Skip to main content

दिल्ली में प्रचंड बहुमत वाली सरकार

लोकसभा चुनाव से विजय रथ पर सवार बीजेपी का रथ आख़िरकार दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने रोक दिया.दिल्ली चुनाव के नतीजें कुछ इस कदर आए कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ ही नहीं वरन बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों के अनुमान भी निर्मूल साबित हुए, अरविन्द केजरीवाल की इस आंधी में बड़े बड़े सुरमे ढहे तो वही कई कीलें भी ध्वस्त हो गए.जैसाकि सभी सर्वेक्षण पहले ही आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत दे रहे थे.केजरीवाल की इस आंधी ने सभी अनुमानों को गलत साबित करते हुए दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर विजय प्राप्त कर दिल्ली की सल्तनत पर कब्जा जमा लिया.वहीँ बीजेपी को लेकर क़यास लगायें जा रहे थे कि बीजेपी को कम से कम 25 सीटें मिलेंगी लेकिन बीजेपी को महज 3 सीटें पाकर संतोष करना पड़ा,अजय माकन के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस की स्तिथि और बदतर हो गई,कांग्रेस के 70 में से 61 उम्मीदवार अपनी  जमानत तक नहीं बचा पाए और पार्टी का खाता भी इस चुनाव में नही खुल सका. केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के इस चुनाव में अभूतपूर्व जीत हासिल की है.प्रधानमंत्री मोदी की  रैलियों के बावजूद केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी विपक्ष की भूमिका निभाने लायक भी नहीं बची. बीजेपी की गढ़ कहे जाने वाली कृष्णा नगर जैसे  सिट से बीजेपी की नेतृत्व कर रही किरण बेदी को स्तब्धकारी हार झेलनी पड़ी.आप ने  कांग्रेस व बीजेपी के दिग्गजों को उनके ही गढ़ में शिकस्त देकर एक नई इबादत लिख दी.आप की यह जीत दिल्ली के लिए अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. इससे पहले 1989 और 2009 के चुनाव  में सिक्किम संग्राम परिषद ने राज्य के सभी 32 सीटों पर विजय प्राप्त की थी.विगत लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटें  पर बीजेपी उम्मीदवारों की जीत हुई थी.उस समय लगा था कि आम  आदमी पार्टी का वजूद खतरे में है .लेकिन जब हरियाणा,महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के चुनाव हो रहे थे, तब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता दिल्ली के प्रत्येक घर, प्रत्येकवर्ग, हर एक समुदाय से दिल्ली चुनाव को लेकर व्यापक जनसम्पर्क करने में लगे थे,जो आम आदमी पार्टी के लिए हितकर साबित हुआ. बीजेपी दिल्ली चुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त हो गई थी और कार्यकर्ता भी ये मान के चल रहे थे कि हम इस बार भी मोदी लहर के भरोसे दिल्ली की बैतरनी पार कर जायेंगे लेकिन, केजरीवाल के धुआंधार प्रचार व जनसम्पर्क के आगे बीजेपी को दिल्ली चुनाव में मुहं की खानी पड़ी है.पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिली थी बीजेपी को 31 सीटें मिली थी तथा कांग्रेस को 8 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था,कांग्रेस का  समर्थन पाकर केजरीवाल ने दिल्ली में अपनी सरकार बनाई और 49 दिनों के बाद उन्होंने लोकपाल के  मुद्दे पर बड़े विचित्र ढंग से इस्तीफा दे दिया,केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से इस 49 दिनों के अपने अनुभव पर ही वोट माँगा था.जनता को वो 49 दिन याद आये जब पुलिस वालों की हिम्मत नहीं होती थी कि वो जनता से रिश्वत मांग सके, इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए दिल्लीवासियों ने केजरीवाल पर एक बार फिर विश्वास किया और अपना जनादेश केजरीवाल को देना उचित  समझा.आम आदमी पार्टी के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं ने अपने बलबूते पर दिल्ली के इस काटें की टक्कर को अपने पक्ष में किया और भव्य विजय पाई .बीजेपी ने अपना पूरा चुनाव प्रचार केजरीवाल के इर्द-गिर्द रखा और उनकी आलोचना करने में अपना समय बर्बाद किया.जिसका सीधा फायदा केजरीवाल को हुआ पार्टी भारी बहुमत के साथ दिल्ली की बागडोर सम्भालने जा रही है,केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से हर मुद्दे पर  लोकलुभावन  वादे किए और उसे पूरा करने का आश्वासन भी दिया जो दिल्ली की जनता को पसंद आया.आप आदमी पार्टी के जीतने का एक और बड़ा कारण यह भी है कि इस बार दिल्ली के 90 फीसदी अल्पसंख्यकों तथा झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले 33% जनता ने केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को अपना मत दिया. जिससे कांग्रेस का वोट प्रतिशत कम हुआ ,इसका  सीधा फायदा  बीजेपी को न होकर आम आदमी पार्टी को हुआ दूसरी  तरफ बीजेपी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी जनता से संवाद स्थापित करने में विफल रही जिसका खामियाजा पार्टी को 28 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा है.अब दिल्ली की जनता ने तकरीबन एक साल के बाद प्रचंड बहुमत वाली सरकार चुनी है,अब देखने वाली बात होगी कि केजरीवाल की सत्ता में वापसी दिल्ली के लिए कितना हितकर होगा और केजरीवाल दिल्ली की जनता से किए गए वायदों पर कितना खरा उतरते है.

x

Comments

Popular posts from this blog

काश यादें भी भूकंप के मलबे. में दब जातीं ..

    एक दिन बैठा था अपनी तन्हाइयों के साथ खुद से बातें कर रहा था. चारों तरफ शोर –शराबा था, लोग भूकम्प की बातें करते हुए निकल रहें थे साथ ही सभी अपने–अपने तरीके से इससे  हुए नुकसान का आंकलन भी कर रहें थे.  मै चुप बैठा सभी को सुन रहा था. फिर अचानक उसकी यादों ने दस्तक दी और आँखे भर आयीं. आख  से निकले हुए अश्क मेरे गालों को चूमते  हुए मिट्टी में घुल–मिल जा रहें थे मानों ये आसूं उन ओश की बूंदों की तरह हो जो किसी पत्ते को चूमते हुए मिट्टी को गलें लगाकर अपना आस्तित्व मिटा देती हैं. उसी  प्रकार मेरे आंशु भी मिट्टी में अपने वजूद को खत्म कर रहें थे. दरअसल उसकी याद अक्सर मुझे हँसा भी जाती है और रुला भी जाती है. दिल में एक ऐसा भाव जगा जाती है जिससे मै खुद ही अपने बस में नहीं रह पाता, पूरी तरह बेचैन हो उठता. जैसे उनदिनों जब वो  मुझसे मिलने आती तो अक्सर लेट हो जाती,मेरे फोन का भी जबाब नहीं देती, ठीक इसी प्रकार की बेचैनी मेरे अंदर उमड़ जाती थी. परन्तु तब के बेचैनी और अब के बेचैनी में  एक बड़ा फर्क है, तब देर से ही सही  आतें ही उसके होंठों से पहला शब्द स...

डिजिटल इंडिया को लेकर सरकार गंभीर

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी महत्वकांक्षी योजना डिजिटल इंडिया को साकार करने के लिए सिलिकाँन वैली में तकनीक क्षेत्र की सभी दिग्गज कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात की . प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल इंडिया के उद्दश्यों व लक्ष्यों के बारें इन सभी को बताया.तकनीक जगत सभी शीर्षस्थ कंपनियां मसलन गूगल,माइक्रोसॉफ्ट तथा एप्पल के सीईओ ने भारत सरकार की इस योजना का स्वागत करते हुए, भारत में निवेश को लेकर अपने –अपने प्लानों के दुनिया के सामने रखतें हुए भारत को भविष्य की महाशक्ति बताया है. इन सभी कंपनियों को बखूबी मालूम है कि भारत आज सभी क्षेत्रों  नए- नए आयाम गढ़ रहा है. इसको ध्यान में रखतें हुए गूगल के सीईओ सुंदर पिचई ने भारत के 500 रेलवे स्टेशनों को वाई -फाई से लैस करवाने के साथ 8 भारतीय भाषाओं में इंटरनेट की सुविधा देने की घोषणा की तो वहीँ माइक्रोसॉफ्ट ने भी भारत में जल्द ही पांच लाख गावों को कम लागत में ब्रोडबैंड तकनीकी पहुँचाने की बात कही है.इस प्रकार सभी कंपनियों के सीईओ ने भारत को डिजिटल बनाने के लिए हर संभव मदद के साथ इस अभियान के लिए प्रधानमंत्री मोदी से कंधा से कंधा ...

लोकतंत्र पर बड़ा आघात था आपातकाल

  लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को 25 जून की तारीख याद रखनी चाहिए. क्योंकि यह वह दिन है जब विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को बंदी बना लिया गया था. आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय है , जिसके दाग से कांग्रेस कभी मुक्त नहीं हो सकती. इंदिरा गांधी ने समूचे देश को जेल खाने में तब्दील कर दिया था. लोकतंत्र के लिए उठाने वाली हर आवाज को निर्ममता से कुचल दिया जा रहा था, सरकारी तंत्र पूरी तरह राजा के इशारे पर काम कर रहा था. जब राजा शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूँ तो स्वभाविक है कि इंदिरा गांधी पूरी तरह लोकतंत्र को राजतंत्र के चाबुक से ही संचालित कर रही थीं. गौरतलब है कि इंदिरा गांधी किसी भी तरीके से सत्ता में बने रहना चाहती थी. इसके लिए वह कोई कीमत अदा करने को तैयार थी किन्तु इसके लिए लोकतांत्रिक मूल्यों पर इतना बड़ा आघात होने वाला है शायद इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी.   देश में इंदिरा गाँधी की नीतियों के खिलाफ भारी जनाक्रोश था और जयप्रकाश नारायण जनता की आवाज बन चुके थे. जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ रहा था इंदिरा सरकार के उपर खतरे के बादल मंडराने लगे थे. हर रोज हो रहे प्रदर्...