सभी प्रकार की अटकलों पर
विराम लगाते हुए एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए बिहार के राज्यपाल रामनाथ
कोविंद को उम्मीदवार बनाएं जाने की घोषणा की है. इससे पहले कई नाम चर्चा में रहे
किन्तु एक गहन मंथन के बाद बीजेपी नेतृत्व ने रामनाथ कोविंद के नाम पर सहमती जताई
तथा इसकी सूचना अन्य दलों को भी दी. रामनाथ कोविंद एक ऐसा नाम सामने आया जिसका
अंजादा किसी को नही था. एक बात तो तय है अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी जबसे
भारतीय राजनीति के क्षितिज पर पहुंची हैं, सभी कयास विफल साबित हो रहे हैं.राजनीतिक
पंडितों के अनुमान धरे के धरे रह जा रहे.इनकी राजनीति की कार्यशैली न केवल चौंकाने
वाली है बल्कि इस बात की तरफ भी इशारा करती है कि यह जोड़ी किसी भी फैसलें को लेने
से पहले उस फैसले के सभी पहलुओं पर भारी विमर्श और उसके दीर्घकालिक परिणामों को
जेहन में रखकर निर्णय लेने में विश्वास रखते हैं.इसमें कोई दोराय नही कि आज समूची
भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम जोड़ियों में से यह जोड़ी वर्तमान राजनीति की दिशा व
दशा तय कर रहे है.राष्ट्रपति उम्मीदवार की
घोषणा होते ही पूरा विपक्ष काफी देर तक यह समझने में असमर्थ रहा की इस फैसला का विरोध
कैसे करें !क्योंकि एनडीए ने देश के सबसे
सर्वोच्च पद के लिए दलित जाति से आने वाले रामनाथ कोविंद के नाम का चयन
किया.रामनाथ कोविंद का जीवन सहज व सरल रहा है.दलगत राजनीति में सक्रिय रहने के
बावजूद रामनाथ गोविन्द सबके प्रिय रहे तथा कभी विवादों में नही आए.उनका सार्वजनिक
जीवन सहजता और अंतिम पंक्ति के खड़े व्यक्ति के लिए समर्पित रहा है. उनको जानने
वाले यह तक बताते हैं कि सांसद होने के बावजूद वह वर्षों तक किराए के मकान में
रहे.चुकी रामनाथ कोविंद का पूरा जीवन दलित ,शोषित ,पीड़ितो की आवाज उठाने तथा उनके
हितों की पूर्ति के लिए संघर्ष करते हुए बीता है.इसके अतिरिक्त पेशे से वकील रह
चुके रामनाथ कोविंद को कानून तथा संविधान के साथ राजनीति का भी लम्बा अनुभव रहा है.उनकी
यह सब विशेषताएं उनको राष्ट्रपति पद के मानकों के लिए उपयुक्त बनाती हैं.एनडीए के साथ
बाहरी दलों ने भी इस फैसले का समर्थन किया है.मोदी के धुर विरोधी बिहार के
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो नाम की घोषणा होते ही,राज भवन पहुंचकर उन्हें बधाई
दी.मायावती भी इस बात को जानती है कि कोविंद उत्तर प्रदेश के निवासी है और दलित
समुदाय से आते है.ऐसे मे मायावती इस फैसले का विरोध करने की जहमत नही उठाएंगी.मुलायम
भी इस बात को कह चुके हैं कि वह एनडीए का साथ दे सकते है.टीआरएस,अन्नाद्रमुक और
बीजद ने पहले ही समर्थन देने की घोषणा कर दी है. इन सबके बावजूद यह कहना मुश्किल
है कि रामनाथ कोविंद के नाम पर आम राय बनेगी ?कांग्रेस और वामपंथीयों ने इस फैसले
को एकतरफा बताते हुए विरोध किया है और 22
जून को होने वाले विपक्षी दलों की बैठक में फैसला लेने की बात कही है. गौरतलब है
कि कांग्रेस और वामदलों ने वर्षो से दलितों के नाम पर राजनीतिक रोंटी सेकते आएं है
किन्तु जब एनडीए ने एक दलित तबके से आने वाले व्यक्ति को देश का सर्वोच्च पद का
उम्मीदवार बनाया तो इनके दलित प्रेम के दोहरे मापदंडों की पोल खुल गई.बिहार से सटे
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कहना कि वह कोविंद को नही जानती,विपक्ष
द्वारा नकारात्मक विरोध की मानसिकता को दर्शाता है.देश यह देख रहा है कि किस तरह
राष्ट्रपति चुनाव में यह दल छिछली राजनीति करने पर आमादा है. दलित राग अलापने तथा
आरएसएस और बीजेपी को दलित विरोधी बताने वाले विपक्षी दलों पर मोदी व अमित शाह का यह फैसला करारा
तमाचा है.22 जून को होने विपक्षी की बैठक के बाद यह स्पष्ट हो जायेगा कि उनका
उम्मीदवार कौन होगा किन्तु सभी प्रकार के राजनीतिक पैतरें चलने के बावजूद भी
विपक्षी इस बात को जानता हैं कि उनके खेमे के व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाना टेढ़ी
खीर है.बीजेपी ने इस निर्णय के साथ देश को यह संदेश देने का काम किया है कि उसके
एजेंडे में वर्षों से उपेक्षित दलित समाज का विशेष महत्व है.यह भी लगभग तय हो चुका
है कि कोविंद ही भारत के अगले राष्ट्रपति होंगें.विपक्ष इस बात को जानता है कि सभी
दावों के बाद भी वह अपनी पसंद का राष्ट्रपति नही बना सकता है लेकिन, इसी बहाने वह अपनी
राजनीतिक शक्ति दिखाने की रस्मअदायगी भर कर सकते हैं.
एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे. मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...
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