लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को 25 जून की तारीख याद रखनी चाहिए. क्योंकि यह वह दिन है जब विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को बंदी बना लिया गया था. आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय है , जिसके दाग से कांग्रेस कभी मुक्त नहीं हो सकती. इंदिरा गांधी ने समूचे देश को जेल खाने में तब्दील कर दिया था. लोकतंत्र के लिए उठाने वाली हर आवाज को निर्ममता से कुचल दिया जा रहा था, सरकारी तंत्र पूरी तरह राजा के इशारे पर काम कर रहा था. जब राजा शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूँ तो स्वभाविक है कि इंदिरा गांधी पूरी तरह लोकतंत्र को राजतंत्र के चाबुक से ही संचालित कर रही थीं. गौरतलब है कि इंदिरा गांधी किसी भी तरीके से सत्ता में बने रहना चाहती थी. इसके लिए वह कोई कीमत अदा करने को तैयार थी किन्तु इसके लिए लोकतांत्रिक मूल्यों पर इतना बड़ा आघात होने वाला है शायद इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी. देश में इंदिरा गाँधी की नीतियों के खिलाफ भारी जनाक्रोश था और जयप्रकाश नारायण जनता की आवाज बन चुके थे. जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ रहा था इंदिरा सरकार के उपर खतरे के बादल मंडराने लगे थे. हर रोज हो रहे प्रदर्...
देश में इस समय सोशल मीडिया को लेकर उठा कोलाहल शांत होने का नाम नहीं ले रहा है जब भी मामला शांत होने की कगार पर आता ट्विटर की बदमाशी इसे और बढ़ा देती. सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की बात करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं हो रही है क्योंकि ट्विटर ही सभी प्लेटफार्मों का सरदार बनने की कोशिश में लगा हुआ है. ट्विटर ने पिछले एक पखवारे से जो अकड़ व अहंकार दिखाया है उससे तो यही लगता है कि ट्विटर ने एक अलग गणराज्य की स्थापना कर लिया है और इस मुगालते में जी रहा है कि उस गणराज्य द्वारा जारी फरमान के मुताबिक़ ही सभी देश चलें अथवा उसे ही सर्वोपरी रखा जाए. भारत सरकार के नए आईटी नियमों को मनाने को लेकर जिस तरह से विवाद हुआ उससे स्पष्ट हो गया कि सोशल साइट्स कम्पनियां अपने आप को अत्याधिक शक्तिशाली मानने लगी हैं. इनके लिए किसी देश भी के संविधान, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति की गरिमा से खेलना आम हो गया है. भारत में ट्विटर का पूर्वाग्रह किसी से छुपा नहीं है उससे कहीं अधिक ट्विटर भी यह बताने की उत्सुकता दिखा रहा है कि उसकी विचारधारा क्या है. ट्विटर पर कई अधिकृत ब्लू ...