लोग अत्यंत गरीब श्रेणी से बाहर आ रहे हैं. वर्ड बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पहले ही भारत को तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बता चुके हैं.इज ऑफ़ डूइंग बिजनेश में अभूतपूर्व उछाल ऐसे कई अभूतपूर्व कार्य इस सरकार ने किया है.जिससे उसका हौसला बढ़ा हुआ है. दूसरी तरफ जब भी केंद्र सरकार कोई एतिहासिक एवं साहसिक राजनीतिक फैसला लेती है भले ही वह फैसला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ क्यों न हो, विपक्ष उसमें राजनीतिक नफ़ा –नुकसान को ध्यान में रखकर उसका विरोध करती है. इतना ही नहीं कई बार यह विरोध खतरनाक और षडयंत्रकारी ढंग से भी किया गया. उदारहण के लिए सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक पर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने जिस ढ़ंग से सेना के पराक्रम संदेह किया उससे विपक्षी दलों की असली चेहरा भी देश ने देखा.इस चुनाव में सरकार अपनी अभूतपूर्व उपलब्धियों को जोर –शोर से जनता के बीच रख रही है. जनधन योजना, उज्ज्वला, मुद्रा, स्वच्छ भारत, तथा मानवरहित रेलवे फाटकों से निजात नरेंद्र मोदी सरकार की सफ़ल क्रियान्वयन योजनाओं की लंबी फेहरिस्त है, जो जनता के बीच में यह विमर्श खड़ा करने में सहायक हो रहा है कि गत पांच वर्षों में जिस तरह से असरकारी परिवर्तन इस सरकार ने दौरान देखने को मिले हैं,यदि आगे इस सरकार को जनादेश और मिलता है तो, भारत विकास के मोर्चे पर एक क्षितिज पर विराजमान होगा. वहीँ अभी पहले चरण का मतदान होने में कुछ ही दिन शेष है. इस चुनाव में मुद्दा बहुत दिलचस्प हो चला है एनडीए जहाँ नेतृत्वविहीन विपक्ष, सिद्धांतविहीन महागठबंधन के साथ  55 साल बनाम 55 माह की विकास यात्रा को लेकर आगे बढ़ रही हैं वही समूचा विपक्ष मोदी हटाओ के सहारे चुनावी मैदान में है. कौन मुद्दा और कौन से दल को जनता पसंद करती है यह तो भविष्य के गर्भ में हैं परन्तु इतना तय है की अभीतक मुद्दों की रेस में मोदी विपक्ष पर भारी नजर आ रहे जबकि अब भी विपक्ष नकारात्मक राजनीति के दलदल में फंसा हुआ है.


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