पिछला सप्ताह नरेंद्र मोदी सरकार को काफ़ी राहत
देने वाला रहा है.एक तरफ़ उनकी लोकप्रियता को लेकर आया सर्वेक्षण जहाँ व्यतिगत तौर पर मोदी
और बीजेपी को आश्वस्त करता है वहीँ, नोटबंदी और जीएसटी के बेज़ा विरोध में जुटे
विपक्ष को अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडिज़ ने भारत की क्रेडिट रेटिंग को
बढ़ाकर करारा झटका दिया है.गौरतलब है कि अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा
करवाए गये सर्वे में आज भी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है.इस सर्वे में 24,464
लोगों को शामिल किया गया.जिसके आंकलन के उपरांत यह बात निकल कर सामने आई कि 88
प्रतिशत लोगों की आज भी पहली पसंद नरेंद्र मोदी हैं. यह सर्वेक्षण फ़रवरी और मार्च
के बीच किया गया इसमें एक तर्क यह भी है उसवक्त जीएसटी लागू नहीं किया गया था.पर,यह
स्याह सच है कि जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री में उम्मीदवार घोषित हुए तबसे अभी
तक सत्ता में आये साढ़े तीन साल होने को हैं किन्तु प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में
कमी देखने को नहीं मिली है.उससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि यह सर्वे
उस वक्त किया गया जब देश की आम जनता नोटबंदी के कारण हुई परेशानियों से ठीक से उबर
भी नहीं पाई थी.बहरहाल, इसी बीच क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की रेटिंग को
बढाते हुए बीएए-3 से बीएए-2 श्रेणी वाले देशों में शामिल कर दिया है.निश्चितरूप से
यह केंद्र सरकार के लिए बड़ी उपलब्धी है.रेटिंग में सुधार ऐसे वक्त में आया है जब
विपक्ष से लगाए तमाम अर्थशात्रियों ने मोदी सरकार के अर्थनीतियों के खिलाफ़ मोर्चा
खोल रखा है.हिमाचल प्रदेश में अभी सम्पन्न हुए चुनाव की बात हो अथवा गुजरात में चल
रहे विधानसभा चुनाव की बात विपक्ष जीएसटी और नोटबंदी पर सरकार को लगातार घेरने की
असफ़ल कोशिश में लगा हुआ है.विरोधी दल अगर इस मुगालते में हैं कि नोटबंदी व सरकार
की आर्थिक नीतियों की आलोचना करके जनता को लुभाया जा सकता है तो ,उन्हें इस
मुगालते से बाहर आना होगा.यदपि ऐसा संभव
होता तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भाजपा को प्रचंड बहुमत कतई नहीं प्राप्त
होता. बहरहाल,यह जानना जरूरी है की आखिर किस कारण से भारत की बीएए-2 श्रेणी में रखा गया है और इसके क्या लाभ देश को
होने वाले हैं ? दरअसल, बीएए-2 में उन देशों को शामिल किया जाता है जो देश आर्थिक
तौर पर मजबूती के साथ आगे बढ़ रहें है तथा जिस देश की अर्थनीति में मकड़जाल जैसी
स्थिति न हो,बीएए -2 को सकारात्मक श्रेणी माना जाता है.इस श्रेणी में निवेशकों के
निवेश को सुरक्षित माना जाता है.वहीँ बीएए-3 श्रेणी में उन देशों को रखा जाता है
जिन देशों की अर्थव्यवस्था गतिमान नहीं होती अर्थात इसे निवेश का सबसे निचला
पायदान माना जाता है.गौरतलब है कि जिस
जीएसटी के विरोध में विपक्षी दल यह कहने से नहीं चुक रहे हैं कि जीएसटी के लागू
होने से देश की आर्थिक हालत चरमरा गई है , वही मूडिज़ ने जो तर्क दिए हैं उसमें
जीएसटी को सबसे प्रमुख बताया है.मूडिज़ के अनुसार जीएसटी के आने से माल का आवागमन
सुगम हो जायेगा जिससे व्यापार आसन हो जायेगा,अन्तर्राज्यीय व्यापार को बढ़ावा
मिलेगा,श्रेणी को बढ़ाने में सस्था ने जो तर्क दिए हैं उसमें आधार कार्ड,नोटबंदी,प्रत्यक्ष
लाभ अंतरण (डीबीटी), एनपीए की दिशा में सरकार गंभीरता तथा बैंको को आर्थिक तौर पर
मज़बूत करने के लिए दी गई पूंजी को प्रमुख माना है.जाहिर है कि मूडिज़ ने भारत में
आर्थिक सुधारों व संस्थानिक सुधारों की दिशा में बन रहीं नीतियों तथा उसके
क्रियान्वयन का गहरा अध्ययन किया होगा, उसके उपरांत ही भारत की रेटिंग स्थिति में
सुधार की बात निकल कर सामने आई है.यह महज संयोग ही है कि यूपीए सरकार ने 2004 में
जब सत्ता संभाली उसके बाद भारत की रेटिंग बीएए-2 से गिरकर बीएए-3 पर पहुँच गई.एक
दशक तक सत्ता के रहने वाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने भी गिरी हुई रेटिंग को
हासिल करने की दिशा में कोई ठोस प्रयास किया होगा ऐसा प्रतीत नहीं होता अन्यथा इस
रेटिंग को उस दैरान ही पुनः हासिल कर लिया गया होता.खैर,तबसे लगभग चौदह वर्ष के
बनवास के बाद आज भारत पुनः उन देशों की कतार में खड़ा हो गया जहाँ निवेश करना आसान
होगा तथा देश की सुदृढ़ आर्थिक स्थिति तथा अर्थव्यवस्था में स्थिरता के कारण निवेशकों
को अपनी तरफ आकृष्ट कर सकेगा. यह बात सर्वविदित है कि अगर किसी भी देश की आर्थिक
नीतियों पर एक प्रतिष्ठित वैश्विक संस्था द्वारा सराहा जाता है तो, उस देश की तरफ
अन्तरराष्ट्रीय समुदाय एक उम्मीदों के साथ अपार संभावनाओं की दृष्टि से देखता है.इससे
देश की साख तो मजबूत होती ही है साथ में अधिक निवेश की संभावनाएं भी प्रबल होती
हैं मूडिज़ ने यह बात भी कही है कि जीएसटी
और नोटबंदी के कारण जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई है लेकिन, यह अल्पकालिक हैं इसके
परिणाम दीर्घकालिक होंगे.अगर हम मूडिज़ के केवल किन्ही दो वजहों की पड़ताल करें
जिसके कारण भारत की रैंकिंग सुधरी है तो वस्तुस्थिति का पता चल सकेगा.इसमें सबसे
पहले अगर हम डीबीटी यानी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की बात करें तो इस दिशा में सरकार ने
अभूतपूर्व परिणाम हासिल किये हैं आम जनता का पैसा सीधे तौर पर आम जनता के खाते में
जाए इसके लिए सरकार ने इसकी शुरूआत की.जिसमें रसोई गैस सब्सिडी,यूरिया
सब्सिडी,सरकार द्वारा मिलने वाला मुआवजा सहित कई योजनाओं सीधा लाभ लाभार्थी तक
पहुंचाया जा रहा है. सरकार सरकारी बैंको को मजबूत बनाने के लिए दो लाख ग्यारह हज़ार
करोड़ रूपये की मदद की है.जिससे बैंको की आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार होने की
संभावना है,इसके साथ ही एनपीए के बोझ तले
दबे इन बैंको को राहत देने का काम किया है.मूडिज़ ने इस तरह भारत सरकार तमाम आर्थिक
सुधारों की दिशा में बढ़ते कदम को इंगित
करते हुए यह माना है कि आने वाले दिनों में इन सब आर्थिक नीतियों का भारत की
अर्थव्यवस्था पर सकरात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे.ज्ञातव्य ही कि अभी कुछ रोज़
पहले वर्ल्डबैंक की भी इज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस की लिस्ट में भी भारत ने तीस अंको लंबी
छलांग लगाई है.इस तरह भारत की आर्थिक स्थिति के चिन्तन में दुबले हो रहे
अर्थशास्त्रियों को चिंता छोड़ मूडिंग और विश्व बैंक द्वारा जो आकड़े प्रस्तुत किये
गये हैं उनको ध्यानपूर्वक देखना चाहिए.आज भारत की आर्थिक स्थिति मज़बूती के साथ बढ़
रही जिसकी सराहना एक के बाद एक वैश्विक संस्थान कर रहें है.सरकार को चाहिए कि इस
अवसर का लाभ उठाते हुए निवेशकों का ध्यान भारत की तरफ़ आकृष्ट करें.
भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात -: अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं.बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहतें है.लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दी.दरअसल एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है,चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये,पर मै भारत माता की जय नही बोलूँगा.ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है .इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आज़ादी के लिए अपने होंठों पर भारत माँ की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है,भारत माता की जय कहना अपने आप में गर्व की बात है.इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितो की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.इस पुरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भाग
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