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खुद को स्थापित करने का विचित्र तर्क




कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया,बर्कले में छात्रों से चर्चा के दौरान कई ऐसी बातें कहीं जो कांग्रेस के भूत और भविष्य की रूपरेखा के संकेत दे रहे हैं. इस व्याख्यान में राहुल गाँधी ने नोटबंदी ,वंशवाद की राजनीति सहित खुद की भूमिका को लेकर पूछे गये सवालों के स्पष्ट जवाब दिए.मसलन 2014 के आम चुनाव से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि कांग्रेस 2012 के आसपास घमंडी हो गई थी और लोगो से संवाद करना बंद कर दिया था.वहीँ अपनी भूमिका को लेकर पूछे गये सवाल में राहुल ने कांग्रेस में आगामी बड़े बदलाव के संकेत देते हुए कहा कि वह पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी निभाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.राहुल भले ही यह सब बातें अमेरिका में बोल रहे थे किन्तु, भारत के सियासी गलियारों में इसकी चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि क्या कांग्रेस की ताकत का स्थानांतरण दस जनपथ से बारह तुगलक लेन होने जा रहा है ? ऐसा माना जा रहा है कि अगले महीने होने जा रहे संगठनात्मक चुनाव में समूची कांग्रेस पर राहुल गाँधी का वर्चस्व होगा अर्थात राहुल को पार्टी की कमान सौंप दी जाएगी.राहुल को अध्यक्ष बनाएं जाने की चर्चा पहले भी होती रही है किन्तु एक सतही सवाल भी खड़ा होता है कि क्या दस जनपथ को मानने वाले राहुल को अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करेंगे ? यह सर्वविदित है कि कांग्रेस में सत्ता के दो केंद्र है कांग्रेस का युवा गुट लोकसभा चुनाव के बाद से ही राहुल को अध्यक्ष बनाने के लिए प्रयासरत है,वहीँ जो कांग्रेस के बुजुर्ग अथवा वरिष्ठ नेता हैं वो सोनिया को ही कांग्रेस का सर्वेसर्वा मानते हैं.ऐसे स्थिति में बिखराव से गुजर रही कांग्रेस में टकराव की स्थिति बनेगी इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है. सिकुड़ती हुई कांग्रेस में बड़े बदलाव की जरूरत है यह बात लोकसभा चुनाव से ही उठ रही है किन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस आज भी परिवारवाद से ऊपर कुछ सोच नहीं रही. कांग्रेस में बदलाव से पहले इस बात को गंभीरता से लेना होगा कि जो भी नेतृत्वकर्ता होगा उसके लिए पार्टी ने अंदर तथा बहार दोनों तरह चुनौतियों का ताज़ सर पर सजेगा.एक तरफ़ जहाँ मोदी और शाह की जुगलबंदी से बनी रणनीति ने सबको हैरत में डाल रखा है.पार्टी सत्तासीन होने के बावजूद लगातार लोगो से संवाद स्थापित कर रही है,वहीँ दूसरी तरफ़ कांग्रेस नेतृत्व के संकट से गुजर रही है.अगर राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाया जाता है तो यह कांग्रेस के लिए बदलाव तो होगा लेकिन यह असरकारी बदलाव होगा यह मानना कठिन है.क्योंकि राहुल गाँधी में राजनीतिक परिपक्वता का घोर आभाव नज़र आता है.समय –समय पर उनके कई ऐसे बचकाने बयान आते हैं जो उनकी राजनीतिक समझ पर सवालिया निशान लगा देते हैं.बहरहाल, राहुल गाँधी ने बड़ी साफगोई से यह स्वीकार कर लिया कि लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता घमंडी हो गये थे पर सवाल यह भी है कि अब कांग्रेस लोगो से संवाद स्थापित कर रही है ? क्या कांग्रेस के नेताओं का घमंड टूट चुका है ? यह सवाल इसलिए क्योंकि 2014 आम चुनाव के बाद से तीन वर्ष का समय गुज़र चुका है.किन्तु अभी तक कांग्रेस द्वारा कोई संवाद काऐसा कार्यक्रम नहीं दिखा कि यह कहा जा सके कि अब कांग्रेस में बदलाव दिख रहा है.कांग्रेस अब भी उसी मनोस्थिति से गुज़र रही है जैसा राहुल 2012 में बता रहे हैं. यह हैरानी की बात है कि राहुल इस बात को जानते हुए भी इसे ठीक करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति अगर आज हर जगह सफ़ल हो रही है तो इसका एक बड़ा कारण कांग्रेस की सुस्ती भी है.देश के राजनीतिक जानकारों को इस सुस्त पड़ी कांग्रेस की वजह से यह कहने से गुरेज नहीं कर रहे है कि देश में विपक्ष जा रहा है.सियासत के नजरिये से देश की सबसे अनुभवी पार्टी आज हर मसले पर बीजेपी की प्रत्येक रणनीति के आगे घुटने टेक दे रही है.मुख्य विपक्षी दल होने के नातें कांग्रेस का दायित्व है कि वह सरकार की नाकामियों,आम जनता की समस्याओं को लेकर सरकार को घेरे किन्तु इस मोर्चे पर भी कांग्रेस अभी तक फेल रही है.राहुल ने छात्रों से चर्चा के दौरान परिवारवाद से जुड़े सवाल पर घिरते नज़र आयें तो उसके जवाब में खुद को स्थापित करने के लिए राहुल ने विचित्र तर्क गढ़ दिया उनका कहना है कि भारत वंशवाद से चलता है.इसी कड़ी में उन्होंने अखिलेश,स्टालिन और अभिषेक बच्चन का उदहारण देते हुए परिवारवाद को जायज ठहराने की नाकाम कोशिश करते हुए नज़र आए.हालाँकि राहुल गाँधी को यह समझना चाहिए उन्होंने जिन –जिन नेताओं का नाम लिया वह सभी वर्तमान में भारतीय राजनीति में हाशिये पर हैं,इस हिसाब से यह कहना गलत नहीं होगा कि जनता वंशवाद की राजनीति को खारिज़ कर रही है.राहुल का तर्क को इसलिए भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है कि आज भारत के सभी सर्वोच्च पदों मसलन राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति  और प्रधानमंत्री तीनों लोग मामूली परिवार से निकले हुए हैं.इनको कोई राजनीतिक विरासत नहीं मिली बल्कि वह खुद अपने परिश्रम से अपनी राजनीतिक जमीन को तैयार किया और आजइस मुकाम पर पहुंचें हैं राहुल गाँधी ने बर्कले में दिए व्याख्यान में कई मामलों पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किये जिसमें भारत सरकार की आलोचना के साथ –साथ प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ भी शामिल है.बहरहाल, गौरक्षा और असहिष्णुता जैसी बातो काजिक्र न करके राहुल आलोचना से बच सकते थे.किन्तु उनके इस बयान ने फिर उनके आलोचकों को उनको घेरने का मौका दे दिया.

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